- मिलन सिन्हा
बिहार की राजधानी में आज
कई बम विस्फोट हुए
महत्वपूर्ण स्थानों में हुए
कई लोग मारे गए
दर्जनों जख्मी हुए
तो क्या हुआ ?
मुम्बई में आतंकी हमला हुआ
लोकल ट्रेन में बम फटे
महानगर दहशत में जीता रहा
सैकड़ों लोग मारे गए
हजारों लोग घायल हुए
तो क्या हुआ ?
देश की राजधानी में
कई बार दहशतगर्दों ने
खूनी खेल खेला
जहाँ चाहा, वहाँ खेला
संसद भवन को भी नहीं छोड़ा
तो क्या हुआ ?
कश्मीर में जब तब
गोलाबारी होती है
रॉकेट से हमले भी होते हैं
सीमा पर तनाव बढ़ता है
जनजीवन असामान्य हो जाता है
तो क्या हुआ ?
हर मामले में हर जगह
निर्दोष लोग, कर्तव्यनिष्ठ सिपाही
मारे जाते हैं, आहत होते हैं
परिवार पर विपत्ति आती है
अखबार, न्यूज़ चैनल उन्हें कवर करते हैं
तो क्या हुआ ?
सरकार सख्त कारवाई का राग अलापती है
संवेदना भी प्रदर्शित करती है
मुआवजे की त्वरित घोषणा होती है
घड़ियाली आंसू बहते हैं, जांच आयोग बैठते हैं
अखबार, न्यूज़ चैनल उन्हें भी कवर करते हैं
तो क्या हुआ ?
अब तो ऐसा अमूमन
हर जगह होने लगा है
कभी कभार नहीं, बराबर होने लगा है
परन्तु खबरों के अलावा
इनका और क्या महत्व रह गया है
हाँ, सत्य तो बस इतना है कि
आम आदमी तो होता ही है
आश्वासनों एवं घोषणाओं के साथ जीने के लिए
वोट देने के लिए
प्रजातंत्र को ढोने के लिए
और ऐसी घटनाओं ( दुर्घटनाओं नहीं ) का
शिकार होने के लिये !
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
बिहार की राजधानी में आज
कई बम विस्फोट हुए
महत्वपूर्ण स्थानों में हुए
कई लोग मारे गए
दर्जनों जख्मी हुए
तो क्या हुआ ?
मुम्बई में आतंकी हमला हुआ
लोकल ट्रेन में बम फटे
महानगर दहशत में जीता रहा
सैकड़ों लोग मारे गए
हजारों लोग घायल हुए
तो क्या हुआ ?
देश की राजधानी में
कई बार दहशतगर्दों ने
खूनी खेल खेला
जहाँ चाहा, वहाँ खेला
संसद भवन को भी नहीं छोड़ा
तो क्या हुआ ?
कश्मीर में जब तब
गोलाबारी होती है
रॉकेट से हमले भी होते हैं
सीमा पर तनाव बढ़ता है
जनजीवन असामान्य हो जाता है
तो क्या हुआ ?
हर मामले में हर जगह
निर्दोष लोग, कर्तव्यनिष्ठ सिपाही
मारे जाते हैं, आहत होते हैं
परिवार पर विपत्ति आती है
अखबार, न्यूज़ चैनल उन्हें कवर करते हैं
तो क्या हुआ ?
सरकार सख्त कारवाई का राग अलापती है
संवेदना भी प्रदर्शित करती है
मुआवजे की त्वरित घोषणा होती है
घड़ियाली आंसू बहते हैं, जांच आयोग बैठते हैं
अखबार, न्यूज़ चैनल उन्हें भी कवर करते हैं
तो क्या हुआ ?
अब तो ऐसा अमूमन
हर जगह होने लगा है
कभी कभार नहीं, बराबर होने लगा है
परन्तु खबरों के अलावा
इनका और क्या महत्व रह गया है
हाँ, सत्य तो बस इतना है कि
आम आदमी तो होता ही है
आश्वासनों एवं घोषणाओं के साथ जीने के लिए
वोट देने के लिए
प्रजातंत्र को ढोने के लिए
और ऐसी घटनाओं ( दुर्घटनाओं नहीं ) का
शिकार होने के लिये !
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
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