Saturday, October 13, 2012

आज की कविता : आज का मानव

                                                                                - मिलन सिन्हा 
manab









आज का मानव 
आज 
हरेक के जेब में मानव 
हरेक के पेट में मानव 
पेट से निकला है मानव 
पेट से परेशान  है मानव 
अन्तरिक्ष में क्रीड़ा कर रहा है मानव 
सड़क पर लेटा है मानव 
जोड़ - घटाव में व्यस्त है मानव 
वैरागी बन रहा है मानव 
मशीन बन रहा है मानव 
समुद्र की लहरें गिन रहा है मानव 
महामानव बनाने में जुटा है मानव 
न्यूट्रान बम बना रहा है मानव 
विश्व शांति की बात कर रहा है मानव 
अपने ही घर में रोज  लड़ रहा है मानव 
अच्छी-अच्छी बातें कर रहा है मानव 
बुरे-बुरे काम कर रहा है मानव  
सचमुच,
मानव के अस्तित्व के लिए आज 
परेशानी का सबब बन रहा है मानव  !

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

                  और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

2 comments:

  1. Bahut sahee likha hai manav ke pareshanion ke vare main.Aaj ka manav bahut samasya main hai,woh sochta rahta hai kya karein aur kya na karain.SG

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    1. आपके मंतव्य के लिए धन्यवाद। असीम शुभकामनाएं।

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