- मिलन सिन्हा
आज जिधर देखिये अधिकांश लोग भागम -भाग में लगे हैं। घर में बैठ कर इत्मीनान से दो पल बात करने तक का समय नहीं है; खाने का समय नहीं है; परिवार के साथ घूमने का वक्त नहीं है। कारण बस वही - बहुत बिजी हैं! अब चूँकि बहुत बिजी हैं, तो इजी कैसे हो सकते हैं? चलिए, ऐसे लोग जो अपने काम से वाकई बिजी हैं, उनकी परेशानी तो फिर भी समझ में आती है, लेकिन ऐसे लोगों का क्या कहेंगे, जो बीजी होते नहीं हैं, बल्कि बिजी दिखते हैं, दिखाते हैं। दुर्भाग्य से ऐसे लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है जिसका नुकसान अंततः देश को ही उठाना पड़ता है।
इनसे जब भी मिलने का प्रयास करें, बताएंगे कि वे कितना बिजी हैं। आप उनसे एक हफ्ते बाद का समय मांगे तो कहेंगे - कब व कैसे मिलेगा समय, मालूम नहीं। यदि आप उनके व्यस्तता के बारे में सही जानकारी चाहते हैं तो उनके आसपास के लोगों यथा ड्राइवर, सहकर्मी आदि से पूछ लें। पता चलेगा कि वे बिजी हैं नहीं, लेकिन दिखाते हैं जिससे उनका महत्व एवं सोशल स्टेटस बढ़े। जरा सोचिये, किसी सार्थक प्रयोजन से बिजी रहना तो अच्छी बात है, लेकिन मात्र बिजी दिखने के लिए बिजी रहना ? अव्वल तो यह खुद से धोखाधड़ी है,साथ में समय की बर्बादी भी। दूसरे, जो खुद के प्रति ईमानदार नहीं होंगें, उनसे दूसरे के प्रति ईमानदार होने की अपेक्षा का कोई अर्थ नहीं। विशेषज्ञों की मानें तो ऐसे लोग बीमार मानसिकतावाले होते हैं, जिन्हें आईना दिखाने के साथ-साथ सही काउंसलिंग की तत्काल जरुरत है। शोध एवं सर्वेक्षण बताते हैं कि क्षणिक लाभ या इगो तुष्टिकरण के लिए किये गए कार्य अंततः हमें दुःख ही देते हैं। उत्तम तो यह है कि बिजी दिखने-दिखाने के चक्रव्यूह से निकलकर सार्थक रूप से सक्रिय रहें। इससे हमें आत्मसंतुष्टि की अनुभूति तो होगी ही,हम गुडलाइफ का भरपूर मजा भी ले पायेंगे।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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