- मिलन सिन्हा
विविधताओं व विषमताओं
से भरे हमारे विशाल देश में डॉक्टर के क्लीनिक में हो या सरकारी एवं निजी अस्पताल या
नर्सिंग होम में, हर जगह
मरीजों की भीड़ निरन्तर बढ़ती जा रही है । नई -नई बिमारियों के बारे में डॉक्टरों और
शोधकर्ताओं को तरह -तरह की जानकारियां मिल रहीं हैं जो पूरे मानव समाज के लिये परेशान करने वाली बात है । ऐसे तो मौसम के बदलने के साथ
ही सर्दी, जुकाम, बुखार आदि रोगों से पीड़ित
लोगों की संख्या बढ़ ही जाती है । देश में डॉक्टरों की संख्या भी पर्याप्त नहीं है । मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक
एक लाख की आबादी पर मात्र 60 प्रशिक्षित डॉक्टर
काम करते हैं जब कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में ऐसे डॉक्टरों की संख्या कहीं अधिक है, जब कि इन देशों में स्वच्छता, पोषण आदि की स्थिति भी
काफी बेहतर है । मजे की बात यह भी है कि देश में काम करने वाले ऐसे प्रशिक्षित डॉक्टरों
में से केवल 30 % ही गांवों में कार्यरत हैं, जब कि अभी भी देश
की 70 % आबादी गांवों में रहती है । ऐसी स्थिति में ग्रामीण इलाकों में आम लोगों का
नीम -हकीम, ओझा -तांत्रिक आदि के चंगुल में फंसना अस्वाभाविक नहीं है । ऊपर से
तुर्रा यह कि मिलावटी खाना एवं प्रदूषित पानी
से आम आदमी विभिन्न प्रकार के छोटे- बड़े रोग से जूझता रहता है । ऐसी परिस्थिति में
आम लोगों को समय पर सही इलाज के अभाव में असामयिक
मौत या असाध्य रोग का शिकार न होना पड़े, इसके लिए सरकारी और गैर
सरकारी स्तरों में समुचित उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित करना जरूरी है । लेकिन उससे
भी आवश्यक है रोगों के रोकथाम के लिये हर स्तर पर लगातार गंभीर प्रयास करना जिससे आम जनता को मोटे तौर पर स्वस्थ रखा जा
सके । इसके लिये हम सभी को, विशेषकर स्कूल-कॉलेज के युवाओं के
साथ-साथ महिलाओं को रोगों के रोकथाम के प्रति जानकार और जागरूक बनाना पड़ेगा । आखिर, स्वस्थ लोगों से ही कोई भी समाज एवं देश स्वस्थ और मजबूत बनता और रहता है
।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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