Thursday, July 28, 2016

यात्रा के रंग : नदी, पेड़ -पौधे, पर्वतमाला और सुहाना मौसम

                                                                                   - मिलन सिन्हा 

... गतांक से आगे ... हमारी कार 'तीस्ता ' नदी पर बने एक पुल के पार आकर रुक गयी. हम सिलीगुड़ी –गंगटोक राजमार्ग यानी एन.एच -10 पर थे और अब सिक्किम प्रदेश में प्रवेश करने वाले थे. इस स्थान को रंगपो के नाम से जाना जाता है. 'रंगपो ' सिक्किम के पूर्व में अवस्थित एक छोटा-सा क़स्बा है जो सिक्किम और पं. बंगाल की सीमा पर स्थित है. यह क़स्बा सिक्किम में प्रवेश करने का एक मुख्य द्वार है जो तीस्ता नदी के किनारे बसा है. सिक्किम में प्रवेश करनेवाले सभी वाहनों को रंगपो चेक पोस्ट पर पुलिस निरीक्षण के लिए रुकना अनिवार्य होता है. सो, हमारी कार के आगे और कई वाहन निरीक्षण की औपचारिकता पूरी करवाते हुए सरक रहे थे. 

रंगपो चेक पोस्ट पर पहुँचते ही सिक्किम पुलिस और पीछे छूटे पं. बंगाल पुलिस के बीच का फर्क सहज ही दिख गया. इस चेक पोस्ट पर तैनात पुरुष और महिला पुलिसकर्मी दोनों ही चुस्त-दुरुस्त एवं अपने काम में ज्यादा दक्ष दिखे. उनकी उम्र भी पैंतीस वर्ष से कम प्रतीत हुआ. ड्राइवर ने बताया कि वाहनों को चेक करने एवं वहां से आगे निकालने के लिए वे एक मानक प्रक्रिया का पालन करते हैं, जो पारदर्शी भी है. 

चेक पोस्ट से थोड़ा आगे बढ़ने पर सिक्किम के पहले बाजार में हम रुके. सड़क के दोनों ओर शराब सहित अन्य खान-पान की चीजें उपलब्ध थी. एक रेस्तरां में कुछ अल्पाहार लेने के बाद हम सिक्किम की राजधानी ‘गंगटोक’ की ओर बढ़ चले. सड़क की स्थिति बेहतर थी. गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ी. कलकल कर बहती तीस्ता नदी से मिलते –बिछुड़ते हम सिंगतम के रास्ते पहाड़ पर चढ़ते जा रहे थे, एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर. आसपास का दृश्य बहुत ही मनोरम था. पहाड़ विविध प्रकार के वनस्पतियों से आच्छादित. मोबाइल में ही उन दृश्यों को कैद करने का प्रयास जारी था. साथ में डर भी था कि मोबाइल की बैटरी न ख़त्म हो जाए. गंगटोक पहुंचने तक बैटरी लाइफ को बचाते हुए चलने की मजबूरी थी. लिहाजा, ज्यादातर दृश्य मन-मानस में अंकित करने का प्रयास करने लगा.

बताते चले कि सिक्किम हमारे देश के उत्तर पूर्व भाग में अवस्थित एक पर्वतीय राज्य है. नजदीकी एअरपोर्ट बागडोगरा, जो पश्चिम बंगाल के दूसरे बड़े शहर सिलिगुरी से 11 किलोमीटर की दूरी पर है, से गंगटोक की दूरी करीब 125 किलोमीटर है. गंगटोक समुद्र तल से 5410 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित है. जनसंख्या की दृष्टि से यह भारतीय गणतंत्र का सबसे छोटा राज्य है, तथापि भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से यह विविधताओं से भरा प्रदेश है. सिक्किम की सीमा पं. बंगाल के साथ –साथ  नेपाल, भूटान, तिब्बत-चीन जैसे देशों से लगी है, इस कारण इसका सामरिक महत्व बढ़ जाता है. तीस्ता नदी को, जो सिक्किम के उत्तर से दक्षिण की ओर पूरे वेग से बहती है, इस प्रदेश का लाइफ –लाइन कहा जाता है. इस नदी में आपको रीवर राफ्टिंग का आनंद लेते युवाओं की टोली अनायास ही दिख जायेगी. यहाँ कई पन-बिजली उत्पादन केन्द्र हैं, जिससे पूरे सिक्किम को बिजली की आपूर्ति की जाती है. प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न इस प्रदेश में 25 से ज्यादा पर्वत चोटियां हैं, जिनमें विख्यात कंचनजंघा की चोटी सबसे ऊंची है. यहाँ दो सौ से ज्यादा छोटी –बड़ी झीलें हैं. शायद यही सब कारण है कि सिक्किम के रेल और हवाई मार्ग से न जुड़े होने के बावजूद यह हमारे देश के उत्तर पूर्व का एक प्रमुख पर्यटन केन्द्र है.


गाड़ी चल रही थी और घड़ी की सुई भी. एक बोर्ड पर नजर पड़ी, लिखा था रानीपुल – अब गंगटोक बस 12 कि.मी. दूर. पूछने पर ड्राईवर ने बताया कि इसे गंगटोक का ही हिस्सा माना जाता है, क्यों कि यह गंगटोक नगर निगम के अंतर्गत ही आता है.  इसे गंगटोक शहर का पूर्वी छोर कह सकते हैं. यहाँ कई स्कूल एवं व्यवसायिक प्रतिष्ठान  के अलावे दो बड़ी दवाई कम्पनी का प्रोडक्शन यूनिट कार्यरत है. पास में ही ‘मेफेयर स्पा रिसोर्ट एवं कैसिनो’ भी है, जिसके कारण यहाँ बराबर चहल–पहल रहती है. 

गंगटोक के मुख्य बाजार तक पहुंचने से पहले ही ट्रैफिक अनुशासन का पता चलने लगा. आने-जानेवाली सभी गाड़ियाँ बिलकुल लाइन में चल रही थी. नो ओवर टेकिंग, नो बेवजह हॉर्न. गाड़ियों की लम्बी कतार थी, पर धीरे–धीरे आगे भी बढ़ती जा रही थी. थोड़ी-थोड़ी दूरी पर वाकी-टाकी लिए स्मार्ट पुलिस कर्मी अपने–अपने काम में लगे थे. 


गंतव्य आ गया था. होटल में पहुँचते ही एक कर्मी ने बताया और फिर दिखाया कि वह देखिए सामने प्रसिद्ध ‘कंचनजंघा ’ पर्वत दिखाई पड़ रहा है. अच्छा लगा.  होटल और उसके आसपास सफाई दिखी. होटल के कमरे में पंखा नहीं था और न ही होटल में जेनेरटर या इन्वर्टर की सुविधा. कारण यह बताया गया कि यहाँ लोड शेडिंग न के बराबर होता है और सालोभर यहाँ का मौसम कमोबेश ठंडा होने के कारण पंखे की जरुरत महसूस ही नहीं होती. बेशक दोपहर के वक्त कभी-कभी गर्मी का एहसास हो जाए. कहने का तात्पर्य, मौसम है सुहाना, दिल है ..... .... आगे आप खुद समझदार हैं.  ...आगे जारी ...
              और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित

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