कृत्रिमता हमारे जीवन के हर पहलू को अपने आगोश में लेता जा रहा है। हम अपने समय -काल निरपेक्ष परम्पराओं को भी छोड़ते जा रहे हैं। जिंदगी तेज रफ़्तार हो गयी है। कारण - अकारण हम किसी न किसी रूप में इस कृत्रिमता के प्रवाह में बहते जा रहे हैं, बिना यह सोचे कि आखिर इसकी परिणीति क्या होगी। भारतीय आहार पद्धति की बात करें तो हम कह सकते हैं कि यह कमोवेश स्थान विशेष की जलवायु, भौगोलिक -सामाजिक स्थिति आदि पर आधारित रही है। विभिन्न मौसम में अलग -अलग तरह के अन्न,फल व सब्जी की बाजार में उपलब्धता इस बात को रेखांकित करती है कि उस मौसम के अनुकूल उनका सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना फायदेमंद है। लेकिन, यह सब जानते हुए भी हमारी कृत्रिम जीवन जीने की आदत या मजबूरी हमें प्राकृतिक व मौसमी चीजों के सेवन से दूर करता है और हम प्रोसेस्ड, जंक व फ़ास्ट फ़ूड का सेवन करते हुए खुद को अस्वस्थ कर लेते हैं।
देर रात तक कंप्यूटर पर काम करनेवाले लोग, खासकर हमारे किशोर व युवा को यह ठीक से समझने -समझाने की जरुरत है कि इससे उनके स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर होता है। देर से सोनेवाले ऐसे तमाम लोग चाहकर भी सुबह नहीं उठ सकते हैं और जब भी उठते हैं, तो इतनी हड़बड़ी रहती है कि सुबह का नाश्ता तक ठीक से नहीं कर पाते। बस कुछ भी ऐसा-वैसा निगलते(खाते नहीं) हुए निकल जाते हैं, जब कि सौभाग्य से देश के हर भाग में सस्ता व रेडीमेड/इजी टू मेक खाने की चीजें सुलभ हैं।बिहार की ही बात करें तो यहाँ सत्तू, खिचड़ी, चूड़ा-दही, लिट्टी-चोखा जैसी चीजें आम व ख़ास सबके बीच लोकप्रिय हैं जो पॉकेट व सेहत दोनों के लिहाज से सौ फीसदी उपयुक्त है। समय की कमी के बावजूद हम इन सेहतमंद चीजों का सेवन करके कृत्रिमता के दुष्प्रभावों से बच सकते हैं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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