Friday, November 21, 2025

वेलनेस पॉइंट: फेफड़े को हेल्दी रखने हेतु खानपान में शामिल करें ये चीजें

                                               - मिलन  सिन्हा,  स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट

जाड़े के मौसम में हर साल देश की राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक प्रदेशों में धुन्ध, कुहासा और कोहरा का प्रकोप जारी रहता है. इन इलाकों में प्रदूषण, खासकर वायु प्रदूषण के कारण स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है. लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है. श्वसन तंत्र में समस्या और खासकर फेफड़े में तकलीफ के कारण लोग ज्यादा परेशान रहते हैं. कोरोना महामारी के लम्बे दौर से गुजरने और खासकर उससे ग्रस्त और त्रस्त रहने के बाद तो अनेक लोगों के लिए लंग्स को हेल्दी रखना और भी ज्यादा जरुरी हो गया है. हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए खानपान में कुछ जानी-पहचानी चीजों को शामिल करना बहुत लाभदायक होता है. आइए जानते हैं.


टमाटर:  इसमें लाइकोपीन होता है जो लंग्स को हेल्दी रखने में मदद करता है. कई रिसर्च यह बताते हैं कि फेफड़ों के संक्रमण और अस्थमा की समस्या से ग्रसित लोगों को टमाटर के सेवन से काफी लाभ मिलता है. इसमें फॉस्फोरस, कैल्शियम और विटामिन-सी अच्छी मात्रा में मौजूद रहता है. इसके सेवन से वात व कफ संबंधी विकारों को दूर करने में मदद मिलती है. 

 

गाजरनाश्ते और दोपहर के भोजन के दौरान गाजर या गाजर के रस का सेवन करें, जिससे कि फेफड़ों की सफाई हो सके. दरअसल, गाजर बीटा कैरोटीन का एक अच्छा स्रोत है, जो एक  शक्तिशाली एंटी-ऑक्सिडेंट के रूप में काम करता है. 

 

अदरक: अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो श्वसन तंत्र से विषाक्त चीजों को बाहर निकलने में सहायता करता है. इसमें पोटेशियम, मैग्नीशियम, बीटा कैरोटीन और जिंक सहित कई विटामिन और खनिज मौजूद हैं. फेफड़ों के कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में यह कारगर हैं. अतः व्यंजन आदि  में अदरक को शामिल करें  और सुबह-शाम अदरक की चाय को एन्जॉय करें. 

 

लहसुन: इसमें एलिसिन नामक एक पदार्थ होता है, जो एक शक्तिशाली एंटी-बायोटिक एजेंट के रूप में काम करता है और हमारे फेफड़ों को संक्रमण से निपटने में मदद करता है. यह सूजन को कम करने, अस्थमा में सुधार करने और फेफड़ों के कैंसर के रिस्क को कम करने में मदद करता है. इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है.


तुलसी का काढ़ा और ग्रीन टी:  तुलसी, अदरक, गोल मिर्च, दालचीनी और लोंग से बने हुए काढ़ा का सेवन करें. इससे लंग्स काफी मजबूत होते हैं. उसी तरह सुबह –शाम ग्रीन टी का सेवन कर सकते हैं. इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं जो लंग्स के लिए काफी अच्छे माने गए हैं.


हल्दी
एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बायोटिक और  एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण इसके सेवन से हर तरह के संक्रमण से बचाव होता है. यह हमारे फेफड़ों को साफ करने में मदद करता है. सब्जी और दाल बनाने में इसका थोड़ा ज्यादा उपयोग करने और रात में सोने से पहले दूध में थोड़ा हल्दी डालकर सेवन करने से लाभ होता है.


सेब एवं अनार: यह दोनों ही फल फेफड़ों की सफाई में मदद करता है. इनके सेवन से विटामिन बी, सी, के और ई के साथ-साथ आयरन, पोटेशियम, जिंक और ओमेगा-6 फैटी एसिड जैसे पोषक तत्व मिल जाते हैं. लंग्स कैंसर जैसी गंभीर रोग से बचाव में भी ये कारगर भूमिका अदा करते हैं.


शहद यह एक प्रभावी प्राकृतिक औषधि है. इसमें एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं. इसका सेवन करने से हमारे फेफड़े स्वस्थ रहते हैं. सुबह शौच आदि से निवृत होकर एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू और शहद डालकर पीना बहुत लाभकारी होता है.


ब्रोकली और अन्य हरी सब्जियांसर्दी के मौसम में उपलब्ध ब्रोकली सहित अन्य हरी सब्जियों में कई ऐसे विटामिन और मिनरल्स मौजूद होते हैं जो सांस से जुड़ी परेशानियों से राहत दिलाने में असरदार  साबित होते हैं. इतना ही नहीं, इनके सेवन से  फेफड़ों की सफाई और उसे हेल्दी बनाए रखना आसान होता है.


काली मिर्चयह विटामिन-सी का एक अच्छा स्रोत है. विटामिन-सी को एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट माना जाता है. वात व कफ संबंधी विकारों और श्वास रोगों में इसका सेवन  लाभकारी साबित होता है. इन्हीं गुणों के कारण यह न केवल फेफड़ों को लंबे समय तक स्वस्थ रखने में मदद करता है, बल्कि फेफड़ों के रोग से पीड़ित रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है. 

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Monday, October 13, 2025

स्ट्रेस मैनेजमेंट पॉइंट: बदले की नहीं, बदलने की भावना

                                                - मिलन  सिन्हा,  स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट 

देश में लाखों युवा अध्ययन या रोजगार या व्यवसाय हेतु घर से बाहर कहीं दूर रहते हैं. बराबर घर आना-जाना संभव नहीं हो पाता है. स्वाभाविक रूप से घर-परिवार की चिंता रहती है. यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत ऐसे ही एक विद्यार्थी की समस्या यह है कि बहुधा जब वह  पढ़ने बैठता है और पढ़ाई पर फोकस करना चाहता है, तभी उसे उसके  एक रिश्तेदार द्वारा कुछ महीने पहले अपने पिता जी के साथ दुर्व्यवहार और गाली-गलौज की घटना की याद आ जाती है और  फिर वह पढ़ने में फोकस नहीं कर पाता है. यह या इस तरह की समस्या से बहुत से युवा पीड़ित रहते हैं. 

सच यह है कि ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं है. आम तौर पर लगभग सबका रिएक्शन कमोबेश ऐसा ही होता है. शायद आपका भी हो. घटना याद आते ही बदले की भावना बलवती हो जाती है. मन अशांत हो जाता है. है न ? 

यहां विचारणीय बात यह है कि घटना-दुर्घटना को घटे कई महीने हो गए हैं और जब ऐसा हुआ उस समय आप वहां थे भी नहीं. जैसा आपको बताया गया आप उस पर रियेक्ट कर रहे हैं. जिनके साथ हुआ, जैसे इस मामले में विद्यार्थी के पिता के साथ, वे वहीँ  रह रहे हैं और उनका वह रिश्तेदार भी. उनमें इस बीच फिर वैसी कोई गलत बात नहीं हुई और न ही आपके पिता जी ने आपसे उस रिश्तेदार से बदला लेने की बात ही की. फिर भी आप उस बात को सोच-सोचकर परेशान रहते हैं और अपनी पढ़ाई में मन नहीं लगा पाते हैं. तो इसमें नुकसान किसको हो रहा है और क्या सोचने मात्र से समस्या का समाधान हो जाएगा? यक़ीनन नुकसान आपका ही होगा और समाधान भी नहीं मिलेगा. मुफ्त में तनावग्रस्त रहेंगे सो अलग. तो फिर आप क्या करें? 

अब से जब भी उस बात की याद आए, अपने मन को समझाएं कि जो बीत गई वह बात गई. अपने मन से कहें कि हमारे वह रिश्तेदार थोड़े नासमझ हैं जो उन्होंने ऐसा गलत व्यवहार जाने-अनजाने किया. फिर भी मैं उनको माफ करता हूँ. इसके बाद दो मिनट ध्यान में बैठें और सिर्फ अपने सांस को आते-जाते सजगता से देखिए. पूरा ध्यान श्वास-प्रश्वास पर लगाएं. मन शांत होगा. 

आगे जब भी ऐसा ख्याल आए, अपने मन को हर बार इसी तरह समझाते रहें और साथ ही गुणीजनों के इस कथन को भी मन-ही-मन दोहराएं कि मेरा आत्मबल मजबूत है क्यों कि कमजोर व्यक्ति कभी क्षमा नहीं कर सकता, क्षमा करना शक्तिशाली व्यक्ति का गुण है. यहां अमेरिकी लेखक-विचारक बर्नार्ड मेल्ट्जर के इस कथन से भी प्रेरणा लेनी चाहिए कि जब  आप माफ करते हैं तब आप अतीत को नहीं  बदलते हैं – लेकिन आप निश्चित रूप से भविष्य को बदल देते हैं.  (hellomilansinha@gmail.com) 

      
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Friday, July 4, 2025

स्वामी विवेकानन्द - संकल्प, संयम, कर्म व देशप्रेम के प्रतीक

                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

संकल्प, संयम, कर्म के प्रति निष्ठा और देशप्रेम की भावना स्वामी विवेकानंद
(जन्म : 12 जनवरी, 1863, देहावसान : 4 जुलाई, 1902)  के जीवन की कहानी  खुद कहता है. इन विषयों पर उनके विचार हर व्यक्ति के लिए हमेशा प्रेरणादायक थे, हैं और रहेंगे. आइए, इन विषयों पर व्यक्त  उनके विचारों से प्रेरणा लेते हैं.


संकल्पजिस समय जिस काम का संकल्प करो, उस काम को उसी समय पूरा करो, अन्यथा  लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे... ... जब तुम कोई कर्म करो, तब अन्य किसी बात का विचार ही मत करो. उसे एक उपासना के रूप में करो और उस समय उसमें अपना सारा तन-मन लगा दो... ...उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये. 


संयमकिसी भी काम को अच्छी तरह करने के लिए जरूरी है एकाग्रता.... ....हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है.... .... मन का विकास करो तथा उसका संयम करो. उसके बाद जहां इच्छा हो, वहां इसका प्रयोग करो. इससे जल्दी सफलता मिलेगी. 


कर्म: मनुष्य के रूप में हमारा पहला कर्तव्य यह है कि अपने प्रति घृणा न करें, क्योंकि आगे बढ़ने के लिए यह आवश्यक है कि पहले हम स्वयं में विश्वास रखें ... ...प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह अपना आदर्श लेकर उसे चरितार्थ करने का प्रयत्न करें. दूसरों के ऐसे आदर्शों को लेकर चलने की अपेक्षा, जिनको वह पूरा ही नहीं कर सकता, अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का अधिक निश्चित मार्ग है. 


देशप्रेम: हमारा पवित्र देश भारत धर्म, दर्शन, अध्यात्म, प्रेम और मधुरता की पुण्य भूमि है. इन बातों में संसार के अन्य देशों की अपेक्षा हमारा देश अब भी श्रेष्ठ है. यहीं अनेक बड़े-बड़े महात्माओं एवं ऋषियों का जन्म हुआ है. यह संन्यास और त्याग की भूमि है. आदिकाल से अबतक यहां मानव जीवन के लिए सर्वोच्च आदर्श का द्वार खुला हुआ है.


आज स्वामी जी को सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि हर भारतवासी  स्वामी जी के व्यक्तित्व से सच्ची प्रेरणा लेकर देश को आत्मनिर्भर, समृद्ध और खुशहाल बनाने में व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से हरसंभव योगदान करें. 
 
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Sunday, March 30, 2025

रिजल्ट जैसा भी आया है, उसे मन से स्वीकार करें

                         -मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट


बिहार बोर्ड की दसवीं अर्थात मेट्रिक परीक्षा का परिणाम आ गया है, जिसमें
82.11% विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए. आमतौर पर रिजल्ट के दिन का माहौल कहीं खुशी, कहीं गम का होता है. खैर, अब जब कि रिजल्ट आ गया है तो खासकर ऐसे विद्यार्थी जिनका रिजल्ट उनकी अपेक्षा के प्रतिकूल या खराब आया है, उन्हें निम्नलिखित बातों पर गंभीरता से सोच-विचार करना चाहिए: 

1) जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं. आपका जीवन अनमोल है. सफलता-असफलता सभी के जीवन में आते रहते हैं. जीवन में एक के बाद दूसरी परीक्षा आती रहेगी और आपको बेहतर से बेहतर परिणाम हासिल करने का अवसर भी मिलता रहेगा. इतिहास के पन्ने ऐसे हजारों रियल लाइफ सक्सेस स्टोरी से भरे पड़े हैं, जिसमें हर शख्स ने कंफ्यूशियस के इस विचार को अपने कर्मों से साबित किया है कि 'हमारी महानतम विशालता कभी भी न गिरने में नहीं, बल्कि गिरने पर हर बार फिर उठ जाने में निहित है.'

2) इस बार रिजल्ट जैसा भी आया है, उसे मन से स्वीकार करें. 'टेक-इट-इजी' सिद्धांत का पालन करते हुए किसी के भी डांट- फटकार, कटाक्ष, आलोचना, व्यंग्य आदि को दिल से न लें.

3) किस दोस्त या सहपाठी को कितने मार्क्स आए, इसको जानने और इसकी विवेचना-आलोचना  से बचें क्यों कि इससे आपके मार्क्स तो इम्प्रूव नहीं होंगे, उलटे समय की बर्बादी होगी और नेगेटिव थॉट्स में वृद्धि.

4) दूसरे को दोष देने के बजाय मन ही मन यह दोहरायें - जो हुआ, ठीक ही हुआ. मैंने जैसी परीक्षा दी, परिणाम कमोबेश उसी के अनुरूप आया; आगे सुधार करेंगे तो बेहतर होगा रिजल्ट.

5) अगर रीचेकिंग या इम्प्रूवमेंट का प्रावधान या व्यवस्था है, तो उसका उपयोग करें. अगर मार्क्स या रिजल्ट में सुधार होता है तो बोनस के रूप में अतिरिक्त ख़ुशी के हकदार बनेंगे.

6) किसी भी स्थिति में निराश, हताश या तनावग्रस्त होने की बिलकुल जरुरत नहीं है. आवेग या आवेश में किसी भी प्रकार के आत्मघाती कदम उठाने का विचार तक मन में न लायें.

7) इसके बावजूद भी अगर तनाव महसूस हो तो थोड़ी देर खुली हवा में आँख बंद कर बैठें और डीप ब्रीदिंग करें; घर में आपके सबसे प्रिय व्यक्ति से खुल कर बात करें या अपने सबसे अच्छे दोस्त से बात करें, टीवी आदि पर कॉमेडी शो का आनन्द लें, पर्याप्त पानी/ मौसमी फल का रस पीएं और नींद का पूरा लाभ उठाएं. आपका तनाव स्वतः बहुत कम हो जाएगा.

8) इस समय बस शांति और संयम से खुद को रीऑर्गनाइज करें और एक संकल्प लें कि पीछे कोई भूल  हुई है तो उसे आगे नहीं दोहराएंगे, खूब मेहनत करेंगे और एक प्रभावी रूटीन फॉलो करते हुए आगे जरुर कामयाब होंगे.

9) माता-पिता सहित घर के सभी बड़ों के सामने अपनी गलती को स्वीकारते हुए उन्हें आगे बेहतर रिजल्ट का आश्वासन दें और उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करें. यकीन मानिए, आपका कल आज से जरुर बेहतर होगा. आप सफल तो होंगे ही, स्वस्थ और आनंदित भी रहेंगे.            (hellomilansinha@gmail.com)

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Saturday, January 4, 2025

खुद को परखें खरी कसौटी पर

                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट

जीवन गतिशील हैछात्र जीवन की यात्रा रोमांचक होती है और फ़ास्ट भी. इस यात्रा में हर युवा को जीवन के कई मार्गों और कई चौराहों से होकर गुजरना पड़ता हैइस क्रम में कई बार ट्रैफिक सिग्नल पर रुकना भी पड़ता हैयह सही भी है, क्यों कि इस क्रम में उसे सोच-विचार का एक मौका मिलता है. दरअसल, हर युवा को खुद ही सही दिशा में गतिशील या स्थिर रखने में पारंगत होना पड़ता हैजो थोड़ा कठिन तो हैपर असंभव नहींबहरहालभागमभाग के मौजूदा दौर में कई बार वे बहुत तेज गति से कई चौराहों को पार करते हुए जीवन पथ पर बहुत दूर निकल जाते हैंतब कहीं जा कर अपनी यात्रा पर कुछ सोच-विचार करते हैं और अधिकतर मामलों में उन्हें यह पता चलता है कि वे सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रहे हैं. स्वाभाविक है, वे निराश होते है क्यों कि वे अपेक्षा के विपरीत सफलता से दूर खड़े होते हैं.  

साल 2024 की विदाई और साल 2025 के शुभागमन के साथ ही संसार के सभी देशों के सभी कार्यक्षेत्रों - स्वास्थ्यशिक्षाउद्योगव्यापारआर्थिक -सामाजिक सेक्टरअंतरराष्ट्रीय संबंध आदि में समीक्षा और संकल्प का सिलसिला प्रारंभ हो चुका हैअपनी-अपनी स्थिति-परिस्थिति के अनुसार हर सेक्टर अपनी उपलब्धियों तथा नाकामियों की गंभीर समीक्षा कर रहा है और बेहतर विकास सुनिश्चित करने हेतु नए संकल्प भी ले रहा है. सभी युवाओं के लिए भी बीते वर्ष के अपने कार्यकलापों की समीक्षा और नए वर्ष के लिए संकल्प लेने का यह विशेष अवसर हैतो आइए आज 'अक्षर से शुरू होनेवाले दो शब्दों - समीक्षा और संकल्प की अहमियत पर चर्चा करते हैं.

अपने अंदर देखने की डालें आदतअच्छी बात है कि समीक्षा का भाव हर विद्यार्थी में बुनियादी रूप से विद्दमान होता हैपुस्तक समीक्षाफिल्म समीक्षा या भाई-बहन से लेकर दोस्त-सहपाठी-सहकर्मी  तक के ड्रेस और स्टाइल पर समीक्षा की बात होयुवा इनमें शामिल रहते हैंउसी तरह हर युवा अपने कार्यकलाप की समीक्षा भी करते रहते हैंबेशक यदाकदाऐसा इसलिए कि आमतौर पर उन्हें बाहर देखने की आदत अधिक होती हैअंदर देखने की कमखैर, खुद को सुधारने और निखारने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हर युवा बीते वर्ष में अपनी कार्यशैली और कार्यकलापों की गंभीर और निरपेक्ष समीक्षा खुद ही करें. इसके लिए बीते वर्ष के सभी मुख्य कार्यकलापों को एक स्थान पर नोट करें और फिर इसके सामने अपने प्रयासों के परिणामों – पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों  को लिखें. स्वाभाविक रूप से पॉजिटिव और नेगेटिव परिणामों के पीछे के कुछ तो स्पष्ट कारण होंगे, जो उन्हें अच्छी तरह मालूम होते हैं – मसलन मेहनत, निष्ठा, जुनून, नियमितता, एकाग्रता आदि. अब अगर हरेक युवा अपनी इस समीक्षा प्रक्रिया के दौरान निरपेक्ष विश्लेषण और विवेचना करके अपनी अच्छाइयों को और उन्नत करने तथा अपनी कमजोरियों या गलतियों को सुधारने का सबक ले सके तो साल 2025 में उसे अपना बेस्ट देने से कोई रोक नहीं सकता है. हाँ, इस पूरी प्रक्रिया में अगर कहीं बड़ा कनफूजन हो तो अपने अभिभावक या मेंटर से सलाह लेने में संकोच न करें.     

बढ़ती है आतंरिक शक्ति: ज्ञानीजन बराबर कहते रहे हैं कि जो युवा सोच-विचार कर संकल्प लेता है और उससे  पूर्णतः प्रतिबद्ध रहता हैउसके लिए कर्मपथ पर चलना एक साधना के समान हो जाता है और फिर तो उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं होता हैऐसा इसलिए कि संकल्पित होते ही वह पॉजिटिव फील करने लगता है और उसकी आंतरिक शक्ति बढ़ने लगती हैफुलप्रूफ कार्य योजना बनती है और उसपर अमल शुरू हो जाता है, जो कार्य विशेष को सफ़ल बनाने में बहुत सहायक होता हैदरअसलकिसी भी युवा में शक्ति की कमी नही होतीबस दृढ़ संकल्प की कमी होती हैंइसके अभाव में युवा सफ़लता के निकट पहुंच कर भी असफल हो जाते हैंकहने का अभिप्राय यह कि किसी कार्य का असंभव  या संभव होना युवा विशेष के संकल्प पर निर्भर करता हैं. इसलिए पिछले साल को भूलते हुए इस साल अपने हर दिन को एक विशेष दिन बनाने पर ध्यान दें. 

स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री व महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार पटेल हों या हॉकी के जादूगर कहे जानेवाले महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद  या दक्षिण अफ्रीका के महान नेता व पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला या सिंगापुर के युगपुरुष व पूर्व प्रधानमन्त्री ली कुआन यू  या देश के महान स्पेस साइंटिस्ट विक्रम साराभाई या विश्व प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेट आलराउंडर कपिल देवसबने अपने-अपने क्षेत्र में अपने संकल्प को  निष्ठापूर्वक साधते हुए तथा निरंतर अपने प्रदर्शन की बेबाक समीक्षा करते हुए देश-विदेश में अपनी सफलता का झंडा बुलंद किया. मेरी तो स्पष्ट मान्यता है कि हमारे युवाओं  में असीम क्षमता है और उनमें अनेक खूबियां भी मौजूद हैंबस जरुरत इस बात की है कि नववर्ष के मौके पर समीक्षा और संकल्प को यथोचित महत्व देते हुए वे अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने हेतु कर्मपथ पर दृढ़ता से सतत आगे बढ़ें और अपने व देश के लिए वर्ष 2025 को हर तरह से बेस्ट साबित करें. नववर्ष की असीम शुभकामनाएं.    (hellomilansinha@gmail.com

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Wednesday, September 18, 2024

कामयाब होना मुश्किल नहीं

                           - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड वेलनेस  कंसलटेंट


जीवन के हर क्षेत्र में आजकल चाहे-अनचाहे कई कार्यों या प्रोजेक्ट्स को नियत समय सीमा के अन्दर अंजाम तक पहुंचाने की सामान्य अपेक्षा खुद की और दूसरों की भी होती है. समय सीमित होता है और टास्क अनेक. ऐसे अवसरों पर अनेक लोगों के लिए यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि किस काम को पहले और किसे थोड़ी देर बाद में करें जिससे कि सब कुछ ठीक से निष्पादित हो जाय, खासकर सभी महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्य और वह भी यथोचित गुणवत्ता के साथ. सबको मालूम है कि गुणवत्ता दुष्प्रभावित होने का खामियाजा स्वयं के साथ-साथ संस्थान को भी उठाना पड़ता है. ऐसे में मेंटल प्रेशर बढ़ता है और खुद को संयत रखना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. 


कहने को तो सुबह उठने से लेकर रात में सोने से पहले तक सामान्यतः हर कोई पढ़ाई, परीक्षा, प्रतियोगिता, रोजगार, नौकरी आदि के प्रेशर  के बीच किसी-न-किसी काम में व्यस्त रहता है. लेकिन कैसे व्यस्त रहता है, इस पर गौर करना बहुत जरुरी होता है. हममें से कुछ लोग सुबह पहले जो भी सरल एवं आसान काम सामने होता है, उसे निबटाने में लग जाते हैं. लिहाजा, आवश्यक या महत्वपूर्ण या कठिन और मुश्किल काम या तो बिल्कुल नहीं हो पाता है या शुरू तो होता है, लेकिन एकाधिक कारणों से नियत समय में पूरा  नहीं हो पाता है. इस वजह से अहम काम या तो छूट जाते हैं या अधूरे रह जाते हैं. वे काम अगले दिन के एजेंडा में आ तो जाते हैं, लेकिन आदतन अगले दिन भी ऐसा ही कुछ होता है. इस तरह अध्ययन  हो या अन्य कार्य, छोटे, सरल और कम या गैर-जरुरी काम तो किसी तरह होते रहते हैं, किन्तु महत्वपूर्ण और आवश्यक  कार्यों का अम्बार खड़ा होता रहता है. ऐसे में उतने सारे अहम कार्यों को तय सीमा में पूरा करना उन्हें  मुश्किल ही नहीं, असंभव लगने लगता है. इसका बहुआयामी दुष्प्रभाव उनके परफॉरमेंस और रेटिंग पर पड़ना लाजिमी है. ऐसी स्थिति में आत्मविश्वास डोलने लगता है; बहानेबाजी और शार्ट-कट का सिलसिला चल पड़ता है. धीरे-धीरे ऐसे लोगों को अपने  ज्ञान, कौशल एवं क़ाबलियत पर अविश्वास-सा होने लगता है. उनको कठिन कार्यों से डर और घबराहट होने लगती है. सफलता उनसे दूर होती जाती है. धीरे-धीरे वे लोग खुद को औसत या उससे भी कम क्षमतावान मानने लगते हैं और दूसरों की नजर में भी वैसा ही दिखने लगते हैं.


इसके विपरीत कुछ लोग सुबह पहले आवश्यक, महत्वपूर्ण और कठिन काम को यथाशक्ति अंजाम तक पहुँचाने में लग जाते हैं. अपने प्रयास में कोई कमी नहीं होने देते और अपनी सफलता के प्रति पूरा विश्वास बनाए रखते हैं. पाया गया है कि सामान्यतः उन्हें अपने प्रयास में सफलता मिलती है. अपवाद स्वरुप अगर कभी सफल नहीं होते हैं, तो बिना निराश हुए और अच्छे तरीके के दोबारा प्रयास करते हैं. यकीनन सभी अहम काम पूरा हो जाने पर उन्हें  संतोष और खुशी दोनों मिलती है. अंदर से एक फील-गुड फीलिंग उत्पन्न होती है जिससे वे अतिरिक्त उत्साह और उमंग से भर जाते हैं. आत्मविश्वास में इजाफा तो होता ही है. अब वे बहुत आसानी और तीव्रता से आसान कार्यों को कर लेते हैं. शायद ही उनका कोई जरुरी काम छूटता है. इस तरह वे अपने सभी काम को निर्धारित समय सीमा के भीतर निष्पादित करते हैं. अगले दिन काम करने की उनकी यही शैली होती है. वे चुनौतियों से घबराते  नहीं, बल्कि उनके स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार रहते हैं. उनके लिए हर दिन एक नया दिन होता है और हर बड़ी-छोटी चुनौती से सफलतापूर्वक निबटना उनका मकसद.


दरअसल, आपको जब आज के तेज रफ़्तार कार्य संस्कृति में कई बार सबकुछ फटाफट एवं अच्छी तरह करना होता है, तब प्राथमिकता तय करके कार्य करना अनिवार्य होता है. नोट करने वाली बात यह है कि लगातार अच्छी सफलता अर्जित करनेवाले सभी लोग प्राथमिकता तय करके काम करने को कामयाबी तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण सूत्र मानते हैं. यहां  एलन लेकीन की इस बात पर गौर करना फायदेमंद होगा कि अपनी प्राथमिकताओं की समीक्षा करें और यह सवाल पूछें – "हमारे समय का इस वक्त सबसे अच्छा उपयोग क्या है." इससे यह बात स्पष्ट होती है कि अगर अगले कुछेक घंटे में कई विषयों को पढ़ने या कई टास्क को पूरा करने की चुनौती हमारे  सामने होती है, तो उसमें से  कौन-सा पहले करें और कौन-सा बाद में, अपनी समझदारी से 'प्राथमिकता के सिद्धांत' को लागू करते हुए हम उन सबको को अति महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण और कम महत्वपूर्ण  की तीन श्रेणी में बांट लेते हैं. और फिर प्राथमिकता के उसी क्रम को सामने रखकर न केवल सभी टास्क को यथासमय निबटाते हैं, बल्कि आगे उसके परिणाम में बेहतरी भी सुनिश्चित करते रहते हैं. हां, ऐसे समझदार लोग जरुरत पड़ने पर प्राथमिकता में थोड़ा-बहुत परिवर्तन के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार भी रहते हैं, जिससे कि सभी काम उसके टाइमलाइन के हिसाब से पूरा हो जाय. कहना न होगा, जीवन के हर क्षेत्र में अत्यंत सफल, सफल और कम सफल लोगों  के बीच एक बड़ा फर्क प्राथमिकता प्रबंधन में उनकी दक्षता से भी तय होता है. 

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Tuesday, March 26, 2024

बच्चों को दीजिए संस्कार युक्त, रोगमुक्त, सानंद जीवन

                        - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ... 

कहते हैं स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन का आधार होता है. यह भी कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश की आबादी का 20 % हिस्सा स्कूली बच्चों का है, यानी 25 करोड़ से भी ज्यादा. लिहाजा, हमारे बच्चों को शिक्षित करने के साथ–साथ तन्दुरस्त बनाए रखना अनिवार्य है, तभी आने वाले समय में वे एक समर्थ इंसान के रूप में जीवन की तमाम चुनौतियों से निबटते एवं अपनी जिम्मेदारिओं को निबाहते हुए समाज एवं देश को भी मजबूत बना पायेंगे. लेकिन ऐसा कैसे संभव होगा?


यह एक तथ्य है कि हमारे देश में आजादी के सात दशक बाद भी हमारे गांवों की  अधिकांश  आबादी  आधुनिक चिकित्सा पद्धति के दायरे से बाहर हैं और वे अब तक  मुख्यतः पारम्परिक चिकत्सा पद्धति पर निर्भर रहे हैं. ऐसा इसलिए कि हमारा देश पारम्परिक ज्ञान के मामले  में अत्यधिक समृद्ध रहा है  और हजारों सालों से चली आ रही पूर्णतः स्थापित परम्पराओं की  एक पूरी श्रृंखला सामाजिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपलब्ध रही है.
लेकिन हमारी  शहरी आबादी कारण–अकारण  स्वास्थ्य ज्ञान के इस असीमित स्त्रोत का उपयोग अपने व्यवहारिक जीवन में नहीं करते हैं  और फलतः सामान्य शारीरिक परेशानियों या बीमारियों, जैसे सर्दी-जुकाम, डायरिया –कब्ज, सिर दर्द –बदन दर्द आदि   से ग्रसित होने पर भी आधुनिक चिकित्सा पद्धति (यानी एलोपैथी) को अपनाने को विवश हो जाते हैं, जब कि आज की हमारी  आधुनिक चिकित्सा काफी मंहगी है और उसके कई नकारात्मक आयाम भी हैं.


फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है ? दरअसल बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के सामाजिक प्रभावों के अलावे लगातार तेजी से संयुक्त परिवारों  के टूटने  और उतनी ही तेजी से एकल परिवारों के बढ़ते जाने के कारण  दादा–दादी , नाना–नानी जैसे बुजुर्गों के मार्फ़त बच्चों में स्वतः हस्तांतरित होने वाले व्यवहारिक स्वास्थ्य ज्ञान का सिलसिला ख़त्म हो रहा है. ऐसे में, घरेलू उपचार की इस समृद्ध धरोहर को फिर से किसी –न- किसी रूप में पुनर्स्थापित करने  की आवश्यकता है, जिससे एक बड़ी आबादी को सामान्य रोगोपचार के मामले में कुछ हद तक आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

 
कहना न होगा, इस महती कार्य को प्रभावी ढंग से लक्ष्य  तक ले जाने में स्कूलों की भूमिका अहम है. इसके लिए  एक सुविचारित व सुनियोजित जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से कक्षा -7 से लेकर  कक्षा -12 तक के बच्चों को प्रेरित कर उनसे अपने घर के बुजुर्गों से सामान्य बिमारियों में किये जाने वाले घरेलू  उपचारों की जानकारी प्राप्त करने के लिए कहा जाएगा  और फिर उन तमाम जानकारियों पर चर्चा कर उन्हें उसके वैज्ञानिक आधार से परिचित करवाया जाएगा.
इससे एक तो स्वास्थ्य के प्रति उनकी जागरूकता बढ़ेगी, घरेलू उपचारों की जानकारी होगी और उनका परिवार के बुजुर्गों के साथ जुड़ाव बढ़ेगा. साथ ही बढ़ेगा बुजुर्गों के प्रति बच्चों का सम्मान भी. इसके फलस्वरूप परिवार संस्कारयुक्त, रोग मुक्त, स्वस्थ एवं सानन्द रहेगा. बच्चों के सर्वांगीण विकास में इसका अहम योगदान तो रहेगा ही.                            (hellomilansinha@gmail.com)


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.            "प्रभात खबर हेल्दी लाइफ " में   प्रकाशित   

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