- मिलन सिन्हा
हमें तो बचपन से अपने अभिभावकों, बड़े -बुजुर्गों -शिक्षकों से यह सीख मिलती रही है कि अच्छा सोचोगे तो अच्छा करोगे और अच्छा बनोगे; तुम्हारे सोच एवं कर्म ही तुम्हारे जीवन की दशा -दिशा निर्धारित करेंगे आदि, आदि । विश्व में सकारात्मक सोच की महत्ता को रेखांकित करने वाली कई किताबें बाजार में सहज उपलब्ध हैं जिनमें सकारात्मक सोच की शक्ति और उसके बहुआयामी फायदे के बाबत विस्तार से बताया गया है । हमारे बीच कितने ऐसे इंसान मिल जायेंगे जिन्होंने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए जीवन में सफलता पाई है और खुशियां भी ।
फिर क्यों 'आधा गिलास खाली' वाली नकारात्मक सोच से ग्रसित लोगों की संख्या में निरन्तर बढ़ोतरी हो रही है; जीवन से निराश होकर पलायनवादी रुख अख्तियार करनेवालों की तादाद दिन पर दिन क्यों बढ़ती जा रही है ? क्या हमारे जीवन में संघर्ष करने की क्षमता कम होती जा रही है या हम जल्द से जल्द सब कुछ पा लेने के दौड़ में असफल होने पर सीधे अवसाद ग्रस्त हो जाते है? सब जानते हैं कि सफलता-असफलता हमारे जीवन का हिस्सा है । फिर असफलता तो हमें आत्म निरीक्षण का अवसर प्रदान करती है, आत्म विश्लेषण को प्रेरित करती है ?
आप भी मानेंगे, अगर हम संघर्ष के रास्ते जीवन में सुख और सकून पाने को लक्ष्य बना कर मजबूती से चल पड़ें तो कोई कारण नहीं कि हमें अपेक्षित सफलता न मिले । कहते हैं न कि ज्ञान, कौशल और नजरिया में से नजरिया सबसे अहम है, जीवन को सही मायने में सार्थक और जीवंत बनाने के लिये । जरा सोचिये, मई 1953 में माउंट एवेरेस्ट पर पहली बार विजयी पताका लहराने वाले न्यूज़ीलैंड के महान पर्वतारोही एडमंड हिलेरी एवं उनके नेपाली साथी तेनजिंग नोरगे ने कितने मजबूत इरादों व कठिन परिश्रम से वह सुखद कीर्तिमान बनाया होगा ।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं ।
फिर क्यों 'आधा गिलास खाली' वाली नकारात्मक सोच से ग्रसित लोगों की संख्या में निरन्तर बढ़ोतरी हो रही है; जीवन से निराश होकर पलायनवादी रुख अख्तियार करनेवालों की तादाद दिन पर दिन क्यों बढ़ती जा रही है ? क्या हमारे जीवन में संघर्ष करने की क्षमता कम होती जा रही है या हम जल्द से जल्द सब कुछ पा लेने के दौड़ में असफल होने पर सीधे अवसाद ग्रस्त हो जाते है? सब जानते हैं कि सफलता-असफलता हमारे जीवन का हिस्सा है । फिर असफलता तो हमें आत्म निरीक्षण का अवसर प्रदान करती है, आत्म विश्लेषण को प्रेरित करती है ?
आप भी मानेंगे, अगर हम संघर्ष के रास्ते जीवन में सुख और सकून पाने को लक्ष्य बना कर मजबूती से चल पड़ें तो कोई कारण नहीं कि हमें अपेक्षित सफलता न मिले । कहते हैं न कि ज्ञान, कौशल और नजरिया में से नजरिया सबसे अहम है, जीवन को सही मायने में सार्थक और जीवंत बनाने के लिये । जरा सोचिये, मई 1953 में माउंट एवेरेस्ट पर पहली बार विजयी पताका लहराने वाले न्यूज़ीलैंड के महान पर्वतारोही एडमंड हिलेरी एवं उनके नेपाली साथी तेनजिंग नोरगे ने कितने मजबूत इरादों व कठिन परिश्रम से वह सुखद कीर्तिमान बनाया होगा ।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं ।
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