- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
बहुत खुशी और गर्व की बात है कि कोरोना वैश्विक महामारी से बचाव के लिए देश के चिकित्सा वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड टाइम में दो वैक्सीन तैयार कर लिया और उसे अब चरणबद्ध तरीके से लोगों को लगाया भी जा रहा है. पर गौर करनेवाली बात यह भी है कि गंभीर संकट के इस दौर में भी अपवाहों का बाजार संचालित करनेवाले लोग बहुत सक्रिय रहे हैं. अपवाह की महामारी से लोगों को डिस्टर्ब करने में निरंतर लगे हैं. आपको याद होगा कि चाहे प्रवासी मजदूरों के पलायन की बात हो, कोविड -19 वायरस से संक्रमित होनेवाले लोगों की जांच और इलाज की बात हो, गरीबों को मुफ्त राशन मुहैया करवाने की बात हो, चीन और पाकिस्तान बॉर्डर पर सैन्य तनाव की बात हो, विद्यार्थियों के परीक्षा में शामिल होने की बात हो या समाज व सरकार से जुड़ी कोई अच्छी बात, हर मामले में देश को बेवजह अपवाहों का शिकार होना पड़ा है. इसके कारण आवश्यक कार्यों से व्यक्ति, समाज और सरकार का ध्यान बंटना अस्वाभाविक नहीं है. यकीनन, इसका नुकसान देश की सभी लोगों को उठाना पड़ता है जिसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थी भी शामिल हैं.
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. यहां सात दशकों से ज्यादा समय से शासन-प्रशासन की व्यवस्था देश के संविधान के अनुसार काम कर रही है. देश की न्यायप्रणाली स्वतंत्र है और चुनाव आयोग तथा मीडिया भी. चुनाव आयोग द्वारा संचालित चुनावों में वयस्क भारतीय मताधिकार का प्रयोग करके अपना प्रतिनिधि चुनकर न केवल लोकसभा और विधानसभा में भेजते हैं, बल्कि ग्राम पंचायत तक में भेजते हैं. कानून बनाने और उसके कार्यान्वयन के स्थापित नियम हैं और उसकी अवहेलना करने पर दंड का प्रावधान भी. इतना सब होने के बावजूद भी देश में सभी लोगों को किसी भी मुद्दे पर समाज-सरकार की नीतियों आदि का शांतिपूर्ण विरोध करने का हक हासिल है. लेकिन बिना सोचे-समझे सिर्फ सुनी-सुनाई बातों या अपवाहों के आधार पर विरोध करना और वह भी हिंसक विरोध करना तथा सार्वजनिक संपत्ति सहित लोगों को शारीरिक-मानसिक नुकसान पहुंचाना कहां तक उचित है?
गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर किसान आन्दोलन के नाम पर जो शर्मनाक घटनाएं देश की राजधानी दिल्ली में घटी, उसमें कथित रूप से कई विद्यार्थी भी शामिल थे. हो सकता है कि उपद्रव में संलिप्त रहे कुछ विद्यार्थी किसान पुत्र हों या किसानों के विरोध प्रदर्शन के समर्थक. जो भी स्थिति हो, जो कुछ उस ऐतिहासिक दिन किया गया, उससे तो समाज और देश शर्मसार हुआ ही. प्रशासन अब इसकी गहरी जांच करने में जुटी है और दोषियों को सजा भी मिलेगी, ऐसा सबको विश्वास है. बहरहाल, यहां सभी विद्यार्थियों के सामने यह विचारणीय सवाल है कि किसी भी स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय विषय पर अपना मत व्यक्त करने या उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के मामले में क्या करना चाहिए, वह भी तब जब उस विषय पर अपवाहों का बाजार गर्म हो?
जल्दबाजी कदापि न करें. संबंधित विषय या मुद्दे की सही जानकारी प्राप्त करें. नीति-नियम-कानून की बात हो, तो मूल डॉक्यूमेंट को पढ़ें और उस पर पहले खुद सोच-विचार करें. सोशल मीडिया पर चल रही उससे संबंधित बातों से ज्यादा अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख या एक्सपर्ट कमेंट्स पर गौर करें. पॉजिटिव और नेगेटिव पॉइंट्स को नोट करें. फिर खुद से ज्यादा समझदार व्यक्ति - अभिभावक, शिक्षक, मेंटर, सीनियर आदि से विचार-विमर्श करें. इसके बाद भी अगर आपको लगता है कि आपको इस विषय में अपना विरोध व्यक्त करना है, तो शालीन, शांतिपूर्ण और कानूनी तरीके से करें. टेक्नोलॉजी संपन्न दुनिया में आज सच्ची, प्रासंगिक और सार्थक बातें दूर तक तुरत पहुंचती हैं. हां, झूठ, चटपटी, अश्लील और निरर्थक बातें बेशक थोड़ी दूर चल तो सकती है, लेकिन उसकी आयु और ग्राह्यता बहुत कम होती है. एक अहम बात और. विद्यार्थी जीवन में आपकी पहली प्राथमिकता क्या है, इसको हरदम याद रखना बहुत जरुरी है. कोई भी व्यक्ति सब काम एक साथ नहीं कर सकता और ठीक से तो कभी नहीं कर सकता. और तो और सिर्फ आवेग और आवेश में आकर किए गए कार्यों की परिणिति कभी अच्छी नहीं होती. अतः न तो खुद अपवाहों से चालित होकर कुछ भी अवांछित करने का प्रयास करें और न ही अपने साथी-सहपाठी को उकसाएं या प्रेरित करें. इसके विपरीत खुद अपवाहों से बचें और आसपास के कम समझदार लोगों को भी इससे बचाने का यथासंभव प्रयास करें. रिजल्ट एकदम ठीक होगा.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 14.02.2021 अंक में प्रकाशित
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