Wednesday, September 18, 2024

कामयाब होना मुश्किल नहीं

                           - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड वेलनेस  कंसलटेंट


जीवन के हर क्षेत्र में आजकल चाहे-अनचाहे कई कार्यों या प्रोजेक्ट्स को नियत समय सीमा के अन्दर अंजाम तक पहुंचाने की सामान्य अपेक्षा खुद की और दूसरों की भी होती है. समय सीमित होता है और टास्क अनेक. ऐसे अवसरों पर अनेक लोगों के लिए यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि किस काम को पहले और किसे थोड़ी देर बाद में करें जिससे कि सब कुछ ठीक से निष्पादित हो जाय, खासकर सभी महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्य और वह भी यथोचित गुणवत्ता के साथ. सबको मालूम है कि गुणवत्ता दुष्प्रभावित होने का खामियाजा स्वयं के साथ-साथ संस्थान को भी उठाना पड़ता है. ऐसे में मेंटल प्रेशर बढ़ता है और खुद को संयत रखना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. 


कहने को तो सुबह उठने से लेकर रात में सोने से पहले तक सामान्यतः हर कोई पढ़ाई, परीक्षा, प्रतियोगिता, रोजगार, नौकरी आदि के प्रेशर  के बीच किसी-न-किसी काम में व्यस्त रहता है. लेकिन कैसे व्यस्त रहता है, इस पर गौर करना बहुत जरुरी होता है. हममें से कुछ लोग सुबह पहले जो भी सरल एवं आसान काम सामने होता है, उसे निबटाने में लग जाते हैं. लिहाजा, आवश्यक या महत्वपूर्ण या कठिन और मुश्किल काम या तो बिल्कुल नहीं हो पाता है या शुरू तो होता है, लेकिन एकाधिक कारणों से नियत समय में पूरा  नहीं हो पाता है. इस वजह से अहम काम या तो छूट जाते हैं या अधूरे रह जाते हैं. वे काम अगले दिन के एजेंडा में आ तो जाते हैं, लेकिन आदतन अगले दिन भी ऐसा ही कुछ होता है. इस तरह अध्ययन  हो या अन्य कार्य, छोटे, सरल और कम या गैर-जरुरी काम तो किसी तरह होते रहते हैं, किन्तु महत्वपूर्ण और आवश्यक  कार्यों का अम्बार खड़ा होता रहता है. ऐसे में उतने सारे अहम कार्यों को तय सीमा में पूरा करना उन्हें  मुश्किल ही नहीं, असंभव लगने लगता है. इसका बहुआयामी दुष्प्रभाव उनके परफॉरमेंस और रेटिंग पर पड़ना लाजिमी है. ऐसी स्थिति में आत्मविश्वास डोलने लगता है; बहानेबाजी और शार्ट-कट का सिलसिला चल पड़ता है. धीरे-धीरे ऐसे लोगों को अपने  ज्ञान, कौशल एवं क़ाबलियत पर अविश्वास-सा होने लगता है. उनको कठिन कार्यों से डर और घबराहट होने लगती है. सफलता उनसे दूर होती जाती है. धीरे-धीरे वे लोग खुद को औसत या उससे भी कम क्षमतावान मानने लगते हैं और दूसरों की नजर में भी वैसा ही दिखने लगते हैं.


इसके विपरीत कुछ लोग सुबह पहले आवश्यक, महत्वपूर्ण और कठिन काम को यथाशक्ति अंजाम तक पहुँचाने में लग जाते हैं. अपने प्रयास में कोई कमी नहीं होने देते और अपनी सफलता के प्रति पूरा विश्वास बनाए रखते हैं. पाया गया है कि सामान्यतः उन्हें अपने प्रयास में सफलता मिलती है. अपवाद स्वरुप अगर कभी सफल नहीं होते हैं, तो बिना निराश हुए और अच्छे तरीके के दोबारा प्रयास करते हैं. यकीनन सभी अहम काम पूरा हो जाने पर उन्हें  संतोष और खुशी दोनों मिलती है. अंदर से एक फील-गुड फीलिंग उत्पन्न होती है जिससे वे अतिरिक्त उत्साह और उमंग से भर जाते हैं. आत्मविश्वास में इजाफा तो होता ही है. अब वे बहुत आसानी और तीव्रता से आसान कार्यों को कर लेते हैं. शायद ही उनका कोई जरुरी काम छूटता है. इस तरह वे अपने सभी काम को निर्धारित समय सीमा के भीतर निष्पादित करते हैं. अगले दिन काम करने की उनकी यही शैली होती है. वे चुनौतियों से घबराते  नहीं, बल्कि उनके स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार रहते हैं. उनके लिए हर दिन एक नया दिन होता है और हर बड़ी-छोटी चुनौती से सफलतापूर्वक निबटना उनका मकसद.


दरअसल, आपको जब आज के तेज रफ़्तार कार्य संस्कृति में कई बार सबकुछ फटाफट एवं अच्छी तरह करना होता है, तब प्राथमिकता तय करके कार्य करना अनिवार्य होता है. नोट करने वाली बात यह है कि लगातार अच्छी सफलता अर्जित करनेवाले सभी लोग प्राथमिकता तय करके काम करने को कामयाबी तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण सूत्र मानते हैं. यहां  एलन लेकीन की इस बात पर गौर करना फायदेमंद होगा कि अपनी प्राथमिकताओं की समीक्षा करें और यह सवाल पूछें – "हमारे समय का इस वक्त सबसे अच्छा उपयोग क्या है." इससे यह बात स्पष्ट होती है कि अगर अगले कुछेक घंटे में कई विषयों को पढ़ने या कई टास्क को पूरा करने की चुनौती हमारे  सामने होती है, तो उसमें से  कौन-सा पहले करें और कौन-सा बाद में, अपनी समझदारी से 'प्राथमिकता के सिद्धांत' को लागू करते हुए हम उन सबको को अति महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण और कम महत्वपूर्ण  की तीन श्रेणी में बांट लेते हैं. और फिर प्राथमिकता के उसी क्रम को सामने रखकर न केवल सभी टास्क को यथासमय निबटाते हैं, बल्कि आगे उसके परिणाम में बेहतरी भी सुनिश्चित करते रहते हैं. हां, ऐसे समझदार लोग जरुरत पड़ने पर प्राथमिकता में थोड़ा-बहुत परिवर्तन के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार भी रहते हैं, जिससे कि सभी काम उसके टाइमलाइन के हिसाब से पूरा हो जाय. कहना न होगा, जीवन के हर क्षेत्र में अत्यंत सफल, सफल और कम सफल लोगों  के बीच एक बड़ा फर्क प्राथमिकता प्रबंधन में उनकी दक्षता से भी तय होता है. 

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Saturday, April 15, 2023

जुनून है जरुरी

                                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड वेलनेस  कंसलटेंट









9 अप्रैल, 2023 को अहमदाबाद के नरेन्द्र मोदी स्टेडियम में गुजरात टाइटन्स   और कोलकाता नाईट राइडर्स (केकेआर) के बीच खेले गए आईपीएल 20-20 मैच का समापन बेहद रोमांचक और अविस्मरणीय रहा. हो भी क्यों नहीं? जीत के लिए केकेआर को अंतिम पांच गेंद पर 28 रन बनाने थे, जो नामुमकिन प्रतीत हो रहा था, लेकिन केकेआर टीम के एक कम ज्ञात बल्लेबाज रिंकू सिंह ने एक के बाद एक पांच छक्के जड़ कर अपनी टीम की जीत को मुमकिन बना दिया. 

आईपीएल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी टीम ने मैच के आखिरी ओवर में इतने रन बनाकर जीत हासिल की हो. इस तरह रिंकू ने एक नया इतिहास रच दिया और रातोंरात आईपीएल क्रिकेट का हीरो बन गया. सोशल मीडिया में बॉलीवुड के सितारों सहित हजारों लोगों ने रिंकू सिंह के क्रिकेट के प्रति जुनून के बारे लिखा और उसकी भरपूर प्रशंसा की. दरअसल रिंकू ने अपने इन पांच छक्कों के माध्यम से युवा पीढ़ी को पांच संदेश दिए हैं, ऐसा मैं मानता हूँ . क्या हैं वे पांच संदेश, आइए जानते हैं. 

1. लक्ष्य के प्रति समर्पण: रिंकू की जिन्दगी पर नजर डालने पर एक बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि वह शुरू से ही  क्रिकेट के प्रति पूर्णतः समर्पित रहा है. उसने क्रिकेट को अपना लक्ष्य बनाया और उस दिशा में तन -मन से लग गया. सच कहें तो उसने स्वामी विवेकानन्द की उस कथन को अपने जीवन में उतार लिया जिसमें स्वामी जी कहते हैं कि एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ. उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये.

2. कठिनाइयों से घबराना नहीं: हिन्दी फिल्म इम्तिहान का एक गाना है - रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, काँटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के. रिंकू सिंह की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर गौर करें तो पता चलेगा कि आर्थिक तंगहाली के बीच कैसे एक लड़के ने कभी हिम्मत नहीं हारी और तमाम कठिनाइयों के बीच क्रिकेट के प्रति अपने जुनून को बनाए रखा और न केवल खुद निरंतर आगे बढ़ते रहे, बल्कि हमेशा अपने परिवार की आर्थिक उन्नति का जरिया बने. 

3. कड़ी मेहनत करना: क्रिकेट हो या अन्य कोई भी खेल, राष्ट्रीय -अंतर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचना और वहां अपनी एक पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं है, क्यों कि हर खेल में आजकल बहुत प्रतिस्पर्धा है. इसके लिए कोई शॉर्टकट तरीका नहीं है. बस लगातार कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. प्रसिद्ध अमेरिकी फुटबॉल खिलाड़ी तथा कोच विन्सेंट थॉमस लोम्बार्डी सही कहते हैं कि लीडर  पैदा  नहीं  होते, खुद बनते हैं - कड़ी मेहनत की वजह से. और  यही  वो  कीमत  है  जो  इस  या  किसी  और  लक्ष्य   को  प्राप्त  करने  के  लिए  चुकानी  पड़ती  है. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के इस लड़के ने इस बात को गांठ बांध ली  और कभी कड़ी मेहनत से जी नहीं चुराया. 

4. संयम रखना: इतिहास के पन्ने संयम से सफलता तक पहुंचनेवाले नायकों से भरे पड़े हैं. अब उसमें एक नाम रिंकू का भी जुड़ गया है. ऐसा इसलिए कि रिंकू ने हमेशा संयम का दामन थामे रखा. वह कई बार अपनी टीम के फाइनल सोलह में तो रहता था लेकिन फाइनल प्लेयिंग ग्यारह में आने से वंचित रह जाता. टीम में होने के बावजूद मैदान में मैच खेलने के बजाय बाहर बैठा खेल देखता, उससे सबक लेता,  रेगुलर प्रैक्टिस करता और अपने सीनियर्स पर भरोसा करता. 9 अप्रैल को खेले गए मैच के अंतिम ओवर में उसने जिस संयम का परिचय दिया उसकी तारीफ सब लोग कर रहे हैं. 

5. अवसर का सही उपयोग: सबके जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब आप कुछ नायाब और अदभुत काम कर सकते हैं. अगर आपने रिकू की तरह उस अवसर का सही उपयोग किया तो यकीनन आप सबको प्रभावित करेंगे और अभूतपूर्व उपलब्धि के हकदार बनेंगे. इससे आपकी एक अलग पहचान बनेगी, आर्थिक फायदे मिलेंगे, आप मोटिवेटेड फील करेंगे, आपका आत्मविश्वास बहुत बढ़ जाएगा और भविष्य में अवसर ने नए-नए द्वार खुलने लगेंगे. इन सबका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ आपके परिवार, टीम या संस्था को भी होगा. निसंदेह रिकू सिंह जैसे युवा इसका ज्वलंत उदाहरण हैं. 

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Thursday, February 2, 2023

जानें, सीखें और आगे बढ़ें

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 


हाल ही में  पराक्रम दिवस पर आयोजित "अपने नेता को जानो" कार्यक्रम के दौरान देश भर से आए युवाओं के साथ संवाद करते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें महान एवं विख्यात लोगों  की बायोग्राफी-ऑटोबायोग्राफी यानी जीवनी-आत्मकथा पढ़ने की बहुत अच्छी सलाह दी.
  मेरा  मत है कि युवाओं के साथ-साथ हरेक व्यक्ति को  इस सुझाव पर अमल करना चाहिए. यकीनन इसके बहुआयामी फायदे हैं. आइए, कुछ महत्वपूर्ण फायदों की चर्चा करते हैं. 


जीवन परिचय:
इसके जरिए आपको महान लोगों का विस्तृत जीवन परिचय मिलता है. जन्म से लेकर मृत्यु तक उनकी जीवन यात्रा में आए उतार-चढ़ाव, विभिन्न पडावों और छोटे-बड़े मुकामों की जानकारी मिलती है. आप उनकी पारिवारिक स्थिति के साथ-साथ उस समय की शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक-प्रशासनिक परिवेश से अवगत होते हैं. इन जानकारियों से वर्तमान में खुद की  स्थिति-परिस्थिति से उसकी तुलना करना और उनमें से अच्छी बातों को जानना-समझना और उसे अपने जीवन में उतारना आसान हो जाता है. आप उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं और धीरे-धीरे उनसे जुड़ते चले जाते हैं. सच कहें तो "वे कर सकते हैं तो हम भी कर सकते हैं" जैसी सकारात्मक भावना आपके अन्दर भी आ जाती है. 


प्रेरणा:
उनके जीवनी के अध्ययन से आपको उनके व्यक्तित्व के अनेक अनजाने महत्वपूर्ण पहलुओं से परिचित होने का मौका मिलता है. आप अनायास ही यह जान पाते हैं कि ऐसे लोगों ने  किस तरह बड़े-बड़े लक्ष्यों को प्राप्त किया, जब कि उसी परिस्थिति में और उसी काल खंड में उनके जैसे अन्य हजारों-लाखों लोग वैसा कुछ नहीं कर पाए. इन बातों को जानकार आपको बहुत अच्छा लगता है और आप खुद को कुछ वैसा ही विशिष्ट कार्य करने के प्रति उत्साहित और प्रेरित महसूस करते हैं. अपने देश के सार्वजनिक जीवन में असाधारण सफलता हासिल करनेवालों के जीवन पर नजर डालें, चाहे वे महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, लालबहादुर शास्त्री, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय या अब्दुल कलाम हों, सबने किसी-न-किसी महान व्यक्ति से प्रेरणा ग्रहण की और अपने जीवन पथ पर दृढ़ संकल्प और समर्पण से आगे बढ़ते गए. 

  
प्रयास करते रहें:
महान लोगों के बारे में पढ़ने से आपका यह विश्वास और मजबूत होता है कि यथाशक्ति और यथाबुद्धि हमेशा प्रयास करते रहना चाहिए, क्यों कि सतत प्रयास से ही सफलता हासिल होती है. जो प्रयास ही नहीं करेगा उसके सफल होने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता. दूसरी बात यह कि प्रयास करनेवाले ही असफल होते हैं. जिसने प्रयास तक नहीं किया, उसकी सफलता-असफलता की तो कोई चर्चा ही नहीं करता, जैसे कि जो खिलाड़ी मैच खेलने मैदान में उतरा ही न हो, उसके जीतने-हारने की चर्चा बेमानी होती है. एक अहम बात और. ऐसे विभूतियों के जीवन से आपको यह सबक मिलती है कि अपने प्रयास के प्रति वे कितनी  निष्ठा, प्रतिबद्धता और नियमितता का आस्थापूर्वक पालन करते थे. इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. देश भर में जिस नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस को पराक्रम दिवस के रूप मनाया जाता है, उनका जीवन भी उत्कृष्ट प्रयास की पराकाष्ठा की कहानी कहता है. 



चुनौतियों व समस्याओं  से निबटने की सीख:
सबको अपने जीवन में कम या ज्यादा चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उनसे निबटने के सबके तरीके एक जैसे नहीं होते. महान लोगों के जीवन की चुनौतियां एवं समस्याएं स्वाभाविक रूप से बड़ी और कई बार असाधारण होती है. प्रतिकूल परिस्थिति में भी वे उनसे सफलतापूर्वक निबटने के लिए जाने जाते हैं. उनकी जीवनी के अध्ययन से आप उनके ऐसे अनुभवों से परिचित होते हैं. कहते हैं कि एक साधारण व्यक्ति केवल अपने अनुभवों से सीखता है, जब कि एक बुद्धिमान व्यक्ति दूसरों के अनुभवों से भी सीखता रहता है. कहने का अभिप्राय यह कि देश-विदेश के विभूतियों के जीवनवृत्त से परिचित होकर आप अपने जीवन की चुनौतियों और समस्याओं का बेहतर ढंग से सामना कर सकते हैं और सफलता के नए-नए कीर्तिमान बना सकते हैं.  

   
संयम बनाए रखें:
संयम के बिना सफलता नहीं मिलती है. दरअसल, जीवन में संयम का पालन करना कामयाबी की कुंजी है. असंख्य गुणीजनों ने जीवन  में संयम की अनिवार्यता एवं अहमियत को अपने कर्मों से साबित किया है और रेखांकित भी. शोध कार्य में लगे विद्वानों-वैज्ञानिकों को जरा गौर से काम करते हुए देखिए  या उनके विषय में पढ़िए तो आपको पता  चलेगा कि संयम का दामन थामकर वे साल-दर-साल तन्मयता से परिश्रम करते रहते हैं, तब कहीं जाकर वे अपने शोध कार्य को पूरा कर पाते हैं. दुनिया में हुए तमाम आविष्कारों का इतिहास अगर हम पढ़ें तो संयम  की महत्ता का प्रमाण स्वतः मिल जाएगा. विलियम शेक्सपियर कहते हैं, "वे कितने निर्धन हैं जिनके पास संयम नहीं है." सही बात है. अपने देश के ही महान वैज्ञानिकों जैसे जगदीश चन्द्र बोस, सी.वी. रमण, सत्येन्द्र बोस, होमी भाभा, विक्रम साराभाई, राजा रमन्ना आदि की ही  बात करें तो वे सभी अदभुत संयम से असाधारण सफलता तक की यात्रा के ज्वलंत उदाहरण रहे हैं.   (hellomilansinha@gmail.com) 

 
      
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Thursday, January 5, 2023

हेल्थ पॉइंट : फेफड़े को हेल्दी रखने हेतु खानपान में शामिल करें ये चीजें

                                             - मिलन  सिन्हा,  स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट 

जाड़े के मौसम में हर साल देश की राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक प्रदेशों में धुन्ध, कुहासा और कोहरा का प्रकोप जारी रहता है. इन इलाकों में प्रदूषण, खासकर वायु प्रदूषण के कारण स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है. लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है. श्वसन तंत्र में समस्या और खासकर फेफड़े में तकलीफ के कारण लोग ज्यादा परेशान रहते हैं. कोरोना महामारी के लम्बे दौर से गुजरने के बाद तो लंग्स को हेल्दी रखना और भी ज्यादा जरुरी हो गया है. हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए खानपान में कुछ जानी-पहचानी चीजों को शामिल करना बहुत लाभदायक होता है. आइए जानते हैं.


टमाटर:  इसमें लाइकोपीन होता है जो लंग्स को हेल्दी रखने में मदद करता है. कई रिसर्च यह बताते हैं कि फेफड़ों के संक्रमण और अस्थमा की समस्या से ग्रसित लोगों को टमाटर के सेवन से काफी लाभ मिलता है. इसमें फॉस्फोरस, कैल्शियम और विटामिन-सी अच्छी मात्रा में मौजूद रहता है. इसके सेवन से वात व कफ संबंधी विकारों को दूर करने में मदद मिलती है.   


गाजर: नाश्ते और दोपहर के भोजन के दौरान गाजर या गाजर के रस का सेवन करें, जिससे कि फेफड़ों की सफाई हो सके. दरअसल, गाजर बीटा कैरोटीन का एक अच्छा स्रोत है, जो एक  शक्तिशाली एंटी-ऑक्सिडेंट के रूप में काम करता है.  


अदरक:
अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो श्वसन तंत्र से विषाक्त चीजों को बाहर निकलने में सहायता करता है. इसमें पोटेशियम, मैग्नीशियम, बीटा कैरोटीन और जिंक सहित कई विटामिन और खनिज मौजूद हैं. फेफड़ों के कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में यह कारगर हैं. अतः व्यंजन आदि  में अदरक को शामिल करें  और सुबह-शाम अदरक की चाय को एन्जॉय करें.  


लहसुन:
इसमें एलिसिन नामक एक पदार्थ होता है, जो एक शक्तिशाली एंटी-बायोटिक एजेंट के रूप में काम करता है और हमारे फेफड़ों को संक्रमण से निपटने में मदद करता है. यह सूजन को कम करने, अस्थमा में सुधार करने और फेफड़ों के कैंसर के रिस्क को कम करने में मदद करता है. इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है.


तुलसी का काढ़ा और ग्रीन टी:
  तुलसी, अदरक, गोल मिर्च, दालचीनी और लोंग से बने हुए काढ़ा का सेवन करें. इससे लंग्स काफी मजबूत होते हैं. उसी तरह सुबह –शाम ग्रीन टी का सेवन कर सकते हैं. इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं जो लंग्स के लिए काफी अच्छे माने गए हैं.
हल्दी:  एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बायोटिक और  एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण इसके सेवन से हर तरह के संक्रमण से बचाव होता है. यह हमारे फेफड़ों को साफ करने में मदद करता है. सब्जी और दाल बनाने में इसका थोड़ा ज्यादा उपयोग करने और रात में सोने से पहले दूध में थोड़ा हल्दी डालकर सेवन करने से लाभ होता है.


सेब एवं अनार:
यह दोनों ही फल फेफड़ों की सफाई में मदद करता है. इनके सेवन से विटामिन बी, सी, के और ई के साथ-साथ आयरन, पोटेशियम, जिंक और ओमेगा-6 फैटी एसिड जैसे पोषक तत्व मिल जाते हैं. लंग्स कैंसर जैसी गंभीर रोग से बचाव में भी ये कारगर भूमिका अदा करते हैं.


शहद: 
यह एक प्रभावी प्राकृतिक औषधि है. इसमें एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं. इसका सेवन करने से हमारे फेफड़े स्वस्थ रहते हैं. सुबह शौच आदि से निवृत होकर एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू और शहद डालकर पीना बहुत लाभकारी होता है.


ब्रोकली और अन्य हरी सब्जियां:
सर्दी के मौसम में उपलब्ध ब्रोकली सहित अन्य हरी सब्जियों में कई ऐसे विटामिन और मिनरल्स मौजूद होते हैं जो सांस से जुड़ी परेशानियों से राहत दिलाने में असरदार  साबित होते हैं. इतना ही नहीं, इनके सेवन से  फेफड़ों की सफाई और उसे हेल्दी बनाए रखना आसान होता है.


काली मिर्च:
यह विटामिन-सी का एक अच्छा स्रोत है. विटामिन-सी को एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट माना जाता है. वात व कफ संबंधी विकारों और श्वास रोगों में इसका सेवन  लाभकारी साबित होता है. इन्हीं गुणों के कारण यह न केवल फेफड़ों को लंबे समय तक स्वस्थ रखने में मदद करता है, बल्कि फेफड़ों के रोग से पीड़ित रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है. 

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Saturday, December 24, 2022

वर्ल्ड कप से सीखें प्रबंधन के सबक

                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

अभी-अभी क़तर में 2022 फीफा वर्ल्ड कप का रोमांचक और यादगार समापन हुआ है.  फाइनल मैच में खेल के 79वें मिनट तक दो गोल से आगे रहने वाले अर्जेंटीना को जिस तरह अगले दो मिनटों में फ्रांस के युवा खिलाड़ी एम्बापे के दो गोल का स्वाद चखना पड़ा, इसकी कल्पना शायद ही किसी  ने की होगी. लेकिन सम्प्रति फुटबॉल के जादूगर कहे जानेवाले लियोनेल मेसी की टीम अर्जेंटीना के मन में जीत का जज्बा कायम था. फलतः उस ऐतिहासिक मैच में अगले दस मिनट और फिर एक्स्ट्रा टाइम के उपरान्त पेनल्टी स्ट्रोक के माध्यम से अर्जेंटीना को  फुटबॉल का विश्व विजेता बनने का गौरव हासिल हुआ. यह यकीनन अभूतपूर्व था.  रैंकिंग में टॉप दस टीमों के प्रदर्शन पर गौर करने पर यह बात साफ हो जाती है कि तमाम उतार-चढ़ाव  के बावजूद फाइनल में पहुंचने वाले दोनों देशों के खिलाड़ियों के  मन में यह विश्वास बना रहा कि हम होंगे कामयाब और फलतः बेहतर कोशिश के जरिए उन्होंने इस मुकाम को हासिल किया. सवाल है कि आखिर ऐसे टीम के खिलाड़ी  कौन सी रणनीति अपनाते हैं जो उन्हें सफलता के अंतिम मुकाम तक पहुंचाता है. इन बातों से शिक्षा सहित हर क्षेत्र में सक्रिय सभी युवाओं को लाभ मिलेगा. तो आइए इस पर थोड़ी चर्चा करते हैं.



लक्ष्य के प्रति समर्पण: बिना पूर्ण समर्पण की भावना के लक्ष्य तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता है, कई बार तो असंभव भी. स्वामी विवेकानंद युवाओं से बराबर यही बात तो कहा करते थे. खैर, फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल जैसे खेलों में जैसे गोलपोस्ट निर्धारित रहता है वैसे ही आपका गोल यानी लक्ष्य निर्धारित होना अनिवार्य है . स्पोर्टस आपको यह बखूबी सिखाता है और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण हेतु प्रेरित भी करता है. लुईस ग्रीज़र्ड ने सही कहा है कि "ज़िन्दगी का खेल काफी कुछ फुटबॉल की तरह है. आपको अपनी समस्याओं से जूझना पड़ता है, अपने डर को ब्लॉक करना पड़ता है, और जब मौका मिले तब अपना पॉइंट स्कोर करना होता है."  खेल सहित जीवन के हर क्षेत्र में कमोबेश यही सिद्धांत लागू होता है. 


उत्साह और ऊर्जा: अपने काम के प्रति सदैव बहुत उत्साहित रहना  सफलता का एक अहम पायदान होता है. उत्साह का स्पष्ट मतलब होता है लक्ष्य के प्रति आपका लगाव और समर्पण. और जब किसी चीज के प्रति यह लगाव और समर्पण रहता है तो उस चीज को हासिल करने के लिए आगे की कार्ययोजना आप खुद बनाने में जुट जाते हैं. हां, केवल उत्साह से काम संपन्न नहीं होता. इसके लिए अपेक्षित ऊर्जा की जरुरत होती है. ऐसे अनेक उदाहरण  मिल जायेंगे जब कोई युवा अभीष्ट कार्य तो करना चाहता है, लेकिन ऊर्जा की कमी के कारण उसे कर नहीं पाता है. अतः अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित  सभी युवा खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखते हैं. यहां सिर्फ वर्ल्ड कप फाइनल मैच की ही बात करें तो आपको कभी भी मेसी, एम्बापे, मार्टिनेज या दोनों टीमों के किसी भी खिलाड़ी में उत्साह और ऊर्जा की कमी दिखाई दी?   

 
योजना और कार्यान्वयन: सब जानते हैं कि किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए यथोचित कर्म करना बहुत जरुरी होता है. इसके लिए पहले फुलप्रूफ योजना बनाना और फिर उस योजना  को सही ढंग से कार्यान्वित करना उतना ही अनिवार्य होता है. अनेक उदाहरण आसपास ही मिल जायेंगे जहां युवा विशेष ने लक्ष्य तो बड़ा तय कर लिया, लेकिन उसे हासिल करने के लिए अपेक्षित प्लानिंग  एंड एग्जिक्युसन के मामले में वह सही कदम नहीं उठा पाया. खुशी की बात  है कि फुटबॉल के इस महाकुम्भ में सभी टीम कमोबेश प्रबंधन के इस अहम सूत्र का पालन करते नजर आए. 

 
समय प्रबंधन और आत्मविश्वास:  किसी भी खेल में इनका अतिशय महत्व होता है. यह अकारण नहीं है. अगर 90 मिनट के फुटबॉल मैच में या 70 मिनट के हॉकी मैच में तय समय के अन्दर गोल कर सकें तो यह बेहतर खेल का परिचायक होता है. आपकी टीम ने शुरुआती कुछ मिनटों में या मध्यांतर से पहले दो-तीन गोल करके बढ़त हासिल कर ली तो प्रतिद्वंदी टीम पर दवाब बनाना आसान हो जाता है, जिसका असर खेल के अंत तक रहता है. बेहतर समय प्रबंधन  से हासिल सफलता से आपका और पूरी टीम का आत्मविश्वास भी बढ़ता है. अर्जेंटीना की टीम ने शुरूआती 36 मिनट के भीतर ही दो गोल करके इसे चरितार्थ किया.   


टीम वर्क एवं समावेशी सोच: फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल,  क्रिकेट जैसे सभी  खेल टीम के रूप में खेले जाते हैं. आप कितने भी योग्य हों और आपका व्यक्तिगत योगदान कितना भी  महत्वपूर्ण हो , लेकिन उसकी कीमत तब कम हो जाती है जब आप एक टीम के रूप में अपना 100 % नहीं दे पाते हैं.  देखा गया है कि व्यक्तिगत रूप से सभी खिलाड़ियों का स्तर बेहतर होते हुए भी टीम मैच नहीं जीत पाती है, क्यों कि खिलाड़ियों में टीम भावना की कमी थी. कहने की जरुरत नहीं कि खेल के मैदान में हमें यह अहम सीख मिलती है कि हम कैसे टीम वर्क और समावेशी सोच के साथ न केवल खेल प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल करें, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो सकें. फाइनल मैच में नियमित 90 मिनट और बाद के एक्स्ट्रा टाइम के 30 मिनट के खेल में अर्जेंटीना के एक और फ्रांस के दो पेनल्टी स्ट्रोक की बात छोड़ दें तो अन्य तीनों  गोल में टीम वर्क और आपसी तालमेल का अदभुत प्रदर्शन हुआ. 


नियमित कड़ी मेहनत: सब जानते हैं कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. फिर भी सभी युवा क्या ऐसा करते हैं ? ज्ञानीजन सही कहते हैं कि जैसा करेंगे, वैसा भरेंगे. कहने का तात्पर्य यह कि बिना अपेक्षित मेहनत के अपेक्षित रिजल्ट की कामना बेमानी है. सफलता को अपनी मुट्ठी में करने के लिए सजगता के साथ लक्षित कार्य  में अपना अधिकांश समय लगाना है. सफलता का परचम लहराने वाले युवा अपने कार्य से संबंधित हर पहलू को न केवल बहुत अच्छी तरह समझते  हैं, बल्कि उसकी कड़ी प्रैक्टिस करते रहते हैं. खुद को निरंतर उन्नत करने के मामले में अपने टीचर, कोच या मेंटर द्वारा दिए गए सुझाव, दिशानिर्देश एवं मार्गदर्शन का गंभीरता से पालन  करते हैं. अपने काम से जुड़े हर संभावित सवाल का सही उत्तर पाने और उसे लागू करने में वे बराबर आगे रहते हैं. ऐसा नहीं कि वे परीक्षा या किसी मैच से से कुछ दिन या हफ्ते पहले खूब मेहनत करते हैं. उनके लिए तो नियमित रूप से कड़ी मेहनत करना दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा होता है. फीफा वर्ल्ड कप में क्वार्टर फाइनल और उससे आगे जाने वाले हरेक टीम के खिलाड़ियों द्वारा दैनिक रूटीन के तहत वर्क-आउट हो या प्रैक्टिस मैच या एक्चुअल मैच, हर स्थान पर कड़ी मेहनत के प्रति उनकी पूर्ण प्रतिबद्धता रही. 


असफलता से न घबराना: देखा गया है कि असफल होने पर ज्यादातर युवा दूसरे लोगों के आलोचना को बहुत गंभीरता से लेने की भूल करते हैं. अच्छे युवा  ऐसा नहीं करते. ऐसे समय उन्हें भी बुरा तो लगता है लेकिन वे बिना घबराए और कंफ्यूज हुए असफलता के कारणों का स्वयं निरपेक्ष विश्लेषण करके लक्ष्य के प्रति अपने संकल्प को और दृढ़ बनाना जरुरी समझते हैं. बिना समय गंवाए और बिना किसी पर दोषारोपण किए अपनी गलती का पता लगाते हैं, उससे सीख लेते हैं और बेहतरी के प्रयास में जी-जान से जुट जाते हैं. जरा सोचिए,  फ्रांस की टीम 79वें मिनट तक दो गोल से पीछे रहने के बाद अगर यथोचित प्रयास न करती तो क्या आगे एक्स्ट्रा टाइम के बाद 3-3 गोल की बराबरी कर पाती ?  अगर फीफा वर्ल्ड कप विजेता अर्जेंटीना की टीम सऊदी अरब से अपना पहला मैच हारने के बाद वाकई हार मान जाती तो क्या 36 साल बाद ऐसा इतिहास रच पाती?  दरअसल, जीवन में सदा इस जज्बे को बनाए रख कर आगे बढ़ने का प्रयास करना जरुरी होता है. तभी तो कामयाबी आपके  कदम चूमती है. 


अंत में एक बात और. फाइनल मैच के दौरान तनाव और संघर्ष के उन पलों में भी मेसी के चेहरे पर तैरती मुस्कान, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का हार के गम में डूबे एम्बापे को एक अभिभावक के रूप में सांत्वना देना, फिर अर्जेंटीना के गोलकीपर मार्टिनेज का एम्बापे को हाथ पकड़ कर उठाना जैसे अनेक दृश्य दिल को छू गए. आपने भी ऐसा ही महसूस किया ना?

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में  24 दिसम्बर , 2022 को प्रकाशित 

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Saturday, October 29, 2022

ब्रेन स्ट्रोक समस्या है बड़ी, समाधान आसान

                                    - मिलन  सिन्हा, हेल्थ मोटिवेटर  एंड वेलनेस  कंसलटेंट

देश में ब्रेन स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. बीते वर्षों में बड़ी संख्या में युवा भी इसके चपेट में आ रहे हैं. यह गंभीर चिंता का विषय है. दुःख की बात है कि समुचित जागरूकता के अभाव में ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण की समय रहते पहचान नहीं हो पाती है जिसके कारण अधिकतर लोग अस्पताल या डॉक्टर तक नहीं पहुंच पाते हैं और फलतः विकलांगता  या मौत के शिकार हो जाते हैं. आंकड़े बताते हैं कि देश में हर साल 18 लाख से ज्यादा लोग ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं. दरअसल, ब्रेन में ब्लड क्लोटिंग या धमनियों के फटने पर होने वाले अधिक रक्तस्राव के कारण ऐसा होता है. इससे ब्रेन में ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है  और ब्रेन का कार्य प्रणाली बाधित होती है. मिनटों में ब्रेन सेल्स को बहुत क्षति होती है. यह एक मेडिकल इमरजेंसी है और त्वरित उपचार से समस्या का निराकरण संभव है. 


ब्रेन स्ट्रोक से शारीरिक नुकसान 
ब्रेन स्ट्रोक के कारण व्यक्ति को चलने, बोलने, सुनने, खाने-पीने, हंसने, याद रखने, शरीर के अंगों पर नियंत्रण रखने में समस्या हो सकती है. ब्रेन स्ट्रोक के गंभीर मामलों में मौत का खतरा भी रहता है.


ब्रेन स्ट्रोक के कुछ मुख्य कारण
उच्च रक्त चाप, मधुमेह, मानसिक तनाव, डिप्रेशन, धुम्रपान व शराब की लत इसके मुख्य कारण हैं. 


ब्रेन स्ट्रोक के प्रमुख लक्षण 
शारीरिक संतुलन न रख पाना, अचानक देखने में दिक्कत होना, चेहरे में विकार या टेड़ापन होना, हाथों को ऊपर न उठा पाना, बोलने या हंसने में तकलीफ होना. 


ब्रेन स्ट्रोक से बचे रहने के उपाय 
संतुलित जीवनशैली अपनाएं, जिसमें संतुलित आहार, शारीरिक व्यायाम, योगाभ्यास व ध्यान, रात में 7-8 घंटे की अच्छी नींद शामिल हो. इसके साथ-साथ स्ट्रेस को मैनेज करना और खुश रहना सीखें. पोटैशियम और मैग्नीशियम युक्त फल और सब्जियों, जैसे पालक, टमाटर, शकरकंद, सेब, अनार, तरबूज,  अखरोट, आलमंड को दैनिक आहार का अहम हिस्सा बनाएं. फ्रोजेन, प्रोसेस्ड, जंक, पैकेज्ड एवं  फ्राइड फ़ूड से बचें. 

 
ब्रेन स्ट्रोक के मामले का मेडिकल उपचार
जाने-माने न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. यू. के. मिश्रा के अनुसार ब्रेन स्ट्रोक दो प्रकार के होते हैं. पहले को   ब्रेन हैमरेज और दूसरे को इसकेमिक स्ट्रोक कहते हैं. ब्रेन स्ट्रोक के ज्यादातर मामले दवाओं और इंजेक्शन से ठीक कर लिए जाते है. लेकिन इसके अच्छे परिणाम तभी मिलते हैं, जब रोगी को चार घंटे के अंदर उपचार मिल जाता है.

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             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.              # "दैनिक भास्कर " में 29.10.22 को प्रकाशित   

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Tuesday, July 19, 2022

इतना मुश्किल भी नहीं खुश रहना

                            - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड वेलनेस  कंसलटेंट

यह सच है कि कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न विषम एवं अप्रत्याशित परिस्थिति के कारण कमोबेश विश्व भर में खुशी का सूचकांक दुष्प्रभावित हुआ.
लेकिन यह भी तो सर्वकालिक तथ्य है कि जीवन चलते रहने का नाम है और खुशी का सीधा सम्बन्ध हमारी अपनी सोच से जुड़ा है. काबिले गौर बात है कि एक समान परिस्थिति में अलग-अलग लोग भिन्न तरीके से सोचते हैं, रियेक्ट करते हैं और खुशी-नाखुशी आदि का इजहार भी करते हैं. यह भी शाश्वत सत्य है कि जीवन में खुशी सबको चाहिए और खुश रहना हमारी स्वभाविक प्रवृति भी है. कवि गुरु रबींद्रनाथ ठाकुर कहते हैं, "खुश रहना बहुत सिंपल है, लेकिन सिंपल रहना कठिन है." वाकई ऐसा ही अधिकतर  लोग व्यवहारिक स्तर पर फील भी कर रहे हैं. कारण तलाशना कठिन नहीं है. दरअसल, आजकल बड़ी संख्या में लोग आवश्यकता और विलासिता में फर्क नहीं कर पा रहे हैं. आमतौर पर हम सरलता को छोड़कर या भूलकर जाने-अनजाने जटिलता की ओर बढ़े जा रहे हैं. "संतोषम परम सुखम या साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय; मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाय" जैसे हमारे पारंपरिक भारतीय जीवन मूल्यों से आज हम "यह दिल मागे मोर" या "अपना सपना मनी-मनी" के तथाकथित आधुनिक सोच एवं जीवनशैली तक पहुंच गए हैं. ये हमारी लाइफस्टाइल हो गई है और हम सब कुछ फास्ट-फास्ट चाहते हैं. वह भी येनकेन प्रकारेण. चाहत असीमित हैं पर प्रयास और उपलब्धि उसकी तुलना में काफी कम. जीवन में संतुलन और सामंजस्य का अभाव स्पष्ट दिख रहा है. नतीजतन जीवन में तनाव बढ़ता जा तरह है और खुशी कम होती जा रही है. महात्मा गांधी कहते हैं कि खुशी  तब मिलेगी जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, वे सामंजस्य में हों. तो आइए "जहां चाह, वहां राह" वाले सिद्धांत को मानते हुए इन पांच बातों पर अमल करने का संकल्प लेते हैं, जिससे कि खुश रहना मुश्किल न हो.

  
गतिशीलता एवं संतुलन बनाए रखें:
प्रख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन की यह बात हमेशा याद रखें कि जीवन साइकिल की सवारी करने के समान है यानी सोच और कर्म के स्तर पर गतिशीलता एवं संतुलन बनाए रखें. कहने का सीधा अर्थ यह कि अतिरेक से बचते हुए आपको अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते जाना है. इसके लिए पॉजिटिव माइंडसेट एवं समुचित प्रयास की जरुरत होगी. दुःख की बात है कि हम सोचने और चिंता करने में बहुत समय व्यतीत करते हैं, जब कि करने के मामले में सक्रियता अहम होती है. अतः सोचने और करने में एक अच्छा संतुलन बनाए रखना है और सही समय पर सही काम करते जाना है.

  
खुद के कार्यों की निरपेक्ष समीक्षा जरुरी:
खुद के कामों की सतत समीक्षा जरुरी होती है,  क्यों कि खुद से बेहतर समीक्षक कोई नहीं हो सकता. आप दूसरों से झूठ बोल सकते हैं, लेकिन खुद से झूठ नहीं बोल सकते. निरपेक्ष समीक्षा कर अपनी कमियों को पहचानें और उन्हें निरंतर दूर करने का प्रयास करते रहें. इससे आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा, आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आप वास्तविक रूप से खुश रह पायेंगे. याद रखें,  यदि  आपकी  खुशी इस  बात  पर  निर्भर  करती है कि कोई और क्या करता  या कहता है तो  यक़ीनन आपकी सोच में कोई-न-कोई समस्या है. अतः खुद पर फोकस कीजिए और बराबर अच्छाई से जुड़ते रहिए.


दूसरों के अच्छे काम की तारीफ करें:
  हमेशा दूसरों के अच्छे कामों की सच्ची तारीफ करें. तारीफ करने में कंजूसी बिल्कुल नहीं बरतनी चाहिए. यदि आप अपने परिजन, सहयोगी या मित्र के काम की तारीफ करते हैं, तो इससे उन्हें मोटिवेशन और पॉजिटिव एनर्जी मिलेगा. नतीजतन अगली  बार वे पहले से भी बेहतर करने का प्रयास करेंगे. लेकिन, यदि आप छोटी से कमी या गलती पर शिकायत या आलोचना करेंगे या सार्वजनिक रूप से डाटेंगे, तो उनका मनोबल गिरेगा. इसका असर उनकी कार्यक्षमता पर पड़ना निश्चित है. बेशक हम अलग से उनकी काउंसलिंग करेंगे. कहने का अभिप्राय यह कि हमें तो बस छोटी-बड़ी उपलब्धियों पर खुश होना सीखना चाहिए और घर-बाहर खुशी के मौके में दिल से शरीक होना चाहिए जिससे कि हम हैप्पीनेस साइकिल का अभिन्न हिस्सा बने रह सकें.


परिवारजनों और दोस्तों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं:
अमूमन व्यस्तता या अन्य किसी कारण से हम यह काम नहीं करते हैं. यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि सुख-दुःख हर हाल में ये लोग ही हमारे साथ खड़े रहते हैं. हम उन्हें समय नहीं देंगे तो उनसे समय की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं. दरअसल, किसी को भी सामान्यतः समय की कमी नहीं होती. सवाल सिर्फ समय प्रबंधन और प्राथमिकता का होता है. एक विचारणीय बात और. अगर परिवार के लोग और दोस्त भी हमारी प्राथमिकता में नहीं हैं और उनके लिए भी हमारे पास समय नहीं है तो हमारा खुश रहना मुश्किल होगा ही. हमने महसूस किया है कि उनके साथ दिनभर में एक घंटा भी हम बिता लेते हैं, बेशक रात को खाने के टेबल पर ही सही, तो मन प्रसन्न हो जाता है.  


वर्तमान को एंजॉय करने की आदत डालें:
पूर्व प्रधान मंत्री और विचारक-कवि अटल बिहारी वाजपेयी अपनी एक कविता में कहते हैं "कल-कल करते आज हाथ से निकले सारे, भूत-भविष्य की चिंता में वर्तमान की बाजी हारे." ज्यादातर लोगों के साथ यही होता है. अतीत में जो नहीं कर पाए, उसे लेकर अवसाद और पश्चाताप की स्थिति में रहते हैं या भविष्य की चिंता या अनिश्चितता को लेकर कन्फ्यूज्ड और परेशान, जब कि जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय वर्तमान होता है और उसी का भारी नुकसान होता रहता है. भारतीय ओलिंपिक महिला हॉकी टीम के सदस्यों  सहित कई अन्य खिलाड़ियों ने इस बात को रेखांकित किया कि उन्हें माइंडफुलनेस की ट्रेनिंग दी गई यानी भूत-भविष्य की बातों को भूलकर सिर्फ वर्तमान क्षण में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया गया. सचमुच वर्तमान को एन्जॉय करने और बीते हुए कल से बेहतर प्रदर्शन की भरपूर कोशिश करने की आदत से हम स्वास्थ्य और सफलता के साथ-साथ खुशी को भी सुनिश्चित कर सकते हैं.  

 (hellomilansinha@gmail.com)

                  
             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.              # "प्रभात खबर -सुरभि " में 16.01.22 को प्रकाशित   

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