- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर... ....

ऐसे हर समाज में एक ही तरह की परिस्थिति में रहनेवाले विद्यार्थियों में कुछ तो बराबर किसी-न-किसी चीज के न होने का रोना रोते रहते हैं, वहीँ कुछ विद्यार्थी उसी परिस्थिति में खुश रहते हुए अपने कर्तव्य पथ पर चलने का भरसक प्रयास करते रहते हैं. खेल का मैदान हो या परीक्षा हॉल, हर जगह प्रयास करने से पहले ही हार माननेवालों यानी रोनेवालों का विजयी होना नामुमकिन होता है, जब कि उनको भी कई बार बताया जा चुका है कि कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती.
जीवन के चौराहे पर खड़े कई विद्यार्थियों के सामने जब चारों दिशाओं में रास्ते खुले होते हैं, वे हर रास्ते में आगे कठिनाई का रोना वहीँ खड़े-खड़े रोते रहते हैं और आगे कदम नहीं बढ़ाते. उनके पास जो रहता है उसका सदुपयोग करने और आनंद उठाने के बजाय जो कुछ नहीं है उसी का राग अलापते रहते हैं. एक उदाहरण से इसे और अच्छी तरह समझते हैं. एक ही कक्षा के दो विद्यार्थी हैं. एक हफ्ते बाद परीक्षा है. एग्जाम के पहले दिन के पेपर से संबंधित कुछ चैप्टर पढ़ना जरुरी है, पर किताब नहीं है. किताब खरीदने का पैसा भी नहीं है. अब पहला विद्यार्थी किताब न होने का रोना रोता है. अपनी परिस्थिति को दोष देता है और अपने भाग्य को कोसता है. किताब हासिल करने और फिर उसे पढ़ने के लिए मौजूद विकल्प की ओर ध्यान नहीं देता है, जब कि विकल्प कई हैं. परिणाम क्या होगा, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है. वहीँ दूसरा विद्यार्थी कॉलेज की लाइब्रेरी या किसी सहपाठी या शिक्षक की मदद से किताब पढ़ लेता है और हंसी-ख़ुशी परीक्षा में शामिल होता है.
जीवन के लम्बे काल खंड में सबके सामने कुछ चीजें होने और कुछ चीजें नहीं होने का सवाल किसी-न-किसी समय सामने आ खड़ा होता है. यह भी सच है कि शायद ही किसी के पास सब चीजें सब समय उपलब्ध होती हैं. छात्र-छात्राएं अगर प्रबंधन के मूल सिद्धांत पर गौर करेंगे तो उन्हें लगेगा कि चीजें कम हो या ज्यादा, उपलब्ध साधनों के ही माध्यम से किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य तक पहुंचना कठिन तो हो सकता है, पर असंभव नहीं है. सोचिए जरा, गांधी जी और अन्य स्वतंत्रता सेनानी अगर यह सोचते कि अपने सीमित साधनों से वे कैसे महाशक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेकेंगे तो क्या आजादी हासिल करना जल्दी संभव हो पाता?
स्वास्थ्य की दृष्टि से सोचें तो हर बात पर रोने की आदत न केवल आपके मेटाबोलिज्म को दुष्प्रभावित करता हैं, बल्कि आपको मानसिक रूप से नेगेटिव और कमजोर बनाता है. आप तनावग्रस्त रहने लगते हैं. फलतः आप कई बीमारियों के चपेट में भी आ जाते हैं. धीरे-धीरे "हम नहीं कर सकते हैं, हम नहीं कर पायेंगे" ही आपका नजरिया बन जाता है. और इस नजरिए से फिर तो सफलता तक पहुँच पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. "कौन बनेगा करोड़पति" के कर्मवीर नामक एपिसोड में आप जिन लोगों को देखते हैं और उनकी जीवन यात्रा से परिचित होते हैं, उनसे आपको कौन से प्रेरक संदेश प्राप्त होते हैं? यही न कि कभी ख़ुशी, कभी गम से भरी इस जिंदगी में रोना छोड़ अगर कोई हंसते हुए कोशिश करते रहे तो सफ़र मुश्किल होने के बावजूद भी रोमांचक और मजेदार लगता है और पता भी नहीं चलता कि इस क्रम में कितनी सारी छोटी-बड़ी मंजिलों को वे हासिल भी करते गए. राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर तो यह भी कहते हैं: "विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते ...."
रोचक तथ्य है कि जब आप किसी भी परिस्थिति में किसी भी काम को दृढ़ संकल्प के साथ यथाशक्ति और यथाबुद्धि करने में जुट जाते हैं तो अव्वल तो वह काम उतना मुश्किल प्रतीत नहीं होता और दूसरे आपकी आंतरिक शक्ति कई गुना बढ़ जाती है. परिणामस्वरूप, अधिकाश समय असंभव लगनेवाला काम भी संपन्न हो जाता है. निसंदेह, ऐसी सफलता से आपके आत्मविश्वास में जबरदस्त उछाल आता है और आपको असाधारण ख़ुशी भी मिलती है.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 01.12.2019 अंक में प्रकाशित
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