- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड वेलनेस कंसलटेंट
जीवन के हर क्षेत्र में आजकल चाहे-अनचाहे कई कार्यों या प्रोजेक्ट्स को नियत समय सीमा के अन्दर अंजाम तक पहुंचाने की सामान्य अपेक्षा खुद की और दूसरों की भी होती है. समय सीमित होता है और टास्क अनेक. ऐसे अवसरों पर अनेक लोगों के लिए यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि किस काम को पहले और किसे थोड़ी देर बाद में करें जिससे कि सब कुछ ठीक से निष्पादित हो जाय, खासकर सभी महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्य और वह भी यथोचित गुणवत्ता के साथ. सबको मालूम है कि गुणवत्ता दुष्प्रभावित होने का खामियाजा स्वयं के साथ-साथ संस्थान को भी उठाना पड़ता है. ऐसे में मेंटल प्रेशर बढ़ता है और खुद को संयत रखना काफी चुनौतीपूर्ण होता है.
कहने को तो सुबह उठने से लेकर रात में सोने से पहले तक सामान्यतः हर कोई पढ़ाई, परीक्षा, प्रतियोगिता, रोजगार, नौकरी आदि के प्रेशर के बीच किसी-न-किसी काम में व्यस्त रहता है. लेकिन कैसे व्यस्त रहता है, इस पर गौर करना बहुत जरुरी होता है. हममें से कुछ लोग सुबह पहले जो भी सरल एवं आसान काम सामने होता है, उसे निबटाने में लग जाते हैं. लिहाजा, आवश्यक या महत्वपूर्ण या कठिन और मुश्किल काम या तो बिल्कुल नहीं हो पाता है या शुरू तो होता है, लेकिन एकाधिक कारणों से नियत समय में पूरा नहीं हो पाता है. इस वजह से अहम काम या तो छूट जाते हैं या अधूरे रह जाते हैं. वे काम अगले दिन के एजेंडा में आ तो जाते हैं, लेकिन आदतन अगले दिन भी ऐसा ही कुछ होता है. इस तरह अध्ययन हो या अन्य कार्य, छोटे, सरल और कम या गैर-जरुरी काम तो किसी तरह होते रहते हैं, किन्तु महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्यों का अम्बार खड़ा होता रहता है. ऐसे में उतने सारे अहम कार्यों को तय सीमा में पूरा करना उन्हें मुश्किल ही नहीं, असंभव लगने लगता है. इसका बहुआयामी दुष्प्रभाव उनके परफॉरमेंस और रेटिंग पर पड़ना लाजिमी है. ऐसी स्थिति में आत्मविश्वास डोलने लगता है; बहानेबाजी और शार्ट-कट का सिलसिला चल पड़ता है. धीरे-धीरे ऐसे लोगों को अपने ज्ञान, कौशल एवं क़ाबलियत पर अविश्वास-सा होने लगता है. उनको कठिन कार्यों से डर और घबराहट होने लगती है. सफलता उनसे दूर होती जाती है. धीरे-धीरे वे लोग खुद को औसत या उससे भी कम क्षमतावान मानने लगते हैं और दूसरों की नजर में भी वैसा ही दिखने लगते हैं.
इसके विपरीत कुछ लोग सुबह पहले आवश्यक, महत्वपूर्ण और कठिन काम को यथाशक्ति अंजाम तक पहुँचाने में लग जाते हैं. अपने प्रयास में कोई कमी नहीं होने देते और अपनी सफलता के प्रति पूरा विश्वास बनाए रखते हैं. पाया गया है कि सामान्यतः उन्हें अपने प्रयास में सफलता मिलती है. अपवाद स्वरुप अगर कभी सफल नहीं होते हैं, तो बिना निराश हुए और अच्छे तरीके के दोबारा प्रयास करते हैं. यकीनन सभी अहम काम पूरा हो जाने पर उन्हें संतोष और खुशी दोनों मिलती है. अंदर से एक फील-गुड फीलिंग उत्पन्न होती है जिससे वे अतिरिक्त उत्साह और उमंग से भर जाते हैं. आत्मविश्वास में इजाफा तो होता ही है. अब वे बहुत आसानी और तीव्रता से आसान कार्यों को कर लेते हैं. शायद ही उनका कोई जरुरी काम छूटता है. इस तरह वे अपने सभी काम को निर्धारित समय सीमा के भीतर निष्पादित करते हैं. अगले दिन काम करने की उनकी यही शैली होती है. वे चुनौतियों से घबराते नहीं, बल्कि उनके स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार रहते हैं. उनके लिए हर दिन एक नया दिन होता है और हर बड़ी-छोटी चुनौती से सफलतापूर्वक निबटना उनका मकसद.
दरअसल, आपको जब आज के तेज रफ़्तार कार्य संस्कृति में कई बार सबकुछ फटाफट एवं अच्छी तरह करना होता है, तब प्राथमिकता तय करके कार्य करना अनिवार्य होता है. नोट करने वाली बात यह है कि लगातार अच्छी सफलता अर्जित करनेवाले सभी लोग प्राथमिकता तय करके काम करने को कामयाबी तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण सूत्र मानते हैं. यहां एलन लेकीन की इस बात पर गौर करना फायदेमंद होगा कि अपनी प्राथमिकताओं की समीक्षा करें और यह सवाल पूछें – "हमारे समय का इस वक्त सबसे अच्छा उपयोग क्या है." इससे यह बात स्पष्ट होती है कि अगर अगले कुछेक घंटे में कई विषयों को पढ़ने या कई टास्क को पूरा करने की चुनौती हमारे सामने होती है, तो उसमें से कौन-सा पहले करें और कौन-सा बाद में, अपनी समझदारी से 'प्राथमिकता के सिद्धांत' को लागू करते हुए हम उन सबको को अति महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण और कम महत्वपूर्ण की तीन श्रेणी में बांट लेते हैं. और फिर प्राथमिकता के उसी क्रम को सामने रखकर न केवल सभी टास्क को यथासमय निबटाते हैं, बल्कि आगे उसके परिणाम में बेहतरी भी सुनिश्चित करते रहते हैं. हां, ऐसे समझदार लोग जरुरत पड़ने पर प्राथमिकता में थोड़ा-बहुत परिवर्तन के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार भी रहते हैं, जिससे कि सभी काम उसके टाइमलाइन के हिसाब से पूरा हो जाय. कहना न होगा, जीवन के हर क्षेत्र में अत्यंत सफल, सफल और कम सफल लोगों के बीच एक बड़ा फर्क प्राथमिकता प्रबंधन में उनकी दक्षता से भी तय होता है.
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