- मिलन सिन्हा
शिक्षा व संचार क्रांति के इस युग में अब भी योग को लेकर कहीं न कहीं हममें यह भ्रान्ति है कि इसके अभ्यासी को संत या सन्यासी जीवन व्यतीत करना पड़ेगा और वह एक पारिवारिक व्यक्ति का सामान्य जीवन नहीं जी पायेगा । मजे की बात यह है कि सच्चाई इसके उलट है । योग तो एक ऐसी जीवन शैली है जो जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण को व्यापक व समग्र बनाता है; जिसके कारण हम दूसरों की समस्याओं को अधिक आसानी से समझने तथा उसका समाधान ढूंढने लायक बन पाते हैं ।ऐसा करके हम अपने परिवार एवं समाज के लिए भी एक बेहतर इंसान साबित होते हैं ।यही कारण है कि बड़े से बड़ा नेता, अभिनेता, ड़ॉक्टर, अधिकारी, उद्योगपति, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, लेखक-पत्रकार सभी ने योग के महत्व को स्वीकारते हुए अपनी दिनचर्या में आसान -प्राणायाम को निष्ठापूर्वक शामिल किया है । लिहाजा, उनका सुबह का समय योगाभ्यास में बीतता है जिससे वे दिनभर पूरी जीवंतता के साथ अपनी जिम्मेदारियों का अबाध निर्वहन कर पाते हैं।फिर हममें से ज्यादातर लोग ऐसा क्यों नहीं करते हैं ?
दरअसल, न्यूटन का जड़ता का सिद्धान्त यहाँ भी लागू होता है । जिस कार्य को हम करते रहते हैं, वह हमें आसान लगता है । इसके विपरीत किसी नए काम को करने से पहले तमाम तरह की भ्रांतियां तथा शंकायें हमारे सामने अवरोध बन कर खड़ी हो जाती हैं । ऐसा कमोवेश सबके साथ होता है । लेकिन खुले दिमाग से सोचने वाले व्यक्ति अच्छे -बुरे का आकलन करते हुए एक नए जोश व संकल्प के साथ जड़ता को तोड़ कर सही दिशा में कदम बढ़ाते हैं । जीवन में यही तो योग है, और क्या ? तो फिर क्यों न हम सभी- बच्चे, युवा, वयस्क तथा बुजुर्ग, योग को अपनी रूटीन का हिस्सा बनाकर जीवन को स्वस्थ, सरस और सानंद बनाने का सार्थक प्रयास करें ।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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