- मिलन सिन्हा
पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, घाटी-पहाड़, नदी-तालाब के साथ रहते-सीखते लोग बेशक कम डिग्री वाले हों, पर होते हैं अपेक्षाकृत ज्यादा समझदार, मेहनती व स्वस्थ। ऐसे लोग यह बेहतर जानते हैं कि हर चीज चाहने मात्र से उसी वक्त नहीं मिल सकती है, उसके लिए यथोचित श्रम, अनुकूल मौसम व सही समय महत्वपूर्ण है। वैसे ही जैसे आम, जामुन,लीची आदि फलों के लिए हमें इस गर्मी का इंतजार करना पड़ता है। किसान इस बात को बखूबी जानते हैं और पूरे धैर्य व संयम के साथ प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए जीवन के सुख-दुःख में चैन से जीते हैं। हम जानते हैं कि हमारा मौसम चक्र सूरज की आकाशीय गति पर निर्भर करता है और इसीलिये हमारा कृषि एवं भोजन विज्ञान उसी के अनुरूप चलता है। तभी तो हम अलग-अलग मौसम में भांति -भांति के अनाज, सब्जी,फल आदि का स्वाद भी ले पाते हैं और मौसम के अनुरूप शरीर को स्वस्थ बनाये रखने लिए आवश्यक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, मिनिरल व विटामिन भी प्राप्त कर लेते हैं।ज्ञानीजन तो कहते ही हैं कि मनुष्यता का सारा विकास प्रकृति के साथ तारतम्य बिठाकर ही हुआ है।
प्रकृति के सम्पर्क में रहने का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक दृष्टिकोण पर भी पड़ता है। इस क्रम में मनुष्य को प्रकृति की अपार शक्ति का ज्ञान होता है और तब वह भी अपने भीतर की शक्तियों को जगाने का प्रयास करता है। इस पूरी प्रक्रिया में व्यक्ति के आत्मविश्वास में इजाफा तो होता ही है, उनके विचार तथा व्यवहार दोनों में परिष्कार भी दिखने लगता है। संक्षेप में कहें तो प्रकृति को जानने-समझने तथा उसके सानिध्य में जीनेवाले लोगों की प्रकृति व प्रवृत्ति भी प्रकृति के तरह अनुशासित, उदार व समावेशी होता है।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
No comments:
Post a Comment