Tuesday, April 11, 2017

यात्रा के रंग : अब पुरी में -4 ‘श्री जगन्नाथ मंदिर’ और उसके आसपास -1

                                                                                           - मिलन सिन्हा 
गतांक से आगे... पुरी में सागर तट के पास स्थित अपने होटल में सुबह-सुबह स्नानादि से निवृत होकर हम चल पड़े विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर की ओर. यहां से मंदिर जाने के एकाधिक मार्ग हैं. हमने गलियों से गुजरते रास्ते  को चुना जिससे वहां के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश की कुछ झलक मिल सके. गलियां आवासीय मकानों के बीच से होती हुई निकलती हैं. कस्बाई रहन-सहन. लोग सीधे-सादे. आपस में सटे-सटे ज्यादातर एक मंजिला- दो मंजिला मकान. कुछेक घरों में सामने के एक-दो कमरों में चलते दुकान. इन दुकानों में आम जरुरत की चीजें सुलभ हैं. यहाँ के निवासियों के अलावे सामान्यतः ऐसे गलियों का इस्तेमाल मंदिर तक पैदल आने-जाने वाले भक्तगण करते हैं. गलियों में टीका-चंदन लगाये खाली पैर चलते अनेक लोग दिखते हैं. स्थानीय उड़िया भाषा के अलावे पुरी के आम लोग हिन्दी और बांग्ला भाषा समझ लेते हैं, कई लोग बोल भी लेते हैं. 

मंदिर के आसपास फैले बाजार में पूजा-अर्चना की सामग्री से लेकर पीतल-तांबा-एलुमिनियम-लोहा-चांदी आदि के बर्तन व सजावट की वस्तुएं फुटपाथ तथा बड़े दुकानों में मिलती हैं. हैंडलूम के कपड़े एवं पोशाक का एक बड़ा बाजार है पुरी. यहां की बोमकई, संबलपुर एवं कटकी साडियां महिला पर्यटकों को काफी पसंद आती हैं. इसके अलावे हेंडीक्राफ्ट के कई अच्छे कलेक्शन भी उपलब्ध हैं. सुबह से रात तक यहाँ बहुत चहल-पहल रहती है. पर्व -त्यौहार  के अवसर पर तो यहाँ बहुत भीड़ और चहल-पहल  होना स्वभाविक है. मंदिर  के सामने यातायात को कंट्रोल करते कई पुलिसवाले हैं. यहां-वहां चौपाया पशु भी दिखते हैं.

बताते चलें कि पुरी में दूध से बनी मिठाइयों की क्वालिटी बहुत अच्छी है और ये सस्ती भी हैं. इससे यह अनुमान लगाना सहज है कि पुरी और उसके आसपास दूध प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है. हो भी क्यों नहीं, हमारे श्री जगन्नाथ अर्थात श्री कृष्ण अर्थात श्री गोपाल को दूध, दही, मक्खन इतना पसंद जो रहा है. फिर, उनके असंख्य भक्तों के पीछे रहने का सवाल कहां. हाँ, एक बात और. मौका  मिले तो राबड़ी, रसगुल्ला व दही का स्वाद जरुर लें. मंदिर के आसपास इनकी कई दुकानें हैं.  

करीब चार लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैले श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए सुरक्षा के मानदंडों का पालन अनिवार्य है. मोबाइल, कैमरा आदि बाहर बने काउंटर पर जमा करके ही अन्दर जाने की अनुमति है. मंदिर में प्रवेश के लिए चार द्वार हैं. पूर्व दिशा में स्थित है सिंह द्वार, जिसे मंदिर का मुख्य द्वार भी कहते हैं. पश्चिम द्वार को बाघ द्वार, उत्तर को हाथी द्वार और दक्षिण ओर स्थित द्वार को अश्व द्वार कहा जाता है.
...आगे जारी.                                (hellomilansinha@gmail.com)

                     और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित 

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