Friday, May 24, 2013

हास्य व्यंग्य कविता : माडर्न पत्नी के माडर्न विचार

                                                             -- मिलन  सिन्हा   
wife

सावन की सुहानी रात थी 
पति पत्नी की बात थी 
कहा, पति ने बड़े प्यार से 
देखो, प्रिये  
कल मुझे आफ़िस जल्दी है जाना 
वहां बहुत काम पड़ा है 
सब मुझे ही है निबटाना .
प्लीज ,जाने मन 
कल, सिर्फ कल 
बना लेना अपना खाना 
इसके लिए 
मैं तुम्हारा  'ग्रेटफूल'  रहूँगा  
आगे फिर कभी 
तुम्हे डिस्टर्ब नहीं करूँगा .
पत्नी के चेहरे का रंग 
तेजी से बदल रहा था .
गोरा से पीला 
फिर लाल  हो रहा था
जबान अब उसने खोली 
तुनक कर फिर बोली .
'ग्रेट'  'फूल ' तो तुम हो ही 
ग्रेटफूल  क्या रहोगे 
मेरा  मूड  बिगाड़ने  के लिए 
बस यही  सब तो करोगे .
राम जाने,
यह तुम्हारा  आफ़िस  है 
 या है मेरी सौत 
लगता है इसी के कारण 
होगी किसी दिन मेरी मौत .
मैं पूछती हूँ ,
जब अलग अलग थी
तुम्हारी  हमारी राह 
तो फिर तुमने 
क्यों किया मुझसे निकाह .
क्या सीखूँ  मैं अब 
डिस्को डांस और माडर्न संगीत 
दुर्भाग्य है हमारा 
जो तुम-सा मिला मनमीत 
जो न समझे 
क्या है कला, क्या है संस्कृति .
तुम जैसे पतियों की तो 
भ्रष्ट हो गयी है मति 
इसी कारण अपने देश की 
हो रही है दुर्गति .
पर , इस  तरह अब नहीं चलेगा काम 
हमें ही करना पड़ेगा 
कुछ न कुछ इन्तजाम .
देखना, हम पत्नियां अब 
ऐसी संस्था बनायेंगी 
जो दफ्तरों में सुधार लायेगा
देर से दफ्तर खुलवाएगा
जल्दी बंद भी करवाएगा .
हर महीने
पांच पांच  सी.एल  भी दिलवाएगा
पत्नी के बीमारी के नाम पर
सिक लीव  की व्यवस्था करवाएगा .
बॉस की डांट से भी
तुम पतियों को बचाएगा
बॉस की पत्नी से
 बॉस को खूब  डंटवाएगा .
और भी बहुत कुछ करेगा-करवाएगा
इस तरह पति-पत्नी के रिश्ते  को
खूब मधुर बनाएगा
तभी तो आधुनिकता का परचम
हर जगह लहराएगा !
# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित  
                          और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं 

Friday, May 17, 2013

आज की कविता : फर्क

                                    - मिलन सिन्हा
निगाहें 
पीछा कर रही हैं उसकी 
पर दिमाग 
उससे बहुत आगे 
निकल चुका है 
और 
पहुंच चुका है वहाँ 
जहाँ समय 
बूढ़ा हो चुका है 
और साथ ही 
दफ़न हो गई है 
रोमानी भावनाएं 
घिर आई है 
वैतरणी पार होने की चिन्ता 
इसके बावजूद 
शरीर से वह 
अब भी 
जवान दिखता है 
जैसे कि 
उसका शरीर
समय सापेक्ष न हो ! 

               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
  

Saturday, May 11, 2013

लघु कथा : साक्षात्कार

                                         - मिलन सिन्हा 

        'मामा जी , साक्षात्कार से पहले  अगर आप कौल साहब से जरा कह दें तो मेरी नौकरी हो ही जायेगी। मुझे मालूम है कि वे आपके अच्छे मित्र हैं। वे आपकी बात कभी नहीं काटेंगे। कुछ रुक कर उसने फिर कहा, मुझे लिखित परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त हुए हैं, मैंने पता कर  लिया है। पर, साक्षात्कार में बिना  सिफारिश के ....'

      मामा जी कुछ देर तक चुप रहे। फिर, धीरे से बोले, ' अच्छा, एक बात बताओ।  अगर कोई जीवन भर भीख की कमाई खाये , तो तुम्हे कैसा लगेगा ?

     'नहीं, मैं यह हरगिज नहीं चाहूँगा कि किसी को ऐसा दिन भी देखना पड़े' - उसने दृढ़ता के साथ कहा। 

     'तो फिर जाओ। नौकरी कभी भीख में मत लो ' - कह कर मामा जी अन्दर चले गए !


 # 'प्रभात खबर' में 02.06.2013 को प्रकाशित  

                      और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

Tuesday, May 7, 2013

व्यंग्य कविता : मौके की बात

                                         - मिलन सिन्हा
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मौके की बात
आधुनिक युग 
कलयुग तो है ही 
'क्यू'  युग भी है 
जहाँ  जाइए वहां  क्यू
नल पर नहाइए, 
वहां  क्यू
राशन लेना है,  
क्यू  में आइए
बच्चे का एडमिशन है, 
क्यू  में आइए
भाषण देना है, 
क्यू  में आइए
रोजगार  दफ्तर में
बेकारों के लिए क्यू
श्मशान में
मुर्दों के लिए क्यू 
एक दिन  बात - बेबात  पर
पत्नी  से  हो गया  उसका झगड़ा
वो भी मामूली नहीं, तगड़ा
वह  भी आ गया  ताव में
चल दिया  आत्महत्या करने
क़ुतुब मीनार से
कूद कर मरने
मीनार घर से था  दूर  
रास्ते में जाम 
लगा था भरपूर 
यहाँ भी था 
क्यू का कमाल  
जाम बना था 
जी का जंजाल
ऐसे में
उसे उसके 'स्व' ने पूछा
फंसा है तू यहाँ 
इस क्यू के जाल में
पता नहीं,ऊपर जाकर भी
फंस न जाए  फिर 
इसी जंजाल में
उसने सोचा, सही है
मरना भी नहीं है आसान
इतने से ही मैं  
कितना हूँ  परेशान ?
सो, बदला उसने अपना इरादा
किया  जीवन से यह वादा
फिर कभी ऐसा विचार
मन में नहीं आने दूंगा
न खुद मरने की सोचूंगा
और न ही किसी और को
इस तरह मरने दूंगा
तब से
जीवन की समस्याओं पर  
दुखी और पीड़ित लोगों से 
बात करता है 
एक-एक को  
ठीक से समझाता है 
भैया, बेशक जिंदगी में है
कुछ कष्ट
पर इसे न करो  
यूँ  ही  नष्ट
चली गयी जो एक बार जिंदगी  
फिर, न मिलेगी दोबारा
तो क्यों न  अब से
बने एक  दूसरे  का सहारा
बदलें जीने का नजरिया
बात उसकी थी सच्ची
लगी सबको अच्छी
सचमुच,
'क्यू ' ने उसे सोचने का मौका दिया
कई  और लोगों  को उसने 
फिर से जीना सीखा दिया !

#  प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Wednesday, May 1, 2013

लघु कथा : प्रासंगिकता

                                             - मिलन सिन्हा
 आज बद्री बाबू  का मूड बहुत अच्छा है। जब -जब वे भाषण देकर आते, काफी उत्साहित एवं प्रफुल्लित रहते। बद्री बाबू ने आज अपने भाषण में गांधी जी का कई बार उल्लेख किया । गांधी जी के जीवन की कई प्रेरक घटनाएं लोगों को सुनाई। उन्होंने बड़े जोरदार ढंग  से कहा कि किस तरह गांधी जी ने दबे- कुचले, शोषित-पीड़ित लोगों को समाज में उनका उचित स्थान दिलाने की पुरजोर कोशिश की। उन्हें गंदगी से बाहर निकाल कर स्वच्छ एवं सुन्दर बनाने का प्रयास किया । बद्री बाबू के भाषण के दौरान खूब तालियां बजी ।

      रिक्शे से हमलोग घर लौट आये । घर  पहुंचते ही बद्री बाबू ने पत्नी से चाय के लिए कहा । हमलोग बैठकखाने में बैठे ही थे कि बद्री बाबू का छोटा लड़का रोते हुए उनके पास आया और कहा, 'पिता जी, मेरी गेंद बाहर नाले में गिर गयी है । आप चलकर निकाल दीजिए ।'

      पहले तो बद्री बाबू ने टालने की कोशश की, पर जब लड़के ने जिद की तो उसे समझाते हुए कहा, 'बेटा , गेंद नाले में गिर गई तो गिरने दो । बाजार से मैं तुम्हे नई गेंद ला दूंगा । नाले में गिरने से यह गेंद तो गंदा  हो गया है । इसे नाले में ही पड़ा रहने दो । बाहर निकाल कर साफ़ करने से भी गंदा  ही रहेगा, साफ़ नहीं होगा ।

     बद्री बाबू का बेटा  नयी गेंद की आशा लिए लौट गया ।

     चाय में देर थी । लौटने से पूर्व मैंने बद्री बाबू से पूछा कि कुछ देर पहले वे जिस गांधी की चर्चा अपने भाषण में कर रहे थे, उनकी हमारे व्यावहारिक जीवन में कोई  प्रासंगिकता है क्या ? 

   यह सुनकर  एक क्षण के लिए बद्री बाबू निरुत्तर हो गए, बुत बने खड़े रहे, फिर नाले की ओर चल पड़े ! 

( 'हिन्दुस्तान' में 7 मई ,1998 को प्रकाशित

                                   और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं