-मिलन सिन्हा
उपचुनाव के परिणाम पर कयास लगाने की चेष्टा करें तो यह मानना पड़ेगा कि स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाने वाले इस चुनाव में जदयू-राजद-कांग्रेस महागठबंधन में से सबसे ज्यादा फायदा राजद और कांग्रेस को होगा। बशर्ते वे मन से एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए अपने -अपने कार्यकर्ताओं को महागठबंधन की सफलता के लिए प्रेरित कर सकें। क्यों कि कार्यकर्ताओं में असमंजस और भ्रम की स्थिति तो है ही। जो भी हो, उम्मीद तो है कि बिहार की उथल-पुथल भरी मौजूदा राजनीति की आगे की यात्रा दिलचस्प होगी।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
प्रदेश में आगामी 21 अगस्त को विधान सभा की दस सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव में अब भाजपा -लोजपा गठबंधन और जदयू-राजद-कांग्रेस महागठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला है। दोनों ही गठबंधन वैचारिक चोला उतार कर स्थानीय राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर चुनाव जीतने भर के उद्देश्य से मैदान में हैं। इसमें सिद्धान्त आदि की चर्चा जो भी नेता कर रहे हैं, उसके पीछे उनकी अपनी अपनी राजनीतिक बाध्यता है। सच वही है जो गरीबों -दलितों-अल्पसंख्यकों के लिए जीने -मरने की कसम खाने वाले जदयू, राजद और कांग्रेस तीनों दलों के प्रादेशिक अध्यक्षों ने संवाददाता सम्मलेन में कहा - वोटों के बिखराव को रोकने के लिए जदयू, राजद और कांग्रेस का साथ आना समय की मांग है। मजेदार बात यह है कि एक तरफ महागठबंधन में शामिल तीनों दलों के बड़े -छोटे सभी नेता कह रहे हैं कि इससे बिहार से एक नए राजनीतिक अभियान की शुरूआत हो गई है जिसका विस्तार अखिल भारतीय स्तर पर अन्य सामान विचारधारा वाले दलों के साथ मिलकर किया जाएगा। लेकिन इस सवाल का उत्तर कोई नहीं दे रहा है कि किस मजबूरी में इन तीनों पार्टियों के बड़े नेता, शरद -नीतीश, लालू प्रसाद एवं सोनिया गांधी -राहुल गांधी एक मंच से ऐसा बयान देने से कतरा रहे हैं ? क्या वे इस महागठबंधन की सफलता के प्रति आश्वस्त नहीं हैं और इस ट्रेलर का अंजाम देखकर ही आगे की रणनीति तय करेंगे ?
दोनों गढ़बंधनों में शामिल दलों द्वारा घोषित उम्मीदवारों के राजनीतिक सफर पर नजर डालने मात्र से यह बात साफ़ हो जाती है कि इस चुनाव में सीट विशेष के जातीय अंकगणित को आधार बनाकर उम्मीदवारों का चयन किया गया है। तथ्य यह भी है कि दलों के पास चुनाव जीताऊ जमीनी नेताओं की कमी है जिसे दूसरे दलों में सेंधमारी कर पूरा करने की कोशिश की गयी है। मसलन, टिकट बंटवारे में एनडीए ने जिन दो महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है, वे दोनों टिकट की घोषणा होने से पहले तक दूसरी पार्टियों में थीं। निःसंदेह, यह समर्पित कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित करने वाली बात है जिसका विरोध यहाँ वहाँ हो भी रहा है।उपचुनाव के नतीजों पर इसका असर भी कहीं -कहीं दिखेगा जरूर। इसे भविष्य में राजनीतिक समीकरण के सम्भावित स्वरुप का एक बानगी माना जा सकता है।
उपचुनाव के परिणाम पर कयास लगाने की चेष्टा करें तो यह मानना पड़ेगा कि स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाने वाले इस चुनाव में जदयू-राजद-कांग्रेस महागठबंधन में से सबसे ज्यादा फायदा राजद और कांग्रेस को होगा। बशर्ते वे मन से एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए अपने -अपने कार्यकर्ताओं को महागठबंधन की सफलता के लिए प्रेरित कर सकें। क्यों कि कार्यकर्ताओं में असमंजस और भ्रम की स्थिति तो है ही। जो भी हो, उम्मीद तो है कि बिहार की उथल-पुथल भरी मौजूदा राजनीति की आगे की यात्रा दिलचस्प होगी।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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