- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
"जंगल बुक" जैसी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक ब्रिटिश साहित्यकार रुडयार्ड किपलिंग, जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, का कहना है, "मैं छह ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ. इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ. इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन. सचमुच कितनी महत्वपूर्ण बात कही है इस महान लेखक ने. सभी विद्यार्थी इस बात से सहमत होंगें कि देश-दुनिया में अबतक जितने भी आविष्कार और अन्वेषण हुए हैं, सबके पीछे इन छह शब्दों की अहम भूमिका रही है. इसे एक शब्द में मनुष्य के प्राकृतिक गुण जिज्ञासा के रूप में जाना जाता है. जरा सोचिए, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को प्रतिपादित करनेवाले महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन के बारे में. अगर पेड़ से गिरते हुए सेव को देखकर उनको यह जिज्ञासा न हुई होती कि यह सेव नीचे धरती पर ही क्यों गिरा, तो क्या यह महान आविष्कार हो पाता? अगर महान भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बोस और इटालियन वैज्ञानिक गुल्येल्मो मार्कोनी अपनी जिज्ञासा को पंख न लगाते तो क्या रेडियो टेलीग्राफी का आविष्कार हो पाता और आज उसी सिद्धांत पर आधारित रेडियो, दूरसंचार, टेलीविज़न, मोबाइल आदि की विराट और अदभुत दुनिया का लाभ हम उठा पाते?
दरअसल, जो अनदेखा, अनसुना और अनजाना है उसके प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा मनुष्य मात्र में होती है. प्राचीन काल से ही मनुष्य जाति इसको अपना सबसे प्रिय साथी और औजार बनाकर निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर होती रही है. वास्तव में, जिज्ञासा मनुष्य को हमेशा कुछ नया सोचने और करने को प्रेरित करती रहती है. यह नायाब मानवीय गुण एक ओर जहां निराशा और गम से जूझते लोगों को झकझोरती है और समाधान के नए रास्ते तलाशने को प्रेरित करती है, वहां दूसरी ओर सुख-सुविधा से संपन्न व्यक्ति को जीवन का सही अर्थ जानने को विवश भी कर देती है. इसके बहुत सारे उदाहरण दुनिया में मौजूद हैं. एक बड़े उदाहरण के रूप में महात्मा बुद्ध और उनके अनमोल विचार दुनिया के सामने हैं. जरा सोचिए, अगर कोई विद्यार्थी अपनी जिज्ञासा को विस्तार देते हुए एक बड़ा लक्ष्य रखे कि उसे तो इस ब्रह्माण्ड को समझने की कोशिश करनी है; पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सूरज-चाँद-सितारे, देश-विदेश आदि से जुड़ी हर बड़ी बात को जानने-समझने का प्रयास करते रहना है, तो उसे कितना ज्ञान और अनुभव हासिल होगा.
विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात साफ़ तौर पर उभर कर आती है कि अधिकांश विद्यार्थी औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद एक अच्छी नौकरी की तलाश में रहते हैं, जब कि अपनी शिक्षा, जिज्ञासा और क्षमता के आधार पर अपना व्यवसाय या उद्द्योग शुरू करने हेतु आगे आनेवाले युवाओं की संख्या अभी भी बहुत कम है. इस स्थिति में बदलाव जरुरी है. अच्छी बात है कि नई शिक्षा नीति का एक बड़ा उद्देश्य विद्यार्थियों में जिज्ञासा की प्रवृति को उत्प्रेरित करना है जिससे कि छात्र-छात्राएं छात्र जीवन में और उससे आगे भी अपने सोच-विचार तथा कार्य-कलाप को उन्नत करते रहें.
हर विद्यार्थी में जिज्ञासा का गुण विद्यमान होता है. बस हमेशा यह कोशिश करते रहने की जरुरत होती है कि किसी भी कारण जिज्ञासा की आग ठंडी न हो जाय. इसके लिए विद्यार्थियों को इन अहम बातों पर फोकस करना चाहिए. पहली बात यह कि कभी भी प्रश्न पूछने से संकोच न करें. हां, प्रश्न पूछने का अंदाज शालीन और मर्यादित हो तो बेहतर. यह सच है कि कई बार विद्यार्थी यह सोचकर प्रश्न नहीं पूछते कि साथी-सहपाठी या शिक्षक बाद में उसका मजाक तो नहीं उड़ायेंगे. इस मामले में किसी ने बहुत सही कहा है कि जो विद्यार्थी प्रश्न पूछता है उसका कुछ देर के लिए तो मजाक उड़ाया जा सकता है या थोड़े समय के लिए तो वह मूर्ख प्रतीत हो सकता है, लेकिन जो विद्यार्थी इस डर से प्रश्न ही नहीं पूछते, वे तो जीवन भर मूर्ख बने रहते हैं. दूसरा, अपने प्रश्न का उत्तर ठीक से सुनें और उसे समझने का यत्न करें. पूरी तरह न समझने की स्थिति में या उस विषय में कोई और प्रश्न दिमाग में आने पर उसका भी समाधान प्राप्त करें. तीसरा, जिज्ञासा के दायरे को सीमित न करें. कहने का आशय यह कि कोर्स में आपके जो भी सब्जेक्ट्स हैं उनके केवल कुछ प्रश्नों को सॉल्व करके संतुष्ट न हो जाएं, बल्कि अन्य सभी संभावित प्रश्नों के प्रति जिज्ञासु बनकर समाधान तक पहुंचने की चेष्टा करें. इसके लिए आपको को उस विषय के साथ गहरी दोस्ती निभानी पड़ेगी. निसंदेह, आपको अपनी जिज्ञासा के मैजिकल परिणाम मिलते रहेंगे.
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