Tuesday, February 2, 2021

घबराने के बजाय जो कर सकते हैं करें

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

फिर एक बार कोरोना महामारी के संक्रमण का खतरा बढ़ने लगा है. यह दुःख और चिंता का विषय है. इसी के मद्देनजर हाल ही में
प्रधानमन्त्री ने पुनः देशवासियों से यह अपील की है कि  संक्रमण से बचे रहने के लिए घोषित सावधानियों का पालन करें; किसी तरह की लापरवाही न  बरतें और लापरवाही बरतने वालों को समझाने का प्रयास भी करें. निश्चित रूप से  विद्यार्थियों सहित सभी लोगों को प्रधानमंत्री की बातों पर पूरा अमल करना चाहिए. सब जानते हैं कि कुछ लोगों की लापरवाही की कीमत बहुत सारे लोगों को चुकानी पड़ती है. कोरोना के मामले में तो यह बात सौ फीसदी  सच है. गौर करनेवाली बात यह भी है कि ऐसी स्थिति में आम आदमी जो मोटे तौर पर घोषित सावधानियों का पालन करता है, घबरा जाते हैं और उनका शारीरिक-मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है. समाज और देश पर भी इसका व्यापक नकारात्मक असर होता है.

 
खैर, संतोष और खुशी की बात है कि बड़ी संख्या में हमारे देश के विद्यार्थी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के इन पक्तियों "विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते ..." को याद  करते हुए एवं कवि- गीतकार अभिलाष के इस गाने "इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना, हम चलें नेक रस्ते पे, हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना..." को गुनगुनाते हुए अपने कर्मपथ पर चलते रहते हैं. सच कहें तो ऐसे सारे विद्यार्थी मूलतः साहसी और बुद्धिमान होते हैं. ये लोग जीवन में कई बार उन परिस्थितियों को जिन्हें बदलना उनके कंट्रोल में नहीं होता है, स्वीकार  कर उसकी सीमाओं में रहते हुए अपने कार्य को कमोबेश नार्मल तरीके से करते रहने का उपाय करते हैं.  उस परिस्थिति विशेष  के कारण हुए परेशानियों का रोना नहीं रोते, बल्कि समाधान ढूंढने में  लग जाते हैं. वे अपने  कार्यकलाप  को अच्छाई और सच्चाई के कवच के अंदर रखते हैं. दरअसल, किसी-न-किसी रूप में वे अमेरिकी विचारक रेनहोल्ह निबुहर द्वारा एक प्रार्थना में व्यक्त इस विचार से सहमति रखकर कार्य करते हैं कि "हे ईश्वर, मुझे उन चीजों को स्वीकार करने की स्थिरता दें जिन्हें मैं बदल नहीं सकता, उन चीजों को बदलने का साहस दें जिन्हें मैं बदल सकता हूँ और दोनों में अंतर करने की बुद्धि दें."


ऐसे सारे विद्यार्थी जानते और मानते हैं कि नॉलेज, स्किल और एटीटूयड यानी ज्ञान, दक्षता और नजरिया में से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है नजरिया. दरअसल किसी भी व्यक्ति का नजरिया ही वह शक्ति होती है जिसके जरिए किसी विचार को आश्चर्यजनक रूप से वास्तविकता में तब्दील करना संभव होता है. कहने का मतलब यह कि नजरिया पॉजिटिव हो तो कठिन-से-कठिन सिचुएशन को भी अपने अनुकूल बनाया जा सकता है. अतः घबराने की तो कोई जरुरत ही नहीं है, परिस्थिति कुछ भी हो. बड़े-बुजुर्ग तो बराबर यही कहते रहे हैं कि  परीक्षा हो या कोई और टेस्टिंग टाइम बस सकारात्मक नजरिया रखते हुए संघर्षशील और प्रयत्नशील बने रहें. जीवन जीना आसान हो जाएगा. सफलता और खुशी दोनों के हकदार भी बनते रहेंगे.
भेड़ चरानेवाले बालक डेविड द्वारा राक्षस रूपी गोलियथ को मारने की कहानी से निश्चय ही  सभी विद्यार्थी परिचित होंगे. 

 
विचारणीय बात है कि घबराने से हम अंदर से कमजोर होने लगते हैं. छोटी सी समस्या भी तब अनावश्यक रूप से बड़ी और कठिन प्रतीत होती है. हमारी सामान्य कार्यक्षमता काफी  दुष्प्रभावित होती है.
कई अच्छे विद्यार्थी तक को इसका नुकसान उठाते आपने भी देखा होगा, जब वे घबराहट में परीक्षा आदि में पेपर अच्छा नहीं लिख पाते हैं और खराब रिजल्ट के भागी बनते हैं. ज्ञानीजन स्पष्ट कहते हैं कि जीवन में प्रगतिपथ पर सतत अग्रसर होने  के लिए यह आवश्यक है कि पहले हम स्थिति-परिस्थिति का शान्ति और बुद्धि से सही आकलन-विश्लेषण करें. घबराएं बिलकुल नहीं. खुद पर विश्वास रखें क्यों कि जीवन में मार्ग आसान हो या दुर्गम, सतत आगे बढ़ते रहने के लिए मजबूत आत्मविश्वास का होना अनिवार्य होता है. ऐसे सोच-विचारवाले विद्यार्थी अनावश्यक मामलों में उलझकर अपना कीमती वक्त और सीमित ऊर्जा नष्ट नहीं करते हैं. जानकार और जागरूक बने रहने के क्रम में उनकी सारी इन्द्रियां सक्रियता से अच्छी बातों को अपने दिमागी हार्ड डिस्क में संजोती रहती हैं, जिससे उचित समय पर उसका पूरा सदुपयोग कर सकें. यही कारण होता है कि उनकी  रचनात्मकता और कल्पनाशीलता भी समय-समय पर अपना रंग दिखाती रहती है. मुझे मालूम है कि आप भी ऐसे ही एक विद्यार्थी है और बने रहेंगे.  

 (hellomilansinha@gmail.com)   


            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
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