Friday, July 20, 2018

आज की बात : बैंक, स्थापना दिवस और कस्टमर

                                                                                                    - मिलन सिन्हा 
जन्म दिन के तरह ही स्थापना दिवस मनाने का प्रचलन हमारे देश में भी रहा है. बाजारवाद के मौजूदा दौर में यह मार्केटिंग और विज्ञापन का एक बड़ा जरिया भी हो गया है. ऐसे ही एक स्थापना दिवस के अवसर पर आज एक बड़े बैंक के स्थानीय शाखा में आयोजित समारोह में शामिल होने का मौका मिला. बैंकों में इस बात की भी होड़ लगी रहती है कि कौन कितना  हमेशा अपने कस्टमर का ख्याल रखने का विज्ञापन दे सके और गाहे-बगाहे उसका दावा भी करते रहें. बहरहाल, इस शाखा के प्रबंधक और स्टाफ ने शाखा में अनेक नए-पुराने ग्राहकों  को इस अवसर का गवाह बनाया था. शाखा परिसर को अन्दर-बाहर से सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था. कार्यक्रम का औपचारिक शुभारम्भ बैंक के किसी उच्च अधिकारी के कर-कमलों से सुबह 10.30 बजे होना था, पर कतिपय कारणों से विलम्ब होता रहा. शाखा प्रबंधक के लिए ग्राहकों को समझाना और उन्हें रोके रखना कठिन हो रहा था. लेकिन वे यथासाध्य पूरी शालीनता के साथ ऐसा करने में जुटे थे. खैर, उच्चाधिकारी महोदय 12 बजे पहुंचे  और जल्दी-जल्दी सब कुछ निबटा कर आधे घंटे में विदा हो गए. शायद उन्हें किसी और कार्यक्रम में जाने की जल्दी थी. इस बीच उन्होंने न तो उपस्थित ग्राहकों, जो करीब दो घंटे से उनके आने का इन्तजार कर रहे थे, से अपने लेट आने के लिए  कोई क्षमा याचना की और न ही बैंक के विकास में ग्राहकों के अहम योगदान की चर्चा -प्रशंसा ही की.  बेशक उन्होंने फोटो सेशन में अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज जरुर करवाई. 

शाखा के प्रबंधक के अनुरोध के मुताबिक़ ज्यादातर ग्राहक सुबह 10.15 बजे  तक शाखा में आ चुके थे. आमंत्रित लोग भी शाखा में पहुंच चुके थे. पर जैसा कि बताया गया निर्धारित कार्यक्रम 12 बजे के बाद ही शुरू हुआ. कहते हैं न कि हम दूसरों के समय का कोई मोल नहीं समझते और "चलता है" संस्कृति में विश्वास करते हैं.  खैर, सकारात्मक रूप से सोचें तो शायद अच्छा ही हुआ. इस बीच मुझे कुछ लोगों से बातचीत का अवसर जो मिल गया.

गुरुजन सही कहते हैं कि एक स्थान पर कुछ लोग बैठे हों और बातचीत का सिलसिला शुरू न हो, ऐसा नहीं हो सकता है. सो, बातचीत मौसम को ले कर शुरू हुआ. आज सुबह से छिटपुट बारिश हो रही थी. ऐसे पिछले दो-तीन दिनों से अच्छी बारिश हो रही थी रांची और आसपास के इलाकों में. हर स्थानीय अखबार में बारिश के कारण रांची के कई सड़कों पर जाम की स्थिति की खबर के साथ-साथ कई इलाकों के गली-मोहल्ले में जल-जमाव की तस्वीरें भी थी. साथ बैठे प्रसाद जी ने कहा कि रांची का नगर निगम और प्रदेश की सरकार को बारिश के पानी को संग्रहित करने पर ध्यान देना चाहिए जिससे कई सड़कों-गली-मोहल्ले में जल जमाव को रोका जा सकता है. इसका एक बड़ा फायदा यह होगा कि मच्छर के कारण फैलेनेवाले रोगों की आशंका काफी कम होगी. वर्षा के जल को संग्रहित करने से अंडरग्राउंड वाटर लेवल में सुधार होगा और तालाबों-जलाशयों में संग्रहित जल का उपयोग कई प्रकार से करना भी संभव होगा. बताते चलें कि हर साल फरवरी-मार्च से ही रांची शहर में पानी की किल्लत शुरू हो जाती है जो मानसून के आने के कुछ दिनों बाद तक गंभीर बनी रहती है.

इसी चर्चा में एक अन्य ग्राहक श्री घोष ने बारिश में स्वास्थ्य समस्या के बढ़ने की बात करके यह पूछ लिया कि रांची में ऐसे कितने और कौन से डॉक्टर हैं जो इस मौसम के सामान्य रोगों में दो-तीन दवाइयों से रोगी का उपचार करते हैं. अब तो एक साथ कई लोग इस बातचीत में शामिल हो गए और अपना-अपना अनुभव बताने लगे. एक सज्जन जो दवाई के व्यवसाय से बहुत वर्षों से जुड़े रहे थे, ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब बहुत कम डॉक्टर ऐसे हैं जो कम दवाओं और पैथोलॉजिकल टेस्ट के रोग का उपचार करते हैं. इसका मुख्य कारण ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की लालसा भी है. एक और व्यक्ति ने दवा कंपनी और अधिकांश डॉक्टरों के बीच उत्तरोत्तर बढ़ते मधुर संबंध और साथ ही मरीजों पर बढ़ते आर्थिक बोझ पर चर्चा शुरू की तो अन्य कई ग्राहक भी शामिल हो गए. यह चर्चा परवान चढ़ती उससे पहले ही विराम लग गया क्यों कि मुख्य अतिथि कार्यक्रम का उद्घाटन हेतु आ चुके थे. खैर, स्थापना दिवस के बहाने कई और विषयों पर मेरी स्थापित मान्यताओं को नया आयाम तो मिल ही गया. शाखा प्रबंधन और उसके ग्राहकों को धन्यवाद, बधाई एवं शुभकामनाएं.  

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
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