- मिलन सिन्हा
सिर्फ अच्छे विचार और अच्छे बयान से सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक बदलाव नामुमकिन है। इसके लिए विचार, बयान और व्यवहार में एकरूपता अनिवार्य है । देखा गया है कि अच्छे विचार और व्यवहार का समन्वय हो तो अनेक समस्याएं एक साथ ख़त्म हो जाती हैं। दैनंदिन जीवन में ऐसा संतुलन साधने वाला पारदर्शी व्यक्तित्व का मालिक होता है। ऐसे लोग भ्रष्टाचार के इस युग में भी सामान्य शिष्टाचार का बखूबी पालन करते हैं, क्यों कि वे जानते एवं मानते हैं कि मानवीय शिष्टाचार के इस मूलभूत नैसर्गिक गुण से वंचित रह कर कोई खुद को मनुष्य कैसे कह सकता है ? बड़ों को सम्मान, छोटों को स्नेह और हर जाने -अनजाने लोगों के प्रति सदभाव उनके चरित्र का अभिन्न हिस्सा होता है। तभी तो घर से लेकर स्कूल, कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी तक हर जगह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से शिष्टता के बहुआयामी लाभ का पाठ पढ़ाया जाता रहा है। और अब तो एकाधिक प्रबन्धन संस्थानों में शिष्टाचार को पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया गया है जहां पेशेगत उत्कृष्टता अर्जित करने के लिये इसकी अहमियत को रेखांकित किया जाता है। इतना ही नहीं, दो देशों के बीच आपसी संबंधों को मजबूत बनाये रखने के लिए इस बात का अत्यधिक ख्याल रक्खा जाता है। शिष्टाचार के छोटे -छोटे बिन्दुओं की बारीकी से जांच की जाती है और उनका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित किया जाता है। हाल के महीनों में चीनी या अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के दौरान हम सबने देश के प्रधान मंत्री सहित दौरे से जुड़े लोगों को इसे बखूबी निबाहते देखा है। कहना न होगा कि एकल परिवार के बढ़ते चलन एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण के मौजूदा दौर में शिष्टाचार की इस सार्वभौमिक परम्परा को न केवल अक्षुण्ण बनाये रखने बल्कि उसे निरन्तर सुदृढ़ करते रहने की आवश्यकता है, जिससे पारिवारिक व सामाजिक समरसता के साथ -साथ राजनीतिक मर्यादा तथा गरिमा को कायम रक्खा जा सके।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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