Wednesday, April 28, 2021

अपवाह की महामारी से बचाव भी जरुरी

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

बहुत खुशी और गर्व की बात है कि कोरोना वैश्विक महामारी से बचाव के लिए देश के चिकित्सा वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड टाइम में दो वैक्सीन तैयार कर लिया और उसे अब चरणबद्ध तरीके से लोगों को लगाया भी जा रहा है.
पर गौर करनेवाली बात यह भी है कि गंभीर संकट के इस दौर में भी अपवाहों का बाजार संचालित करनेवाले लोग बहुत सक्रिय रहे हैं. अपवाह की महामारी से लोगों को डिस्टर्ब करने में निरंतर लगे हैं. आपको याद होगा कि चाहे प्रवासी मजदूरों के पलायन की बात हो, कोविड -19 वायरस से संक्रमित होनेवाले लोगों की जांच और इलाज की बात हो, गरीबों को मुफ्त राशन मुहैया करवाने की बात हो, चीन और पाकिस्तान बॉर्डर पर सैन्य  तनाव की बात हो, विद्यार्थियों के परीक्षा में शामिल होने की  बात  हो या समाज व सरकार से जुड़ी कोई अच्छी बात, हर मामले में देश को बेवजह अपवाहों का शिकार होना पड़ा है. इसके कारण आवश्यक कार्यों से व्यक्ति, समाज और सरकार का ध्यान बंटना अस्वाभाविक नहीं है. यकीनन, इसका नुकसान देश की सभी लोगों को उठाना पड़ता है जिसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थी भी शामिल हैं. 


हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. यहां  सात दशकों से ज्यादा समय से शासन-प्रशासन की व्यवस्था देश के संविधान के अनुसार काम कर रही है. देश की न्यायप्रणाली स्वतंत्र है और चुनाव आयोग तथा मीडिया भी. चुनाव आयोग द्वारा संचालित चुनावों में वयस्क भारतीय मताधिकार का प्रयोग करके अपना प्रतिनिधि चुनकर न केवल लोकसभा और  विधानसभा में भेजते हैं, बल्कि ग्राम पंचायत तक में भेजते हैं. कानून बनाने और उसके कार्यान्वयन के स्थापित नियम हैं और उसकी अवहेलना करने पर दंड का प्रावधान भी. इतना  सब होने के बावजूद भी देश में सभी लोगों को किसी भी मुद्दे पर समाज-सरकार की नीतियों आदि का  शांतिपूर्ण विरोध करने का हक हासिल है. लेकिन बिना सोचे-समझे सिर्फ सुनी-सुनाई बातों  या अपवाहों के आधार पर विरोध करना और वह भी हिंसक विरोध करना तथा सार्वजनिक संपत्ति सहित लोगों को शारीरिक-मानसिक नुकसान पहुंचाना कहां तक उचित है? 


गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर किसान आन्दोलन के नाम पर जो शर्मनाक घटनाएं देश की राजधानी दिल्ली में घटी, उसमें कथित रूप से कई  विद्यार्थी भी शामिल थे. हो सकता है कि उपद्रव में संलिप्त रहे कुछ विद्यार्थी किसान पुत्र हों या किसानों के विरोध प्रदर्शन के समर्थक. जो भी स्थिति हो, जो कुछ उस ऐतिहासिक दिन किया गया, उससे तो समाज और देश शर्मसार हुआ ही. प्रशासन अब इसकी गहरी जांच करने में जुटी है और दोषियों को सजा भी मिलेगी, ऐसा सबको विश्वास है.
बहरहाल, यहां सभी विद्यार्थियों के सामने यह विचारणीय सवाल है कि किसी भी स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय  या अंतरराष्ट्रीय विषय पर अपना मत  व्यक्त करने या उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के मामले में क्या करना चाहिए, वह भी तब जब उस विषय पर अपवाहों का बाजार गर्म हो? 


जल्दबाजी कदापि न करें. संबंधित विषय या मुद्दे की सही जानकारी प्राप्त करें. नीति-नियम-कानून की बात हो, तो मूल डॉक्यूमेंट को पढ़ें और उस पर पहले खुद सोच-विचार करें. सोशल मीडिया पर चल रही उससे संबंधित बातों से ज्यादा अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख या एक्सपर्ट कमेंट्स पर गौर करें. पॉजिटिव और नेगेटिव पॉइंट्स को नोट करें. फिर खुद से ज्यादा समझदार व्यक्ति - अभिभावक, शिक्षक, मेंटर, सीनियर आदि से विचार-विमर्श करें. इसके बाद भी अगर आपको लगता है कि आपको इस विषय में अपना विरोध व्यक्त करना है, तो शालीन, शांतिपूर्ण और कानूनी तरीके से करें.
टेक्नोलॉजी संपन्न दुनिया में आज सच्ची, प्रासंगिक और सार्थक बातें दूर तक तुरत पहुंचती हैं. हां, झूठ, चटपटी, अश्लील और निरर्थक बातें बेशक थोड़ी दूर चल तो सकती है, लेकिन उसकी आयु और ग्राह्यता बहुत कम होती है. एक अहम बात और. विद्यार्थी जीवन में आपकी पहली प्राथमिकता क्या है, इसको हरदम याद रखना बहुत जरुरी है. कोई भी व्यक्ति सब काम एक साथ नहीं कर सकता और ठीक से तो कभी नहीं कर सकता. और तो और सिर्फ आवेग और आवेश में आकर किए गए कार्यों की परिणिति कभी अच्छी नहीं होती. अतः न तो खुद अपवाहों से चालित होकर कुछ भी अवांछित करने का प्रयास करें और न ही अपने साथी-सहपाठी को उकसाएं या प्रेरित करें. इसके विपरीत खुद अपवाहों से बचें और आसपास के कम समझदार लोगों को भी इससे बचाने का यथासंभव प्रयास करें. रिजल्ट एकदम  ठीक होगा.  

  (hellomilansinha@gmail.com)     

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 14.02.2021 अंक में प्रकाशित
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Friday, April 23, 2021

वेलनेस पॉइंट: संक्रमण के दौर में जरूरी हैं ये कदम

                                           - मिलन  सिन्हा,  वेलनेस  कंसलटेंट एंड मोटिवेशनल स्पीकर

कोविड -19 का संक्रमण एक बार फिर गंभीर रूप ले रहा है. यह अच्छी बात है कि पहली मई से 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन की सुविधा उपलब्ध होने वाली है.
प्रधानमन्त्री ने एकाधिक बार कहा है कि दवाई भी और कड़ाई भी. कहने का तात्पर्य यह कि अधिक-से-अधिक लोग टीका लगवाएं और कोविड -19 से संबंधित दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करें. आप अपने सेहत के साथ ही दूसरों की सेहत का भी ख्याल रखें. बेशक, टीकाकरण अभियान रफ़्तार में है, लेकिन यह मत भूलें किकोरोना का संक्रमण भी चरम पर है. अभी तक के मामलों पर नजर डालें तो सुरक्षित वही लोग हैं, जो सुरक्षा उपायों को अपनाने के साथ सेहत के प्रति गंभीर हैं. तो  आइए, संक्रमण के इस नए दौर में कुछ जरुरी बातों पर अमल की चर्चा करते हैं:


1. लापरवाही कतई न बरतें. हमेशा सावधान रहें, क्यों कि हर हालत में सावधानी ही सबसे बड़ी सुरक्षा है.
2. सरकारी दिशानिर्देशों का पूरा पालन करें जैसे मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग, हैण्ड वाशिंग आदि. भीड़वाले स्थान में या तो न जाएं या वहां अतिरिक्त सावधानी बरतें. इस मामले में परिजनों और मित्रों को भी प्रेरित करने का प्रयास करें. 
3. अगर वैक्सीन लेने की अहर्ता है यानी अबतक के गाइडलाइन्स के अनुसार 18 साल से ऊपर के हैं, तो यथाशीघ्र टीका लगवाएं. हाँ, वैक्सीन के दोनों डोज लगने के बाद भी मास्क आदि की जरुरी सावधानी बरतना न छोड़ें.  


4. टीका लगे या न लगे, अपने बचाव और सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय जरुर करें:


i) हर महीने तीन दिन सुबह खाली पेट होमियोपैथी की दवा आर्सनिक एल्बम -30 की तीन बूंदों  या चार-पांच गोलियों का सेवन करें. 
ii) हो सके तो दिनभर गुनगुने पानी का सेवन करें. कम-से-कम सुबह उठने के बाद और रात में सोने से पहले तो जरुर करें. बहुत लाभ मिलेगा.
iii) फिलहाल घर पर ही रह कर व्यायाम और योगाभ्यास करें. प्राणायाम यानी ब्रीदिंग एक्सरसाइज में कम-से-कम अनुलोम-विलोम, कपालभाती और भ्रामरी कर लें. 
iv) प्राकृतिक रूप से उपलब्ध चीजों - फल, सब्जी, अनाज, दाल आदि का यथोचित मात्रा  में सेवन करें जिससे कि प्रोटीन आदि के अलावे खासकर विटामिन सी, बी और डी मिल सके और साथ ही जिंक, आयरन, मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स भी मिल जाएं. प्राकृतिक रूप से पर्याप्त मात्रा  न मिले तो सप्लीमेंट के रूप में सेवन करें. नींबू, आंवला और शहद को भी डाइट में शामिल करें. इससे आपके इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग बनाए रखने में मदद मिलेगी. 
v) दिनभर में कम से कम दो बार काढ़ा पीएं या ग्रीन टी का सेवन करें - एक बड़े कप में खूब आराम से. अन्य आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक उपचार का सहारा भी ले सकते हैं. 
vi) फ़ास्ट फ़ूड, जंक फ़ूड, कोल्ड ड्रिंक, अल्कोहल आदि को भूल जाएं. यथा संभव ताजा घरेलू खाना खाएं. 
vii) नाश्ता जरुर करें वह भी बहुत पौष्टिक. रात का खाना हल्का हो और हो सके तो नौ बजे से पहले कर लें. संक्रमण के इस दौर में कुछ दिनों तक सुबह नाश्ते से पहले और रात में सोने से पहले एक चम्मच च्वयनप्राश का सेवन बहुत लाभकारी होगा. 
viii) जब भी मौका मिले संगीत का आनंद लें. परिजनों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं और रात में 7-8 घंटे अच्छी नींद लें.  
ix) संक्रमण का थोड़ा भी अंदेशा हो या लक्षण दिखाई दे तो कोरोलिन एवं श्वासरी की गोली का सेवन शुरू कर सकते हैं. साथ-ही-साथ कोरोना संक्रमण का टेस्ट भी करवा लें.
x) संक्रमित हो जाने पर छुपाएं नहीं और एकदम नहीं घबराएं. सोच सकारात्मक और मनोबल ऊँचा रखें. अपवाहों पर ध्यान न दें. सावधानी के बावजूद बेशक कम संख्या में ही सही, कोरोना संक्रमण किसी को भी हो सकता है और इसका इलाज उपलब्ध है. बस इलाज की प्रक्रिया का अच्छी तरह पालन करें. सब बढ़िया होगा.   

 (hellomilansinha@gmail.com)    


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# "दैनिक जागरण" एवं "नई दुनिया" के सभी संस्करणों में 21.04.2021 को प्रकाशित  

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Tuesday, April 13, 2021

संस्कृति व सभ्यता पर गर्व करें

                                 - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

क्या सभी विद्यार्थी देश की गौरवशाली संस्कृति व सभ्यता पर गर्व करते हैं? इस विषय पर गंभीरता से सोच-विचार करने की जरुरत है. संस्कृति और सभ्यता किसी भी देश की पहचान होती है.
यह सर्वज्ञात है कि भारत की संस्कृति व  सभ्यता सबसे प्राचीन और महान है. स्कूल-कॉलेज  में विद्यार्थियों को यह पढ़ाया जाता है कि हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता की यात्रा कितनी चुनौतीपूर्ण, रचनात्मक और गौरवशाली रही है. हां, यह सही है कि आजादी यानी वर्ष 1947 से पहले करीब सवा चार सौ वर्षों तक हमारा देश आंशिक या पूर्णतः मुगलों और अंग्रेजों के शासनाधीन रहा. इस दौरान सुनियोजित तरीके से देश के लोगों को यह बताने और समझाने के साथ-साथ जोर-जबरदस्ती यह मनवाने की पूरी कोशिश होती रही कि हमारी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करने लायक कोई बात नहीं है. उस दौरान पाठ्यक्रमों के मार्फत  यह बड़ा प्रयास भी लगातार चलता रहा कि बच्चे शुरू से ही यह जानने और मानने लगें कि भारतवासी गरीबी, अशिक्षा और गुलामी की मानसिकता से पीड़ित हैं. लेकिन उस दौर में भी हमारे देश में अनेक वीर योद्धा, संत और विद्वान् हुए जिन्होंने अपने-अपने तरीके से लोगों को यह बताने की अपनी कोशिश जारी रखी  कि हमारे  देश की सभ्यता व  संस्कृति बहुत उन्नत रही है और भारतवासियों ने प्राचीन काल से ही ज्ञान-विज्ञान, संगीत-साहित्य, कृषि-जलवायु, योग-आयुर्वेद आदि हर विषय में मानवजाति को बराबर लाभान्वित करने का काम किया है और आगे भी करते रहेंगे. 


इसी सन्दर्भ में स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "मैं चुनौती देता हूँ कि कोई भी व्यक्ति भारत के राष्ट्रीय जीवन का कोई भी ऐसा काल मुझे दिखा दे जिसमें यहां समस्त संसार को हिला देने की क्षमता रखनेवाला आध्यात्मिक महापुरुषों का अभाव रहा हो.... ...हमारा पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है. यहीं बड़े-बड़े महात्माओं और ऋषियों का जन्म हुआ है. यह सन्यास और त्याग की भूमि है तथा केवल यहीं, आदि काल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श का द्वार खुला हुआ है ... ...यह देश दर्शन, धर्म, आचरण-शास्त्र, मधुरता, कोमलता और प्रेम की मातृभूमि है.... ....हमारी इस मातृभूमि में इस समय भी धर्म और अध्यात्मिक ज्ञान  का जो स्त्रोत बहता है, वह समस्त जगत को आप्लावित करके प्रायः समाप्तप्राय, अर्धमृत तथा पतन उन्मुखी पाश्चात्य और दूसरी जातियों में भी नव-जीवन का संचार करेगी." 


इस मामले में प्रसिद्ध कवि, लेखक, विचारक और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विचार भी बड़े प्रासंगिक हैं. वे पूछते हैं, हमारी धरती ने विश्व को क्या नहीं दिया? वे कहते हैं कि श्रीमद् भागवत गीता जैसी अदभुत रचना विश्व को भारत ने ही दी है. गीता में दिया गया दिव्य ज्ञान समस्त मानवजाति को विश्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत कर देता है. 'अमर आग है' शीर्षक कविता में वे लिखते हैं: अमर भूमि में, समर भूमि में, धर्म भूमि में, कर्म भूमि में, गूंज उठी गीता की वाणी, मंगलमय जन-जन कल्याणी. अपढ़, अजान विश्व ने पाई, शीश झुकाकर एक धरोहर. कौन दार्शनिक दे पाया है, अबतक ऐसा जीवन दर्शन?"  

   
इतना ही नहीं, विद्यार्थियों को यह जानकर भी गौरव और प्रसन्नता होगी कि अनेक जाने-माने विदेशी विद्वानों-वैज्ञानिकों ने भी समय-समय पर भारत की गौरवशाली संस्कृति और सभ्यता   पर  खुलकर अपने विचार व्यक्त किए हैं.
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक और नाटककार रोमां रोलां कहते हैं, "यदि इस धरती पर कोई ऐसी जगह है जहां  प्राचीन काल के आरंभिक  दिनों से ही, जब मानव ने सपने देखने शुरू किये और उसके सभी सपनों को आश्रय मिला, तो वो स्थान भारत है." विख्यात अमेरिकी लेखक, इतिहासकार और दार्शनिक विल   ड्यूरेंट इन शब्दों में अपने विचार व्यक्त करते हैं, "भारत हमारी जाति की मातृभूमि थी, और संस्कृत यूरोप की भाषाओं की जननी; वो हमारे दर्शन की जननी थी; अरबों के माध्यम से हमारे गणित के अधिकतर ज्ञान की जननी; बुद्ध के माध्यम से क्रिश्चियनिटी में अपनाये गए आदर्शों  की जननी; ग्रामीण समुदायों के माध्यम से स्वशासन और लोकतंत्र की जननी. भारत माता कई मायनों में हम सबकी माता है." और अंत में  महान भौतिक विज्ञानी  अल्बर्ट आइंस्टीन के अनमोल विचार: "हम भारतीयों के कृतज्ञ हैं, जिन्होंने हमें गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई सार्थक वैज्ञानिक खोज नहीं की जा सकती थी." हां, ऐसे और अनेकानेक प्रेरक मंतव्य सहज सुलभ हैं.   

  (hellomilansinha@gmail.com)       

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 07.02.2021 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, April 6, 2021

माता, पिता और गुरु की महत्ता

                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

शैक्षणिक संस्थाओं में छात्र-छात्राओं को जीवन में ज्ञान और संस्कार के महत्व की बात गाहे-बगाहे सब कोई बताते हैं. आम तौर पर हमारे घर-समाज में भी यह चर्चा का एक अहम विषय होता है.
व्यक्ति और समाज ज्ञानवान और संस्कारवान हो तो देश न केवल सही मायने में समृद्ध व समर्थ बनता है, बल्कि विश्व को मानवता और विश्वबंधुत्व  का  पाठ पढ़ाने में सक्षम भी माना जाता है. विद्यार्थियों के लिए इसकी अहमियत को समझना और उसे सतत जीवन में अपनाने के बहुमूल्य फायदे हैं. यह काम मुश्किल भी नहीं है. इसकी बढ़िया शुरुआत तो बस माता, पिता और गुरु की महत्ता को जानने-समझने और उनको सम्मान देने से हो जाती है. इसकी बुनियाद पर चलते हुए विद्यार्थियों का जीवन हर मामले में उन्नत होता जाता है. ज्ञातव्य है कि रामायण, महाभारत सहित हमारे सभी प्राचीन ग्रंथों में माता, पिता और गुरु की महिमा की असंख्य प्रेरक कथाएं दर्ज हैं.  

  
दरअसल, माता-पिता से बड़ा कोई हितैषी, मार्गदर्शक और रिश्तेदार नहीं होता. हमारा उनसे रिश्ता सबसे पुराना, आत्मीय और नैसर्गिक होता है
. खुद अपने माता-पिता को इस नजरिए से देखने और जानने का प्रयास करें. यकीनन, उनके प्रति आपकी धारणा में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव आएगा. जरा सोचिए, कैसे आपकी माँ हर रोज सुबह उठकर आपको स्कूल भेजने के लिए  जगाती है, तैयार करती है, नाश्ता करवाती है, टिफिन बनाकर देती है और कई बार आपके गंदे जूते पॉलिश करके हंसते हुए आपको विदा करती है और जबतक आप आंख से ओझल नहीं हो जाते, तबतक आपको जाते हुए देखती रहती है. कहते हैं कि एक माँ अपने बच्चे को नौ महीने अपने गर्भ में पालती है, फिर अपनी गोद में और फिर आगे अपने स्नेह और प्यार की छाँव में. रुडयार्ड किपलिंग कहते हैं, 'भगवान सभी जगह नहीं हो सकते,  इसलिए उन्होंने  माँ को अपनी जगह घर-घर भेजा है." 


हमारे जीवन में पिता एक संरक्षक, पथप्रदर्शक और सदा हौसला बढ़ानेवाले व्यक्ति के रूप में साथ रहते हैं. पिता एक ऐसा फलदार-छायादार पेड़ हैं जो हमारा भरण-पोषण करने के साथ-साथ हमें धूप, बारिश और तूफ़ान से बचाने का काम सहर्ष करते हैं.
खुद पुराने कपड़े, जूते आदि से काम चलाते रहते हैं, लेकिन हर पर्व-त्यौहार में हमारे लिए नये कपड़े आदि खरीदने में संकोच या किफायत नहीं करते. हर पिता की दिली इच्छा होती है कि उनके संतान बहुत अच्छी शिक्षा ग्रहण करें, उनसे हर मामले में बेहतर बनें और अच्छी तरह जीएं. इस हेतु वे यथासाध्य सर्वदा प्रयासरत रहते हैं.


टेक्नोलॉजी चालित हमारे आज के जीवन में गुरु की अहमियत को माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक एवं टेक विशेषज्ञ बिल गेट्स इन शब्दों में रेखांकित करते हैं, " टेक्नोलॉजी एक औजार मात्र है. बच्चों को एक साथ पढ़ाने और प्रोत्साहित करने में शिक्षक की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है."
भारतीय संस्कृति में तो गुरु को भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है. गुरु की महिमा पर संत कबीर द्वारा लिखे इस दोहे को सभी विद्यार्थियों ने जरुर पढ़ा होगा. वे लिखते हैं, "गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरू आपने जो गोविन्द दियो बताय." यहां संत  कबीर  कहते हैं कि  जब गुरू और गोविन्द (ईश्वर) एक साथ खड़े हों, तब पहले किन्हें प्रणाम करना चाहिए - गुरू को या ईश्वर को? हां, पहले गुरु को नमन करना चाहिए, क्यों कि गुरु के कारण ही हम गोविन्द के विषय में जान पाए हैं. संत कबीर  एक अन्य दोहे में लिखते हैं, "गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष (मोक्ष); गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष." कहने का मतलब यह कि बिना गुरू के ज्ञान मिलना संभव नहीं है. गुरु के बिना मोक्ष का  मार्ग नहीं मिल सकता है.  बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता; उचित-अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता. और तो और दोष भी नहीं मिटता." अन्य अनेक विद्वानों ने भी गुरु की महत्ता का खूब बखान किया है.

 
अतः हर विद्यार्थी अपने माता-पिता से कम-से-कम कर्तव्य, त्याग और संयम की प्रेरणा तो ले ही  सकता है. उसी तरह अपने गुरु से समर्पण, सहयोग और सकारात्मकता की सीख ले सकता है.
सार संक्षेप यह कि आज के तथाकथित आधुनिक युग में जब कि भौतिक समृद्धि, चकाचौंध, आडम्बर आदि का आकर्षण ज्यादा है, छात्र-छात्राओं को यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि माता, पिता और गुरु की बातों को अमल में लाकर ही वे जीवन में सफलता, समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशी के बीच बेहतर संतुलन स्थापित कर पायेंगे और अपने जीवन को वास्तव में सार्थक भी बना सकेंगे. 

 (hellomilansinha@gmail.com)    


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
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