- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
जॉब इंटरव्यू हो या एडमिशन के लिए औपचारिक-अनौपचारिक पूछताछ-साक्षात्कार, छात्र-छात्राओं के शिष्टाचार पर भी सेलेक्टर्स की गहरी नजर रहती है. आपने भी सोशल मीडिया पर वह विडियो जरुर देखा होगा जहां एक युवा इंटरव्यू स्थल पर जाते हुए अनायास ही कुछ ऐसे कार्य करता है जिससे उसके शिष्टाचार का परिचय उसके इंटरव्यू बोर्ड को फॉर्मल इंटरव्यू से पहले ही मिल जाता है, क्यों कि उसका मानवीय आचरण सीसीटीवी में कैद हो जाता है. कहने की जरुरत नहीं कि उस युवा का सिलेक्शन आसानी से हो जाता है. अमूमन सभी विद्यार्थी अपने बदतमीज और बदमिजाज सहपाठी या परिजन या अन्य किसी भी व्यक्ति को नापसंद करते हैं. ऐसे अशिष्ट लोगों को जब डांट-फटकार मिलती है तो सबको अच्छा ही लगता है. बचपन से ही माता-पिता, शिक्षक और सभी गुरुजन छात्र-छात्राओं को शिष्टाचार का पाठ पढ़ाते-समझाते रहे हैं, क्यों कि यह विद्यार्थियों के संस्कार को परिलक्षित करता है. नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक अल्बर्ट कामू तो कहते हैं कि जिस व्यक्ति में संस्कार नहीं हैं, वह एक जंगली जानवर की तरह है.
कोरोना काल के शुरूआती दौर में दूरदर्शन के नेशनल चैनेल और बाद में अन्य टीवी चैनेलों पर रामानंद सागर की "रामायण" और बी.आर. चोपड़ा की "महाभारत" मेगा सीरियल का करीब तीन दशकों बाद दुबारा प्रसारण हुआ. इन दोनों धारावाहिकों को सभी उम्र के लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में देखा कि दूरदर्शन ने इस दौरान टीआरपी के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले, जब कि इस लम्बे अंतराल में देश में काफी कुछ बदल गया; एक नई पीढ़ी ने समाज में जगह बना ली जिसकी पसंद-नापसंद स्वाभाविक रूप से पिछली पीढ़ी से भिन्न थी. जानते हैं क्यों? कारण तो कई थे, लेकिन एक बड़ा कारण यह था कि आम भारतीय आज भी शिष्टाचार जैसे मानवीय मूल्यों को जीवन में बहुत अहमियत देता है, जिसके असंख्य प्रसंग रामायण और महाभारत में मिलते हैं. श्रीराम के वनवास प्रस्थान का प्रसंग हो या रावण से युद्ध की बात हो या फिर कुरुक्षेत्र के महासंग्राम की बात, श्रीराम और श्रीकृष्ण का पूरा जीवन शिष्टाचार की कथा कहता है. सुख हो या दुःख, परिस्थिति अनुकूल हो या प्रतिकूल, हर हाल में उन्होंने शिष्टाचार का सदैव साथ निभाया.
दरअसल, शिष्टाचार मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा है. घर-बाहर हर स्थान पर दूसरों के प्रति अच्छा और मानवोचित व्यवहार शिष्टाचार कहलाता है. कहने की जरुरत नहीं कि सरलता, निश्छलता, सहजता, विनम्रता आदि सबको मोहित करते हैं. सहजता से वार्तालाप करने, शालीनता और थोड़ा मुस्कुराकर जवाब देनेवालों की प्रशंसा और कद्र अनायास ही होती रहती है. अनेक अवसरों पर यह देखा गया है कि जो व्यक्ति बराबर शिष्टाचार से पेश आते हैं, वे अपेक्षाकृत कम ज्ञानवान या डिग्रीवाले होने के बावजूद अपने क्षेत्र में लोकप्रिय होते हैं और सफल भी. जानने योग्य बात है कि शिष्टाचार को मानने और दैनंदिन जीवन में उसका पालन करनेवाला विद्यार्थी अच्छी सोच और सकारात्मक नजरिया का धनी बनता जाता है. स्वाभाविक रूप से इसका गहरा असर उसके अध्ययन और उन्नति पर साफ दिखता है. इतना ही नहीं वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से बहुत स्वस्थ भी रहता है. कहने का अभिप्राय यह कि शिष्टाचार जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति को सुगम बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है. यही कारण है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित द्विपक्षीय या बहुपक्षीय वार्ताओं में शिष्टाचार से जुड़ी छोटी-से-छोटी बात का सख्ती से अनुपालन किया जाता है.
अंत में एक प्रेरक प्रसंग. सन 1589 से 1610 तक फ्रांस के सम्राट रहे हेनरी IV एक दिन जब अपने सुरक्षा दल के साथ पेरिस की सड़क से गुजर रहे थे, तब सड़क के पास खड़े एक भिखारी ने अपनी टोपी हिलाकर उनका अभिवादन किया. तत्क्षण हेनरी IV ने अपना सिर झुकाकर इसका उत्तर दिया. इससे वह भिखारी तो उल्लसित हुआ ही, सड़क के दोनों ओर खड़े लोगों को भी राजा का यह आचरण बहुत अच्छा लगा. लेकिन उनके साथ चल रहे एक सुरक्षा गार्ड ने अपने राजा से प्रश्न किया, "क्या आपको इस तरह एक भिखारी का अभिवादन करना चाहिए था?' हेनरी IV ने जवाब दिया, "मुझे ऐसा अवश्य करना चाहिए था, क्यों कि अगर मैंने उस व्यक्ति के मेरे प्रति व्यक्त सम्मान का इस तरह अभिवादन न किया होता तो मेरी अंतरात्मा मुझे सदा कोसती रहती कि राजा होते हुए भी तुमने एक भिखारी के जैसा भी शिष्टाचार नहीं दिखाया."
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 29.11.2020 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 29.11.2020 अंक में प्रकाशित
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