- मिलन सिन्हा
यह सर्वविदित है कि प्राणी मात्र को जीवित रहने के लिए आहार की आवश्यकता होती है । हम यह भी जानते हैं कि अलग -अलग जीवों के लिये आहार का प्रकार अलग -अलग होता है । लेकिन इनकी संख्या सीमित होती है सिवाय मानव जाति के । दिलचस्प तथ्य यह है कि मनुष्य द्वारा निर्मित इस संसार के अलग -अलग देश और समाज में प्राकृतिक और पारम्परिक कारणों से आहार से मुतल्लिक एक बहुरंगी व अदभुत दुनिया रात-दिन सक्रिय है । अन्न, फल, साग, सब्जी से लेकर दूध, अंडा, मांस, मछली आदि तक इस आहार संसार में शुमार हैं । इन चीजों पर आधारित नाना प्रकार के प्राकृतिक व कृत्रिम व्यंजन का सेवन हम घर -बाहर सुबह से रात तक करते हैं, फिर भी हमारे पांच इंच के जीभ की स्वाद पिपासा कम होने का नाम नहीं लेती । फलतः गृहणियां और शेफ-कुक नये-नये पकवानों पर न केवल शोध करते रहते हैं, बल्कि उन्हें तैयार भी करते हैं और हमें खिलाते भी हैं । लेकिन क्या हमने कभी जानने की कोशिश की है कि जीभ को संतुष्ट करने के चक्कर में हम दिनभर क्या-क्या और कितना खाते रहते हैं और इसका कैसा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है ? हम क्या, क्यों, कब और कितना खा रहे हैं - आहार से संबंधित ये बातें अहम व विचारणीय नहीं हैं क्या ? आखिर जो कुछ भी हमारे मुंह से पेट तक जाएगा, उसका लाभ -नुकसान हमें ही उठाना पड़ेगा; उसका अवशेष भी हमारे शरीर से ही निकलेगा । हम जानते हैं कि पौष्टिक आहार से प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन, मिनिरल आदि पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है जो हमें शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है । इस विषय में स्वास्थ्य विशेषज्ञों का स्पष्ट मत है कि एक सामान्य इंसान को सुबह का नाश्ता सबसे पौष्टिक और ज्यादा मात्रा में लेना चाहिए । दोपहर का खाना नाश्ते की तुलना में हल्का और रात का खाना तो बिलकुल ही सादा एवं हल्का होना चाहिए । जरा सोचिये, क्या हम ऐसा करते हैं; हमारे बच्चों -युवाओं की खान-पान की शैली कैसी है; क्या हम जीने के लिये खाते हैं या खाने के लिये जीते हैं ?
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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