- मिलन सिन्हा
देश -विदेश के सर्विस सेक्टर अर्थात सेवा क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों यथा, बैंक, इंश्योरेंस, रेलवे आदि का हमारे दैनंदिन जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आपने भी इनके दफ्तरों में लोगों को लम्बी -लम्बी कतारों में खड़े घंटों इंतजार करते देखा होगा। हमारे देश में तो ये दृश्य आम होते हैं। दफ़्तर खुलने का समय जो भी रहे, अमूमन वास्तविक कार्य घोषित समय के कम-से-कम पंद्रह -बीस मिनट बाद ही प्रारम्भ होता है, वह भी बिना कोई कैफियत दिये या खेद व्यक्त किये, जैसे कि देर से परिचालन शुरू करके उन्होंने कुछ गलत करने के बजाय लाइन में खड़े लोगों पर मेहरबानी की है।
कई बार यह भी देखने में आता है कि लोगबाग लाइन में खड़े अपनी बारी का इंतजार करते हैं, लेकिन उनकी आँखों के सामने संबंधित स्टाफ आपस में गप्पें लड़ाने या किसी व्यक्तिगत काम में मशगूल रहते हैं।
कतारों में चुपचाप खड़े कष्ट झेलने को अभिशप्त ऐसे लोगों को दफ़्तरवाले आम बोलचाल की भाषा में 'कस्टमर' कह कर सम्बोधित करते हैं। अर्थात कष्ट से जो मरे वह कस्टमर। यह नकारात्मक मानसिकता का परिचायक है जो किसी भी व्यवसाय के लिये बहुत नुकसानदेह है। इसके विपरीत अगर 'कस्टमर' के स्थान पर हिन्दी अर्थ 'ग्राहक' कहें और इस शब्द के निहितार्थ पर गौर करके कार्य करने लगें तो सर्विस सेक्टर के सभी कर्मियों के सोच और व्यवहार में गुणात्मक परिवर्तन आ सकता है, साथ में बिज़नेस में उछाल भी। कहने का अभिप्राय, ग्राहक वह जिसे ग्राह्य करने का हक़ है।
देखिये, गांधी जी ने ग्राहक के महत्व को किस खूबसूरती से रेखांकित किया है: "हमारे परिसर में आनेवाला ग्राहक अति महत्वपूर्ण व्यक्ति है। वह हमारे ऊपर आश्रित नहीं है, हम उसपर आश्रित हैं। वह हमारे काम-काज के बीच बाधक नहीं है, वह इसका प्रयोजन है। वह हमारे व्यवसाय में कोई बाहरी व्यक्ति नहीं है, वह उसका एक अंग है। हम उसकी सेवा करके उस पर कोई कृपा नहीं कर रहे हैं, वह हमें ऐसा करने का सुअवसर प्रदान कर हम पर कृपा कर रहा है।"
कई बार यह भी देखने में आता है कि लोगबाग लाइन में खड़े अपनी बारी का इंतजार करते हैं, लेकिन उनकी आँखों के सामने संबंधित स्टाफ आपस में गप्पें लड़ाने या किसी व्यक्तिगत काम में मशगूल रहते हैं।
कतारों में चुपचाप खड़े कष्ट झेलने को अभिशप्त ऐसे लोगों को दफ़्तरवाले आम बोलचाल की भाषा में 'कस्टमर' कह कर सम्बोधित करते हैं। अर्थात कष्ट से जो मरे वह कस्टमर। यह नकारात्मक मानसिकता का परिचायक है जो किसी भी व्यवसाय के लिये बहुत नुकसानदेह है। इसके विपरीत अगर 'कस्टमर' के स्थान पर हिन्दी अर्थ 'ग्राहक' कहें और इस शब्द के निहितार्थ पर गौर करके कार्य करने लगें तो सर्विस सेक्टर के सभी कर्मियों के सोच और व्यवहार में गुणात्मक परिवर्तन आ सकता है, साथ में बिज़नेस में उछाल भी। कहने का अभिप्राय, ग्राहक वह जिसे ग्राह्य करने का हक़ है।
देखिये, गांधी जी ने ग्राहक के महत्व को किस खूबसूरती से रेखांकित किया है: "हमारे परिसर में आनेवाला ग्राहक अति महत्वपूर्ण व्यक्ति है। वह हमारे ऊपर आश्रित नहीं है, हम उसपर आश्रित हैं। वह हमारे काम-काज के बीच बाधक नहीं है, वह इसका प्रयोजन है। वह हमारे व्यवसाय में कोई बाहरी व्यक्ति नहीं है, वह उसका एक अंग है। हम उसकी सेवा करके उस पर कोई कृपा नहीं कर रहे हैं, वह हमें ऐसा करने का सुअवसर प्रदान कर हम पर कृपा कर रहा है।"
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# 'प्रभात खबर' के मेरे संडे कॉलम, 'गुड लाइफ' में प्रकाशित
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