- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
छात्र जीवन में कई जाने-अनजाने कारणों से आलस्य बहुत सारे विद्यार्थियों को अपने गिरफ्त में ले लेता है, जब कि महान दार्शनिक सुकरात कहते है कि "आलस्य में जीवन बिताना आत्महत्या के समान है." सुबह जल्दी उठने और नित्यकर्म से निवृत होकर अध्ययन में जुट जाने की बात हो या समय से क्लास में पहुंचने या अपना हर काम सही समय पर करने की बात हो, सक्षम होते हुए भी बस आलस्य के कारण ऐसे विद्यार्थी पीछे रह जाते हैं. इतना ही नहीं, अपनी गलती के कारण हासिल असफलता से सीख लेने के बजाय वे उसे सही ठहराने की मूर्खता भी करते हैं. इसका खामियाजा उन्हें अभी और कदाचित जीवन में आगे भी भुगतना पड़ता है. दिलचस्प बात है कि अलग-अलग समस्याओं और परेशानियों से जूझनेवाले विद्यार्थियों से पर्सनल काउंसलिंग के दौरान जब मेरी उनसे वन-टू-वन बातचीत होती है और उनकी समस्या या परेशानी के कारणों की पड़ताल की जाती है तो अमूमन एक कॉमन कारण आलस्य ही होता है. आलस्य के कारण कितने मेधावी विद्यार्थियों को जीवन के प्राइम टाइम में अपूरणीय क्षति होती है, इसकी कल्पना करना आसान नहीं है. बाद में इसका उन्हें बहुत पश्चाताप होता है. ऐसा नहीं है कि वे संत कबीर के इस दोहे में व्यक्त विचार से अपरिचित हैं कि काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब. आइए, एक बोध कथा के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करते हैं.
एक गुरुकुल में आसपास के इलाकों के विद्यार्थी विद्या ग्रहण करते थे. गुरु जी बहुत ही विद्वान और अनुशासनप्रिय थे. उनकी एक ही इच्छा थी कि गुरुकुल में आए हर विद्यार्थी को एक समर्थ, सजग, सक्रिय, सचरित्र और संवेदनशील इंसान बना सकें. इसके निमित्त वे हरेक विद्यार्थी पर अपनी पैनी नजर रखते थे. विद्यार्थीगण गुरु जी के इस भावना के अनुरूप पढ़ाई-लिखाई सहित अन्य कार्यों में पारंगत हो रहे थे. केवल एक विद्यार्थी इसका अपवाद था. यूँ तो वह भी बालसुलभ प्रवृतियों से सपन्न था, लेकिन था थोड़ा ज्यादा ही आलसी. न जाने क्यों और कैसे उसे इस लोकोक्ति पर गहरा यकीन हो गया था कि अजगर करै न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए, सबके दाता राम. कहने का मतलब यह कि आप अध्ययन-परिश्रम करें या न करें आपको ईश्वर सब कुछ दे देंगे. इसके कारण वह सक्षम होते हुए भी आलस्य में पड़ा रहता. गुरु जी यह सब देखकर थोड़ा परेशान थे, पर निराश नहीं. उन्होंने उस विद्यार्थी को कई तरीके से यह समझाने का प्रयास किया कि आलस्य व्यक्ति की एक बड़ी कमजोरी है, जिससे उसे बहुत नुकसान होता है. फिर भी उस लड़के पर इसका अपेक्षित असर नहीं हुआ. एक दिन गुरु जी ने सभी विद्यार्थियों को एक मैजिकल स्टोन यानी चमत्कारी पत्थर की कहानी सुनाई. इस कहानी को सुनकर जो विद्यार्थी सबसे ज्यादा खुश था वह वही आलसी लड़का था. उसने सोचा कि एकबार मुझे वह पत्थर मिल जाए तो फिर मजा ही मजा है. दूसरे दिन सुबह वह गुरु जी की कुटिया में पहुँच गया और उनसे वह पत्थर हासिल करने का उपाय पूछने लगा. गुरु जी ने बताया कि उपाय बहुत कठिन नहीं है. इसके लिए उसे पूरी निष्ठा व वक्त की पाबंदी से बस एक काम करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि यहां से कुछ दूर एक गांव है, जहां एक किसान रहता है जो मेरा मित्र है. तुम कल बिलकुल सूर्योदय के वक्त वहां के लिए प्रस्थान करो. दोपहर से पहले वहां पहुंचकर मेरे किसान मित्र से मिलो और उनसे मैजिकल स्टोन का रहस्य जानकर सूर्यास्त से पहले मुझे बताओ. तुम्हारा काम हो जाएगा. लड़का बहुत खुश हो गया. मैजिकल स्टोन पाने की कल्पना में वह इस कदर खो गया कि देर रात तक वह जगा रहा. नतीजतन वह सोया तो सूर्योदय के बहुत बाद तब जगा जब गुरु जी ने आकर उसे जगाया. स्पष्ट था कि वह अवसर गंवा चुका था, क्यों कि उसे बिलकुल सूर्योदय के वक्त ही निकलना था. वह दुःख और निराशा से रोने लगा. तब गुरु जी ने उसे शांत किया और अच्छी तरह समझाया कि मैजिकल स्टोन का रहस्य मात्र यह है कि आलस्य त्यागकर सूर्य की तरह रोज हर काम समय से नियमपूर्वक संपन्न करो, पृथ्वी की तरह सफलता तुम्हारी परिक्रमा करती रहेगी.
यही कारण है कि सभी ज्ञानीजन बारबार कहते हैं कि आलसी मनुष्य को दरिद्रता प्राप्त होती है, जब कि सक्रिय व कार्य-कुशल मनुष्य अपनी क्षमता का सदुपयोग कर अभीष्ट फल के उपभोग का हकदार बनता है. स्वामी रामतीर्थ का तो स्पष्ट मत है कि "आलस्य हर व्यक्ति के लिए मृत्यु समान है; इसका त्याग-तिरस्कार सर्व कल्याणकारी है." सो, आलस्य को कहें एक बिग नो.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 13.12.2020 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 13.12.2020 अंक में प्रकाशित
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