Friday, September 13, 2019

शॉर्टकट से नहीं मिलेगी मंजिल

                                                           - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
सभी विद्यार्थी सफल होना चाहते हैं. विद्यार्थी जीवन अनेक नयी बातों को जानने, समझने और सीखने का प्राइम टाइम होता है. जीवन के बुनियादी वसूलों से विद्यार्थी अवगत होते हैं. कहते हैं कि अच्छी शुरुआत से आधा काम संपन्न हो जाता है. सही है. उदाहरण के तौर पर जिन विद्यार्थियों के पढ़ने-लिखने की शुरुआत अच्छी होती है और जो आगे भी निष्ठापूर्वक अध्ययन करते हैं, उनके लिए परीक्षा में अच्छा अंक लाना आसान हो जाता है. ऐसे विद्यार्थी "देयर इज नो शॉर्टकट टू सक्सेस" जैसी उक्ति पर विश्वास करते हैं. रूटीन बनाकर साल-दर-साल नियमित पढ़ाई करते हैं. प्रामाणिक पुस्तकों को पढ़कर विषय की बुनियादी जानकारी अच्छी तरह ग्रहण करते हैं. यही कारण है कि सिविल सर्विसेस परीक्षा के प्रतिभागियों को विषय के बेसिक नॉलेज के लिए एनसीईआरटी की पुस्तकें अच्छी तरह पढ़ने की सलाह दी जाती है. 

क्या सभी विद्यार्थी ऐसा करते हैं? सच तो यह है कि कुछ विद्यार्थियों को ऐसा करना अच्छा नहीं लगता है. वे क्लास में भी सीरियस नहीं रहते हैं. क्लास बंक करके मौज-मस्ती करने में वे अपना समय व्यतीत करते हैं. अभिभावक के प्रेशर में बेमन से पढ़ने बैठते हैं, जो उन्हें अपेक्षित लाभ नहीं देता. बस परीक्षा सिर पर आ जाने पर वे पढ़ना शुरू करते हैं. स्वाभाविक रूप से उस समय सिलेबस में शामिल सभी विषयों को अच्छी तरह पढ़ना संभव नहीं होता है. ऐसे में, किसी दूसरे के बने बनाये नोट्स या अन्य शॉर्टकट रास्ते से वे परीक्षा में अच्छा अंक हासिल करना चाहते हैं. ट्यूशन और कोचिंग पर ऐसे विद्यार्थियों की निर्भरता सबसे ज्यादा होती है.
  
सोचनेवाली बात है कि शॉर्ट-कट के रास्ते एकाध बार ऐसा हो सकता है कि आप परीक्षा में अच्छे नंबर ले आएं, पर ऐसा हर बार कतई संभव नहीं है. यह भी सौ फीसदी सच है कि शार्टकट के रास्ते पर चलकर किसी भी विद्यार्थी को विषय की अच्छी समझ नहीं हो पाती है. लिहाजा, वे अखिल भारतीय स्तर की उन्नत प्रतियोगिता परीक्षाओं में कई प्रयासों के बाद भी सफल नहीं हो पाते हैं. और तो और जीवन की शायद ही किसी बड़ी परीक्षा में सफलता उनके हिस्से आ पाती है. ऐसा भी देखने में आता है कि अंतिम समय में शार्टकट के सहारे मंजिल तक पहुंचने के चक्कर में कई विद्यार्थी अनावश्यक जोखिम उठाते हैं; जाने-अनजाने कुछ गलत कर बैठते हैं. धीरे-धीरे ऐसा करने की उनकी आदत हो जाती है. और सब जानते हैं कि आदत बुरी बला. कहना न होगा, इस प्रवृति के विद्यार्थी न केवल अनेक मौकों पर दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं, बल्कि कई बार आपराधिक गतिविधियों और जुर्म में भी शामिल पाये जाते हैं.

आखिर कोई भी विद्यार्थी ऐसा क्यों करता है? विशेषज्ञ बताते हैं कि जिन विद्यार्थियों को आलस्य, आराम और मौज-मस्ती की आदत लग जाती है, वे सामान्यतः मेहनत से भागते हैं और मुश्किलों का सामना करने से घबराते हैं. अभिभावक के सामने झूठ और बहानेबाजी के सहारे वे बच निकलते हैं. और फिर जब कुछ चीजें, चाहे छोटी ही क्यों न हो, शार्टकट के रास्ते से पाने में वे सफल हो जाते हैं, तो बस शॉर्टकट ही उनका एक मात्र रास्ता बन जाता है. लाजिमी है कि तब तक जीवन की सच्चाई को स्वीकारने और सही रास्ते से मंजिल तक की यात्रा पूरी करने के मामले में  ऐसे विद्यार्थियों का आत्मविश्वास पहले की तुलना में काफी नीचे चला जाता है. सोचिए जरा, शॉर्टकट से आजतक किसी को बड़ी सफलता मिली है क्या? तो फिर पढ़ने-लिखने के बजाय रोज मौज-मस्ती, आलस्य या अन्य किसी कारण से समय का दुरुपयोग करने के बाद परीक्षा से पहले परेशान होने और शार्टकट का रास्ता अपनाने में कौन-सी बुद्धिमानी है? 

सार-संक्षेप यह कि शॉर्टकट से हम बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर सकते. इसके विपरीत, लगातार निष्ठापूर्वक किया गया कोई भी काम देर-सबेर हमें इच्छित मंजिल तक  पहुंचाने की गारंटी देता है. ऐसा माननेवाले सभी छात्र-छात्राओं  के लिए सही तरीका और परिश्रम के बलबूते  सफलता के मंजिल पर पहुंचना ही असल उपलब्धि है. वे "लिफ्ट करा दे या एलीवेटर से शिखर तक पहुंचा दे" जैसी बातों में यकीन नहीं करते. बड़े-बुजुर्ग सही कहते हैं कि अच्छा विद्यार्थी हमेशा कठिन पर सही मार्ग चुनता है क्यों कि इस तरह सफल होने पर न केवल वह खुद को उस उपलब्धि के लायक मानता है, बल्कि इससे उसका आत्मविश्वास भी कई गुना बढ़ जाता है. जाहिर है कि उनके प्रेरणा स्रोत विख्यात धाविका हिमा दास, गेंदबाज जसप्रीत बूमराह  या पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जैसे लोग ही होते हैं.        (hellomilansinha@gmail.com)


                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं  
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