- मिलन सिन्हा
हर युग, हर काल में अच्छे और बुरे लोग हमारे समाज में मौजूद रहे हैं । अतीत, वर्तमान सब गवाह हैं कि बुरे लोग यह प्रयास करते हैं कि किस तरह अच्छे लोगों की बुराई की जाय, उन्हें परेशान किया जाय, जुर्म करने के बावजूद क़ानून की खामियों का लाभ उठाकर क़ानून से बचा जाय और सबसे महत्वपूर्ण यह कि आपस के मेलजोल को न केवल दिन पर दिन बढ़ाया जाय बल्कि उसे उत्तरोत्तर कैसे सुदृढ़ किया जाय । किस तरह अपने नेटवर्किंग का विस्तार भी करते रहें और उसे प्रभावी भी बनाये रखें । इसके विपरीत, अच्छे लोग सच्चे, नेक और ईमानदार होते हैं; वे अपने काम से मतलब रखते हैं - न ऊधो का लेना, न माधो का देना । अच्छे लोग सामान्यतः यह मान कर चलते हैं कि अच्छे काम का नतीजा हमेशा अच्छा होता है और इसी कारण अपने कर्म पर विश्वास करते हुए मेल -जोल या नेटवर्किंग में ख़ास रूचि नहीं लेते हैं । उनका पड़ोसी अच्छा हो या बुरा, उन्हें इससे कोई विशेष सरोकार नहीं होता । पाया गया है कि उन्हें अपनी अच्छाई का गुमान भी होता है; जब कि वे जानते और मानते हैं कि अच्छा होना हर मनुष्य का नैतिक व सामाजिक दायित्व है । सोचिये जरा, अगर कोई कहे कि बुद्धि पर सिर्फ उनका एकाधिकार है तो फिर कुछ नया जानने - सीखने के दरवाजे -खिड़की ही बंद हो गये न । ऐसे में बुराई को बढ़ने से कैसे रोक पायेंगे ।
एक बात और। जब अच्छे लोग, जिनकी संख्या आज भी ज्यादा है, आपस में बराबर मिलेंगे नहीं तो उनके बीच अच्छाई का आदान -प्रदान कैसे होगा । अच्छाई तब आखिर समाज में फैलेगी कैसे ? सोलह आने सच बात तो यह है कि अच्छे लोगों की व्यक्तिगत व सामाजिक सक्रियता का निरंतर बढ़ना समाज को दिनोंदिन बेहतर बनाने के लिए आवश्यक है ।
हर युग, हर काल में अच्छे और बुरे लोग हमारे समाज में मौजूद रहे हैं । अतीत, वर्तमान सब गवाह हैं कि बुरे लोग यह प्रयास करते हैं कि किस तरह अच्छे लोगों की बुराई की जाय, उन्हें परेशान किया जाय, जुर्म करने के बावजूद क़ानून की खामियों का लाभ उठाकर क़ानून से बचा जाय और सबसे महत्वपूर्ण यह कि आपस के मेलजोल को न केवल दिन पर दिन बढ़ाया जाय बल्कि उसे उत्तरोत्तर कैसे सुदृढ़ किया जाय । किस तरह अपने नेटवर्किंग का विस्तार भी करते रहें और उसे प्रभावी भी बनाये रखें । इसके विपरीत, अच्छे लोग सच्चे, नेक और ईमानदार होते हैं; वे अपने काम से मतलब रखते हैं - न ऊधो का लेना, न माधो का देना । अच्छे लोग सामान्यतः यह मान कर चलते हैं कि अच्छे काम का नतीजा हमेशा अच्छा होता है और इसी कारण अपने कर्म पर विश्वास करते हुए मेल -जोल या नेटवर्किंग में ख़ास रूचि नहीं लेते हैं । उनका पड़ोसी अच्छा हो या बुरा, उन्हें इससे कोई विशेष सरोकार नहीं होता । पाया गया है कि उन्हें अपनी अच्छाई का गुमान भी होता है; जब कि वे जानते और मानते हैं कि अच्छा होना हर मनुष्य का नैतिक व सामाजिक दायित्व है । सोचिये जरा, अगर कोई कहे कि बुद्धि पर सिर्फ उनका एकाधिकार है तो फिर कुछ नया जानने - सीखने के दरवाजे -खिड़की ही बंद हो गये न । ऐसे में बुराई को बढ़ने से कैसे रोक पायेंगे ।
एक बात और। जब अच्छे लोग, जिनकी संख्या आज भी ज्यादा है, आपस में बराबर मिलेंगे नहीं तो उनके बीच अच्छाई का आदान -प्रदान कैसे होगा । अच्छाई तब आखिर समाज में फैलेगी कैसे ? सोलह आने सच बात तो यह है कि अच्छे लोगों की व्यक्तिगत व सामाजिक सक्रियता का निरंतर बढ़ना समाज को दिनोंदिन बेहतर बनाने के लिए आवश्यक है ।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# 'प्रभात खबर' के मेरे संडे कॉलम, 'गुड लाइफ' में प्रकाशित
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