-मिलन सिन्हा
हमारे देश में यह समय ‘रिजल्ट टाइम’ होता है. स्कूल की वार्षिक परीक्षा हो या सीबीएसई, आईसीएसई, इंजीनियरिंग, मेडिकल या यूपीएससी की परीक्षाएं, सभी के रिजल्ट आगे-पीछे आते रहते हैं. और इसी के साथ शुरू हो जाता है रिजल्ट के विश्लेषण का एक चाहा-अनचाहा दौर, खासकर असफल परीक्षार्थियों के स्तर पर और साथ ही उनके अभिभावकों, शिक्षकों एवं दोस्तों के स्तर पर भी. ऐसे सभी विश्लेषणों में एक बात पर सभी एक मत होते है कि कहीं–न–कहीं योजनागत कमी रही है. इसे बेंजामिन फ्रैंकलिन इन शब्दों में कहते हैं, ‘अगर आप योजना बनाने में असफल रहते हैं तो आप वाकई असफल होने की योजना बना रहे हैं.’
हम यह सब जानते और मानते हैं कि जहां भी संसाधनों की किल्लत रहती है, चाहे वह समय, उर्जा, घन राशि, मशीन, श्रमिक आदि ही क्यों न हो, वहां प्रोजेक्ट प्रबंधन में योजना की भूमिका निर्विवाद है. दूसरे शब्दों में कहें तो जब भी, जहाँ भी सीमित संसाधनों से एक नियत समयावधि में किसी भी कार्य को संपन्न करने की चुनौती होती है, तब-तब योजना की अनिवार्यता और स्पष्ट होती है. बिलकुल सही. लेस्टर राबर्ट बिटल तो कहते हैं, ‘अच्छी योजना अच्छे निर्णय का द्योतक है, जिससे सपनों को साकार करना आसान हो जाता है.’
यह बात मात्र युवाओं या नौकरी पेशा लोगों पर लागू नहीं होता है, बल्कि उन सबके लिए है जो सहज और सुचारू ढंग से अपने दैनंदिन जीवन में अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं. यह तब और अहम हो जाता है जब पेशेवर क्षेत्र में, जहाँ आजकल लोगों को, एक साथ एकाधिक कार्य करने की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. कहने की जरुरत नहीं कि हमारे घरेलू कामकाज में भी योजना की अहम भूमिका से कोई इन्कार नहीं कर सकता है. आज आप कहां हैं, कल आप कहाँ पहुंचना चाहता हैं और इसके लिए आपको क्या–क्या करना जरुरी है – इन सवालों का जवाब योजना के अहमियत को सिद्ध करते हैं. प्रसिद्ध फुटबॉल कोच पॉल ब्रायंट कहते हैं, ‘योजना बनायें, उसे ईमानदारी से अमल में लायें और फिर देखें कि आप कितने सफल हो सकते हैं. अधिकतर लोगों के पास कोई योजना नहीं होती. इसी कारण उन्हें हराना आसान होता है.’
सच ही तो है कि योजना अपने आप में एक अनोखा एवं विचार समृद्ध प्रक्रिया है, जिसमें अनेक प्रबंधकीय तत्वों को समझदारी और खूबसूरती से शामिल किया जाता है. दरअसल, योजना के जरिए बताये व सुझाये गए मार्ग से होकर ही हम सभी प्रोजेक्ट को उसके लिए नियत मानदंडों के अनुरूप सफलतापूर्वक गंतव्य तक पहुंचाते हैं. दिलचस्प बात यह भी है कि योजना प्रक्रिया में किसी भी संभावित-असंभावित व्यवधान के कारण कार्य की गति में पड़ने वाले दुष्प्रभाव को भी नजरअंदाज नहीं किया जाता है. संक्षेप में कहें तो प्लानिंग एक डायनामिक प्रोसेस है जिसका हमारे परफॉरमेंस से गहरा रिश्ता है.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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