- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर... ....
हर शिक्षण संस्थान में कई विद्यार्थी ऐसे जरुर होते हैं जो सामान्यतः हर काम लीक से हटकर या थोड़ा अलग तरीके से करने की चेष्टा करते हैं. उन्हें सीमित दायरे में रह कर काम करने में रूचि नहीं होती. ऐसे विद्यार्थी नामुमकिन से 'ना' हटाकर न केवल अपनी कार्ययोजना बनाते हैं, बल्कि उस पर अमल भी करते हैं. आम विद्यार्थियों की तुलना में बेशक उन्हें चुनौतियों और परेशानियों का ज्यादा सामना करना पड़ता है, लेकिन अनुभव, आत्मसंतोष, आत्मविश्वास, कामयाबी आदि के पैमाने पर देखें तो उन्हें दूसरों की अपेक्षा ज्यादा हासिल भी होता है.
आर्यभट्ट, न्यूटन, आइंस्टीन, थॉमस एडिसन, ग्राहम बेल, जगदीश चन्द्र बोस, सी.वी. रमण, विक्रम साराभाई, होमी भाभा, अब्दुल कलाम से लेकर वर्तमान में इसरो के प्रमुख के. सिवम तक जितने भी बड़े आविष्कारक एवं वैज्ञानिक हुए हैं, उनके नाम और काम से ज्यादातर विद्यार्थी परिचित हैं. इन सबमें एक चीज कॉमन है. इन सबों ने अपने-अपने दायरे से बाहर निकल कर कुछ नया और नायाब करने की कोशिश की और अत्यंत सफल भी हुए. इसी तरह राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में काम करनेवाले देश-विदेश के अनेक विभूतियों ने भी अनेक अभिनव तथा असाधारण काम किए.
हम जो काम करते रहते हैं, स्वाभाविक है कि वह काम हमें आसान लगता है. उसी को करने में हम कम्फ़र्टेबल फील करते हैं, अलबत्ता शुरू में हम वह काम करने से घबराते हैं और उससे बचना भी चाहते हैं. उसी तरह हम जहां रहते हैं, वह जगह हमें अच्छी लगती है, लेकिन वहां आने से पहले अनजाना-अनदेखा से जुड़े अटपटे-असामान्य भाव मन में रहते हैं. हम जो खेल खेलते हैं, वही खेल खेलना अच्छा लगता है, उसके अलावे दूसरे खेल को आजमाने की शायद ही कोशिश करते हैं. संकोच, शंका, आशंका, आदत आदि के डोर से बंधे रहते हैं. अधिकांश विद्यार्थी ऐसा ही करते पाए जाते हैं. वे सभी अपने बनाए दायरे में रहना पसंद करते हैं. न्यूटन का जड़ता का सिद्धांत यहां भी लागू होता है. बचे हुए विद्यार्थी ऐसा नहीं सोचते और न ही करते हैं. वे छोटे बच्चों की तरह अपने दायरे से बाहर जाने की कोशिश करते हैं. कुछ नया जानने एवं करने के प्रति उत्साहित रहते हैं. नया विषय, नया माहौल, नए शिक्षक, नए सहपाठी, नया शहर - सब कुछ नया-नया जैसे उन्हें अच्छा लगता है. ऐसे विद्यार्थी खूब मेहनत करते हैं और अनिश्चितता, परेशानी, नाकामयाबी आदि से घबराते और डरते नहीं हैं. उन्हें अपने काम में बोरियत महसूस नहीं होती. वे बदलाव को स्वीकार करते हुए जीवन यात्रा का आनंद उठाते हैं. इस प्रक्रिया में बोनस के तौर पर उन्हें अनेक खट्टे-मीठे अनुभव प्राप्त होते हैं, जो उन्हें आंतरिक रूप से पहले से ज्यादा मजबूत बनाते हैं.
जरा सोचिए, अगर किसी स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी को केवल हिन्दी या गणित या भूगोल या केमिस्ट्री या कोई एक ही विषय पढ़ने में अच्छा लगता हो और वह सिर्फ वही पढ़े तो क्या वार्षिक परीक्षा में सभी विषयों में अच्छा अंक लाकर अच्छे ग्रेड से उतीर्ण हो पायेगा? यकीनन, परीक्षा में शानदार अंक व ग्रेड हासिल करने के लिए हर विद्यार्थी को अपने पसंद के विषय के अलावे कोर्स के अन्य विषयों को भी पढ़ना पड़ेगा और उन विषयों में भी अच्छा अंक अर्जित करना पड़ेगा. अपने ज्ञान को विस्तार देने एवं उसका बहुआयामी उपयोग करने के लिए यह जरुरी भी है. खाने, पहनने, खेलने आदि के मामले में भी अपने आराम की दुनिया से बाहर निकलना बेहतर माना गया है. ब्रायन ट्रेसी, रोबिन शर्मा सहित कई विचारकों -विशषज्ञों ने इस संबंध में बहुत कुछ लिखा है; अनेक फायदे बताए हैं. जीते-जागते मिसाल के रूप में अपने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु व योग विशेषज्ञ सदगुरु जग्गी वासुदेव का जिक्र प्रासंगिक होगा.
जाहिरा तौर पर विद्यार्थियों को अगर एक बेहतर जीवन जीना है तो नए रास्ते और नए तरीके भी तलाशने होंगे. अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए क्रिएटिव और इनोवेटिव सोच के साथ चलना पड़ेगा. दिल से अगर-मगर, किन्तु-परन्तु के भाव को निकाल कर "मैं कर सकता हूँ और मैं करूँगा" के मन्त्र को आत्मसात करते हुए सजगता के साथ नए पथ पर मजबूत क़दमों से आगे बढ़ना होगा. शुरू करके देखें. दो-चार बार ऐसा करने से आपको खुद बहुत कुछ पता चलेगा. अनुभव से सीखेंगे. शायद उसके हिसाब से कुछ कोर्स करेक्शन भी करेंगे. खुद पर विश्वास बढ़ता जाएगा. सच मानिए, आगे आपको जीवन का सफ़र सरस, सुगम और सुखद लगने लगेगा और आप सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जायेंगे.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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