Friday, May 17, 2013

आज की कविता : फर्क

                                    - मिलन सिन्हा
निगाहें 
पीछा कर रही हैं उसकी 
पर दिमाग 
उससे बहुत आगे 
निकल चुका है 
और 
पहुंच चुका है वहाँ 
जहाँ समय 
बूढ़ा हो चुका है 
और साथ ही 
दफ़न हो गई है 
रोमानी भावनाएं 
घिर आई है 
वैतरणी पार होने की चिन्ता 
इसके बावजूद 
शरीर से वह 
अब भी 
जवान दिखता है 
जैसे कि 
उसका शरीर
समय सापेक्ष न हो ! 

               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
  

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