Wednesday, April 16, 2014

आज की कविता : बदलता ज़माना

                                                      -मिलन सिन्हा 
बैसाखियों पर चलनेवाले 
दे रहे हैं लेक्चर 
कैसे खुद अपने पैरों पर 
खड़ा हुआ जाता है !
दूसरों का टांग खींच कर 
आगे बढ़नेवाले 
बता रहे हैं 
आपका आचरण कैसा हो !
दूसरों के कंधों को 
सीढ़ी बनाकर ऊपर उठने वाले 
उपदेश दे रहे हैं !
कैसे आकाश की बुलंदियों को छुआ जाय !
बात - बात पर 
थूककर चाटनेवाले
वचन निभाने का 
वादा कर रहे हैं !
दूसरों का पद पूजन करके 
पद प्राप्त करनेवाले 
अब पद की मर्यादा का 
महत्व समझा रहे हैं !
ज़माना बदलता है 
ज़माना बदलेगा 
ये  तो जानते थे हम 
लेकिन इतना और ऐसा बदलेगा 
ऐसा कहां सोचा था 
ऐसा कब किसी ने कहा था !

                      और भी बातें करेंगे, चलते-चलते.  असीम शुभकामनाएं .
 प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

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