- मिलन सिन्हा
गतांग से आगे ... ... वहां से लौटते हुए भी कई स्थानों पर रुकने की इच्छा हो रही थी, लेकिन ड्राईवर ने यह कह कर मना किया कि आगे सोमगो अर्थात छान्गू झील पर ज्यादा वक्त गुजारना बेहतर होगा. सही कहा था उसने. ऐसा सोमगो अर्थात छान्गू झील पहुंचने पर हमें लगने लगा.
ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के बीच में मुख्य सड़क के बिलकुल बगल में है यह लम्बा खूबसूरत झील. गाड़ी रुकते ही हम उतर कर झील के किनारे पहुंच गए. तुरत ही सामने से बड़ा-सा काला-सफ़ेद याक आ पहुंचा. याक की आंखें कुछ बोल रही थी, शायद यह कि यहां आये हैं तो मेरी सवारी का भी आनन्द ले लीजिए, अच्छा लगेगा आपको और मुझे भी. मेरा मालिक भी खुश होगा और आपके जाने के बाद मुझे सहलायेगा, प्यार से खिलायेगा .... हमारे मालिक के लिए यह आमदनी का छोटा जरिया है, क्यों कि साल के कुछ ही महीने आप जैसे पर्यटक आ पाते हैं यहाँ... कहते हैं, बच्चे भगवान का रूप होते हैं, मन की बात खूब समझते हैं. याक भी कैसे अपनी भावना उनसे छुपा पाता. तो बच्चे याक की सवारी के लिए मचलने लगे. युवा और महिलायें भी साथ हो लिए. एक-एक कर सब सवारी का मजा ले रहे थे. फोटो सेशन भी हुआ. सेल्फी का दौर तो चलना ही था. बताते चलें कि याक के सींगों को कलात्मक ढंग से रंगीन कपड़ों से सजाया गया था. उसके पीठ पर रखा हुआ गद्दा भी सुन्दर लग रहा था.
दिन ढल रहा था, पहाड़ों पर फैले बर्फ की चादरों का रंग बदलता जा रहा था, गंगटोक लौटने वाली गाड़ियां लम्बी कतार में खड़ी थीं, ठंढ से ठिठुरते लोगों की भीड़ चाय-काफी की दुकानों में लगी थी, बच्चे दोबारा याक की सवारी की जिद कर रहे थे... सच कहें तो मनोरम दृश्य के बीच ये सारी बातें फील गुड, फील हैप्पी का एहसास करवा रही थी. अंधेरा होने से पहले गंगटोक पहुंचने की बाध्यता नहीं होती तो किसे लौटने की जल्दी होती ! खैर, गाड़ी में आ बैठे हम मन-ही-मन यह दोहराते हुए : जल्दी ही आऊंगा फिर एक बार, देखेंगे-सीखेंगे और भी बहुत कुछ, करेंगे हर किसी से बातें भी दो-चार... … (hellomilansinha@gmail.com)
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और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित #For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
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