Monday, May 2, 2016

लघु कथा : खुशहाली

                                                                                               - मिलन सिन्हा 
मेरा यह मित्र अपने कारोबार में माहिर था. सुबह से रात तक  वह अपने काम में लगा रहता. बहुत धन भी अर्जित किया था उसने. फिर भी और धन अर्जित करने की उसकी इच्छा कम नहीं हुई थी. इस धुन में उसे न तो अपने परिवार का ख्याल रहता और न ही अपने शरीर –स्वास्थ्य का , खान –पान का.

एक दिन दोपहर के वक्त मै उसके दफ्तर में बैठा था. वह मुझसे बीच –बीच में एक –आध बातें कर पाता. बाकी वक्त वह फोन पर कारोबार की बातें करता. कभी –कभी तो वह एक साथ दो फोन  थामे रहता.

इस बीच नौकर घर से उसका खाना ले आया और उसके पास ही छोटे,  पर खूबसूरत से टेबुल पर रख गया . कुछ क्षण बाद उसकी पत्नी का फोन भी आया. गरम-गरम खाना खा लेने का अनुरोध किया, लेकिन वह फिर टेलीफोन पर वार्तालाप में लग गया. मै बैठा यह सब देख रहा था. बातचीत के लिए मैं जब भी कुछ कहने को होता, वह मुझे इशारे से थोड़ी देर और रुकने को कहता और फिर वही फोन.....

काफी वक्त गुजर गया. मैं बैठा रहा, खाना पड़ा रहा . फोन पर उसकी बातचीत जारी थी. अब मुझसे रहा न गया और मैंने उसके हाथ से फोन का चोगा करीब –करीब छीनते हुए पूछा, ‘भाई आखिर यह आपाधापी, इतनी व्यस्तता किस चीज के लिए ?’

‘रोटी कमाने के लिए, रोटी कमाने के लिए. और क्या ?’ – उसने थोड़ा तल्खी से जवाब दिया .

‘तो फिर यह रोटी खा’ - मैंने उसके खाने के तरफ इशारा करते हुए कहा.

उसने तुरन्त खाने का डब्बा खोला. मुझसे भी साथ देने का आग्रह किया .

सुना है , अब वह और उसका परिवार दोनों खुश हैं, सुखी हैं.

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

# लोकप्रिय  अखबार , 'हिन्दुस्तान' में 26 जून , 1997   को प्रकाशित 

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