- मिलन सिन्हा
अच्छा होना और अच्छा दिखना तो अच्छी बात है, परन्तु इसके विपरीत सिर्फ दिखावा, आडम्बर आदि से रुतबा बढ़ाने के बढ़ते चलन को क्या कहेंगे । एक नहीं अब तो कई एक मुखौटे लगा कर चलनेवाले लोगों की कमी नहीं है । असली -नकली की पहचान मुश्किल हो रही है । नकली सामान से लेकर नकली चेहरे दिखाकर बाजार में खूब खरीद-बिक्री हो रही है । मार्केटिंग की दुनिया का आम जुमला, 'जो दिखता है, वही बिकता है' का असर बाजारवाद के मौजूदा दौर में सब तरफ दिखाई पड़ रहा है ।
कहने का अभिप्राय यह कि दिखाने की ख्वाइश का जोर और दबदबा हर क्षेत्र में सिर चढ़ कर बोल रहा है । लेकिन इसका दिलचस्प पहलू यह है कि इस दिखने -दिखाने में छुपाने पर बहुत ध्यान दिया जाता है । बल्कि यूँ कहें तो छुपाना ही दिखाने की कला को सफल बनाने की पहली अहम शर्त बनती जा रही है । तमाम तरह के फेयरनेस क्रीम व अन्य सौंदर्य प्रसाधनों से चेहरे आदि को रंगने की कवायद कुछ अलग दिखने -दिखाने की चाहत का एक मजबूत पक्ष है ।
दिखाने में ही क्यों, बोलने में भी यही प्रचलन है - मन में कुछ होता है लेकिन मंच से कुछ अलग ही बोलते हैं । फलतः जब बोलते हैं तो विषयवस्तु पर फोकस नहीं कर पाते । दुःख की बात है कि यह सब करते हुए हम अपनी मौलिकता से दूर जाते रहते हैं और अंततः खुद से कट कर एक अजीब सी शख्सियत के मालिक बन बैठते हैं ।
क्या कभी हमने यह भी सोचा है कि दिखावा करने के चलते हमारे कितने धन, समय और ऊर्जा का अपव्यय होता है । सच पूछिये तो खुद को छुपाने और जो हम नहीं हैं, वह दिखाने की कोशिश हमें झूठ एवं फरेब के रास्ते पर ले जानेवाला साबित होता है, जुर्म की अंधी गली में पहुंचने को उत्प्रेरित करता है ।
क्या गांधी, लिंकन, आइंस्टीन, मदर टेरेसा, मंडेला सरीखे देश -दुनिया के बड़े व सम्माननीय लोग सरल, सादा और मौलिक जीवन जी कर लाखों -करोड़ों लोगों के लिये प्रेरक व अनुकरणीय नहीं बने ? दरअसल, दिखावे से बचना गुड लाइफ की एक अनिवार्य शर्त है ।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
कहने का अभिप्राय यह कि दिखाने की ख्वाइश का जोर और दबदबा हर क्षेत्र में सिर चढ़ कर बोल रहा है । लेकिन इसका दिलचस्प पहलू यह है कि इस दिखने -दिखाने में छुपाने पर बहुत ध्यान दिया जाता है । बल्कि यूँ कहें तो छुपाना ही दिखाने की कला को सफल बनाने की पहली अहम शर्त बनती जा रही है । तमाम तरह के फेयरनेस क्रीम व अन्य सौंदर्य प्रसाधनों से चेहरे आदि को रंगने की कवायद कुछ अलग दिखने -दिखाने की चाहत का एक मजबूत पक्ष है ।
दिखाने में ही क्यों, बोलने में भी यही प्रचलन है - मन में कुछ होता है लेकिन मंच से कुछ अलग ही बोलते हैं । फलतः जब बोलते हैं तो विषयवस्तु पर फोकस नहीं कर पाते । दुःख की बात है कि यह सब करते हुए हम अपनी मौलिकता से दूर जाते रहते हैं और अंततः खुद से कट कर एक अजीब सी शख्सियत के मालिक बन बैठते हैं ।
क्या कभी हमने यह भी सोचा है कि दिखावा करने के चलते हमारे कितने धन, समय और ऊर्जा का अपव्यय होता है । सच पूछिये तो खुद को छुपाने और जो हम नहीं हैं, वह दिखाने की कोशिश हमें झूठ एवं फरेब के रास्ते पर ले जानेवाला साबित होता है, जुर्म की अंधी गली में पहुंचने को उत्प्रेरित करता है ।
क्या गांधी, लिंकन, आइंस्टीन, मदर टेरेसा, मंडेला सरीखे देश -दुनिया के बड़े व सम्माननीय लोग सरल, सादा और मौलिक जीवन जी कर लाखों -करोड़ों लोगों के लिये प्रेरक व अनुकरणीय नहीं बने ? दरअसल, दिखावे से बचना गुड लाइफ की एक अनिवार्य शर्त है ।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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