Saturday, November 3, 2012

आज की कविता : यही है बस

                                      - मिलन सिन्हा 

बस, यही है बस।
हमारे  गांव की बस 
सभी गांवों की बस 
ऊपर नीचे लोग ठसाठस 
बराबर दौड़ती रहती है यह 
चांदनी हो या हो अमावस 
बस, यही है बस।

जाति -पांति मिटानेवाली बस 
सबको साथ ले चलनेवाली बस 
जहां कहो रुकनेवाली  बस 
छोटे - बड़े सबकी बस 
समाजवाद का नमूना है बस 
बस, यही है बस।

हमारे गांव जैसी है यह बस 
टूट रही है, उजड़ रही है बस 
गरीबी, बेकारी की कहानी है बस 
शहर में झोपड़पट्टी जैसी है बस
हर समय हमें झकझोरती है बस 
बस, यही है बस।

('हिन्दुस्तान ' में 10 जुलाई,2003 को प्रकाशित)

                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलतेअसीम शुभकामनाएं

1 comment:

  1. Just awesome!!
    Please keep it up and carry on !

    K.N.Mann

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