Sunday, July 28, 2013

हास्य व्यंग्य कविताएं: संकट, योजना

                                     -मिलन सिन्हा

neta

संकट
नेताजी से जब
एक पत्रकार ने पूछा ,
महाशय, तेल  संकट  पर
क्या हैं आपके विचार ?
तो कहा  नेताजी ने हँसते हुए,
कहाँ  तेल संकट
जो करें सोच विचार .
अरे , हमारे  घर  तो  रोज
हजारों  लोग आते हैं
और हमें लगाने के लिए
भर-भर टीन तेल
साथ लाते हैं !

योजना
मंत्री जी ने कहा,
अगले पंच वर्षीय  योजना में
गावों  से
गरीबी  हटायेंगे .
ऐसा लगता है
जैसे कि  वे उसे (गरीबी को)
शहर में ले जायेंगे !



 #  प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :27.07.2013

             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Friday, July 26, 2013

हास्य व्यंग्य कविता : परेशान ‘मेल’

                                                 – मिलन सिन्हा 
man in 0ffice
मैनेजर  ने बड़े  बाबू से  पूछा,
ये क्या हाल बना  रक्खा है,
टेबुल पर फाइलों का
अंबार लगा रक्खा है ?
क्या बात है,
कुछ  कहते क्यों नहीं ?
सर, कहने से  क्या लाभ
हमीं अब बदल रहें है
अपना स्टाइल, अपना स्वभाव !
सर, हम जो मर्द हैं न, अर्थात ‘मेल’
परेशां  हैं हर हाल में .
आफिस में, घर में
हर मौसम, हर काल में .
आफिस में परेशान हैं हम
फोन,फैक्स और ई-मेल  से
तो घर में,
पडोसी, आगंतुक और ‘फी-मेल’ से ! 

 # प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

                          और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Wednesday, July 24, 2013

व्यंग्य कविता : मजाक

                                                            -मिलन सिन्हा

netaji
मजाक
मंत्री जी ने कहा,
“पांच वर्ष के बाद देश में
कोई भी अनपढ़ नहीं रहेगा।”
अगर सचमुच ऐसा हो पाया
तो सारा देश
उनका आभारी रहेगा।
पर, फिलहाल तो
हमारे अनेक नेताओं /शिक्षकों को
फिर से पढ़ना पड़ेगा,
‘ कुपढ़ ‘ नहीं,
वाकई शिक्षित होना पड़ेगा।
क्यों कि,
शिक्षा को उन्होंने ही
मजाक  बनाया है,
देश में  कुपढ़ों की संख्या को
बहुत  बढ़ाया  है।
सच मानिए,
‘ कुपढ़ ‘ होने से तो अच्छा  है
अनपढ़ रह जाना,
सिर्फ भाषण देकर नहीं
खुद कमाकर दो रोटी खाना,
दूसरों का हक़ मार कर नहीं,
अपने हक़ का इज्जत पाना,
सही मायने में
आदमी बन पाना ! 

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Sunday, July 21, 2013

आज की कविता : तारीखें माफ़ करती नहीं

                                      -मिलन सिन्हा 
poverty

सोचनीय विषयों  पर
सोचते नहीं 
वादा जो करते हैं 
वह करते नहीं 
अच्छे  लोगों को 
साथ रखते नहीं 
गलत करने वालों को 
रोकते नहीं 
बड़ी आबादी को 
खाना, कपड़ा  तक नहीं 
गांववालों को 
शौचालय भी नहीं 
बच्चों को जरूरी 
शिक्षा व पोषण तक नहीं 
गरीब, शोषित के प्रति 
वाकई कोई संवेदना नहीं 
अपने  गुरूर में ही जीते हैं 
अपने जमीर की भी सुनते नहीं 
वक्त दस्तक देता है 
फिर भी चेतते नहीं 
सच कहते हैं गुणीजन 
ऐसे नेताओं को 
आम जनता भूलती नहीं 
ऐसे शासकों  को 
तारीखें  माफ़ करती नहीं ! 
# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :20.07.2013

                        और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Friday, July 19, 2013

हास्य व्यंग्य कविताएं : सफाई, माफिया

                                        -मिलन सिन्हा
सफाई
धो डाला
सब धो डाला
घोटाला
सब घोटाला
धो डाला
जो अब भी मुझ पर
कीचड़ उछाले
उसी का मुंह काला !

माफिया
जिसने  जनता का
जेब साफ़ किया
उसे बेकदर
तबाह किया
लेकिन जिसे नेताओं ने
अपने साथ किया
उसे बिलकुल
माफ़ किया
वही तो है ‘माफिया’.

 # प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :16.07.2013

                          और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

हास्य व्यंग्य कविताएं : शिष्टाचार, भाईचारा, मौज

                                 -मिलन सिन्हा
bhaichara









शिष्टाचार
माल सब
साफ़ किया
विकास के नाम पर
विनाश किया
भ्रष्टाचार ही
शिष्टाचार है
कहो न प्यार है.

भाईचारा
‘भाईचारा’ का
शानदार नमूना देखिये
घर का चारा खानेवाला
खा रहा अब
‘भाई’ का ‘चारा’ देखिये.

मौज
मिल बाँट कर खाते हैं
रोज मौज  मनाते हैं
नीति हमारी है
बस खाने की
और राजनीति ?
बहाने के बदौलत
शासन  चलाने  की.

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :19.07.2013

                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Tuesday, July 16, 2013

बाल कविता : बच्चों की कल्पना

                                     -मिलन सिन्हा

village

यही वह अपना गाँव है
हम बच्चों का गाँव है।

बन्दर है,   मदारी  है
पनघट है, फूलों की क्यारी है


खेत  है,   खलिहान है
झूमते पेड़, खुला आसमान  है।

यही वह अपना गाँव है
हम बच्चों का गाँव है।

मदरसा है, पाठशाला है
कोई गोरा, कोई  काला  है
कुश्ती है, कबड्डी है
कोई अव्वल, कोई फिसड्डी है।

यही वह अपना गाँव है
हम बच्चों का गाँव है।

न गम है, न तनाव है
सबका अच्छा स्वभाव है
न  कहीं  कोई  पेंच है
न कहीं कोई दांव  है।

यही वह अपना गाँव है
हम बच्चों का गाँव है।

चिड़ियों  की चहकार है
इधर नदी, उधर पहाड़ है
खुशबू है, संगीत की बहार है
हर ओर  प्यार-ही-प्यार है।

यही वह अपना गाँव है
हम बच्चों का गाँव है।

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :14.07.2013

                       और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Wednesday, July 10, 2013

आज की कविता : जरूरी तो नहीं

                                      -मिलन सिन्हा
love















तुम जो चाहो सब मिल जाये, जरूरी तो नहीं
तुम जो कहो सब ठीक हो, जरूरी तो नहीं।

दूसरों से भी मिलो, उनकी भी बातें सुनो
वो जो कहें सब गलत हो, जरूरी तो नहीं।

सुनता हूँ यह होगा, वह  होगा,पर होता नहीं कुछ
जो जैसा कहे, वैसा ही करे, जरूरी तो नहीं।

जिन्दगी के हर मुकाम पे  इम्तहान  दे रहा है आदमी
इम्तहान  के बाद ही परिणाम मालूम हो, जरूरी तो नहीं।

संघर्ष से मत डरो, प्रयास हमेशा तुम करो
हर बार तुम्हें हार ही मिले, जरूरी तो नहीं।

कहते हैं बेवफ़ाई एक फैशन हो गया है आजकल
पर हर कोई यहाँ बेवफ़ा हो, जरूरी तो नहीं।

जनता यहाँ शोषित है, शासक भी है यहाँ शोषक
हर शासक अशोक या अकबर हो, जरूरी तो नहीं।

जानता हूँ ‘मिलन’ का अंजाम जुदाई होता है
पर हर जुदाई गमनाक हो,जरूरी तो नहीं।

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :10.07.2013

                और भी बातें करेंगे, चलते चलते असीम शुभकामनाएं 

Wednesday, July 3, 2013

आज की कविता : जीवन का लक्ष्य

                                                                                               -मिलन सिन्हा

jivan1मैं, मैं हूँ
तुम, तुम हो
वह भी, वह ही है
यह सत्य है
जानते हैं हम सब
यह सब 
पर,
इतना ही
जानना -समझना
क्या
जीवन का लक्ष्य है ?
या
यह भी
जानना-समझना-मानना
कि
कहीं-न-कहीं
एक दूसरे में हैं हम
अन्यथा
वाकई अधूरे हैं हम !

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :03.07.2013

                                              और भी बातें करेंगे, चलते चलते असीम शुभकामनाएं 

Tuesday, July 2, 2013

आज की कविता : दर्द और दहशत

-मिलन सिन्हा

sorrowउसने देखा है
गाय और भैसों को
ट्रक और ट्रेक्टर से
ले जाते हुए
उसने देखा है
भेड़ और बकरी को
टैम्पू और तांगे पर
ले जाते हुए
उसने देखा है
मेमने को
बोरे में डाल कर
साइकिल से
ले जाते हुए
उसने देखा है
मुर्गियों को
रिक्शे- ठेले पर
ले जाते हुए
और हर बार
कई कई बार
महसूस किया है
उस दर्द, दहशत,
खौफ, जहालत,
अनिश्चितता, बेबसी …को
जो उस गाय, भैंस, बकरी,
भेड़, मेमने और मुर्गी ने
महसूस किया है
अपनी छोटी सी जिंदगी में !

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :01.07.2013

                         और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं।