Tuesday, March 17, 2020

संतुलन का महत्व

                                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
अगले कुछ महीने स्कूल-कॉलेज की परीक्षाओं को समर्पित रहेंगे. सालों भर नियमित अध्ययन  न करनेवाले विद्यार्थी भी इस दौरान पढ़ने-लिखने में जुट जायेंगे. सोचनेवाली बात है कि परीक्षा के पहले पूरा कोर्स अच्छी तरह से पढ़ना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल तो जरुर है. ऐसे भी एक साथ सब साधने की कोशिश का परिणाम शायद ही उत्कृष्ट हो पाता है. "एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए वाली सर्वसत्य बात से सभी परिचित हैं. कहने का सीधा मतलब यह कि जो काम जिस समय करना है, उस पर ही फोकस करें. साथ ही इस बात को समझकर और दिल से मानकर चलें कि जीवन को बढ़िया से चलाते रहने के लिए जरुरी सब कार्यों के बीच एक संतुलन भी बनाकर चलना निहायत जरुरी और लाभप्रद होता है.
     
अपनी लंबी यात्रा के दौरान गौतम बुद्ध ने जीवन में मध्यम मार्ग का दर्शन रखा. वाद्य यंत्र वीणा के उदाहरण से इसे समझना आसान है. वीणा के तारों को ढीला छोड़ दें तो संगीत के सुर नहीं निकलेंगे. इसके विपरीत अगर तारों को ज्यादा कस दें तो तार ही टूट जायेंगे, तो संगीत का  सवाल ही नहीं. जब तारों को  न तो ढीला छोड़ेंगे और न ही ज्यादा कसेंगे, तभी संगीत के स्वर फूटेंगे. बुद्ध के अनुसार हमारे जीवन को सुचारू ढंग से चलाने के लिए मध्यम मार्ग अर्थात संतुलन को अपनाना बेहतर होता है.

जीवन में संतुलन की महत्ता को सभी स्वीकारते तो हैं, तथापि अपने आसपास नजर दौड़ाने पर  पता चलता है कि बहुत सारे  विद्यार्थी असंतुलित जीवन जीते हैं. परीक्षा का समय हो तो खाना-पीना-सोना सब भूलकर पढ़ने की कोशिश करते हैं. लेकिन परीक्षा ख़त्म होने के बाद पढ़ना-लिखना भूल जाते हैं और मौज-मस्ती में व्यस्त हो जाते हैं. जाने-अनजाने में अनेक  विद्यार्थी ऐसा करते हैं.  ऐसे विद्यार्थियों के जीवन में झांक कर देखें तो पता लगता है कि समय-समय पर बुद्धि एवं श्रम का यथोचित इस्तेमाल करने के बावजूद उनके जीवन में सफलता, संतुष्टि, सुख तथा  सकून की कमी बनी रहती है. वे इस बात को समझ नहीं पाते कि जीवन में अतिवादी रुख से क्षणिक लाभ तो हो सकता है, लेकिन सतत लाभ के भागी बनने के लिए संतुलन का मार्ग अपनाना ज्यादा अच्छा होता है. 

अनेक महान व्यक्तियों ने समय-समय पर इस बात को रेखांकित किया है  कि  जीवन साइकिल की सवारी करने के समान है. इसमें हमेशा संतुलन की आवश्यकता होती है. ऐसे लोगों ने दिनभर के चौबीस घंटे में पढाई-लिखाई, अन्य कामकाज, खेलकूद, मनोरंजन और आराम में संतुलन बनाने में सफलता पाई और परिणामस्वरुप वे असाधारण कार्यों को करने में सफल होते रहे. सोचिए जरा कि अगर कोई विद्यार्थी खाना-पीना, आराम करना आदि पर बिलकुल ध्यान न देकर सिर्फ पढ़ता रहे  है तो इसका परिणाम अंततः यही होगा कि वह अस्वस्थ और कमजोर हो जाएगा और आगे चाहकर भी वह कुछ घंटों की पढ़ाई तक नहीं कर पायेगा. नतीजतन, वह चाहकर भी अपने निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुंच पायेगा. मजेदार बात यह है कि इसका उलटा भी उतना ही सच है. कहने का तात्पर्य यह कि अगर कोई विद्यार्थी चौबीस घंटे में अधिकांश समय सोता रहे या आराम करता रहे या मनोरंजन-मौजमस्ती-खानपान में व्यतीत करता रहे, उसका भी दुष्प्रभाव उसके सेहत और परीक्षा के रिजल्ट पर जरुर पड़ेगा.   

विश्वविख्यात प्रबंधन विशेषज्ञ तथा ट्रेनर डेल कार्नेगी भी कहते है, "यह हम सबके लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि हम अपनी जिंदगी को संतुलित बनाएं और काम के अलावे दूसरी चीजों के लिए भी जगह रखें. इससे हमारा व्यक्तिगत जीवन ज्यादा सुखी और संतुष्टिदायक बन जाएगा. लगभग हमेशा ही इससे लोग ज्यादा ऊर्जावान, ज्यादा एकाग्र और काम में ज्यादा उत्पादक बन जाते हैं." कार्नेगी ने कई जानेमाने लोगों का उदहारण देकर इसे समझाने का प्रयास  किया है. उनकी स्पष्ट मान्यता है कि काम और फुरसत के बीच संतुलन से ही निरंतर उच्च प्रदर्शन करना संभव होता है. ऐसे भी जिंदगी एक लंबी यात्रा है और सबको रोज कुछ अच्छा करने की चाहत भी रहती है और उसके अनुरूप काम करने प्रेशर भी. कोई चाहकर भी एक दिन, एक हफ्ते, एक महीने या एक साल में सब कुछ नहीं हासिल कर सकता. इसके लिए संतुलन का दामन थामकर समयबद्ध और नियमबद्ध तरीके से काम करते हुए ही बड़े लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है.  (hellomilansinha@gmail.com)

             
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

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