- मिलन सिन्हा
अमूमन परीक्षा सिर पर आ जाने पर हमें पढ़ने की आदत है। ऐसे में, बने बनाये नोट्स आदि के मार्फत शॉर्टकट रास्ते से मंजिल तक पहुंचने की पुरजोर कोशिश की जाती है। हालांकि सोचनेवाली बात है कि शॉर्टकट के रास्ते यह तो कई बार संभव हो सकता है कि हम दूसरों से बेहतर नंबर ले आएं, पर विषय की हमारी समझ अपेक्षाकृत कम ही रहती है। लिहाजा, हम उन्नत प्रतियोगिता परीक्षाओं में अंततः असफल होते हैं। और जीवन की बड़ी परीक्षाओं में सफलता कभी-कभार ही हमारे हिस्से आ पाती है। ऐसा भी देखने में आता है कि अंतिम समय में जल्द-से-जल्द गंतव्य तक पहुंचने की चाहत से प्रेरित अनेक लोग ट्रेन, बस आदि के छतों तक में चढ़ कर अनावश्यक जोखिम उठाते हुए यात्रा करते हैं। कहना न होगा, इस प्रकृति के लोग न केवल अनेक मौकों पर दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं, बल्कि कई बार जाने-अनजाने आपराधिक गतिविधियों और जुर्म में भी शामिल पाये गए हैं। नतीजतन, उनकी जिन्दगी एक जोखिम भरे रास्ते पर चल पड़ती है। आखिर लोग ऐसा क्यों करते हैं ? विशेषज्ञ बताते हैं कि शॉर्टकट की मानसिकता वाले लोग मुश्किलों का सामना करने से घबराते हैं और जब कुछ चीजें, चाहे छोटी ही क्यों न हो, इस रास्ते से पाने में सफल हो जाते हैं, तो बस शॉर्टकट ही उनका एक मात्र रास्ता बन जाता है, क्यों कि तब तक तो ऐसे लोगों का आत्मविश्वास पहले की तुलना में काफी नीचे चला जाता है। सार-संक्षेप यह कि शॉर्टकट से हम बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर सकते। इसके विपरीत, लगातार निष्ठापूर्वक किया गया कोई भी काम देर-सबेर हमें इच्छित मंजिल तक पहुंचाने की गारंटी देता है। और जब भी ऐसा होता है, हम न केवल खुद को उस उपलब्धि के लायक मानते हैं, बल्कि इससे हमारा आत्मविश्वास भी कई गुना बढ़ जाता है। ऐसे भी, कोई मेहनत से भाग कर अपने काम करने की शक्ति को कैसे बढ़ा सकता है? इतिहास भी गवाह है कि किस्मत मेहनतकश लोगों का ही साथ देती है। हेनरी फोर्ड भी ऐसा मानते थे और खूब मेहनत करते थे।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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