- मिलन सिन्हा
मैं क्या करूँ ?
मैं किससे कहूँ ?
मैं सबकी सुनता हूँ
मेरी कोई नहीं सुनता
मैं सबको देखता हूँ
मुझे कोई नहीं देखता
मैं सबका करता हूँ
मेरा कोई नहीं करता
मैं अपनों के लिए
एक एक कौड़ी जोड़ता हूँ
पर, मेरे अपने घर में ही
मेरा मोल एक कौड़ी का भी नहीं
दुनिया मुझे बेवक़ूफ़ कहती है
जमाने के साथ चलने को कहती है
मेरी समझ में यह नहीं आता है
न ही मुझे कोई समझ पाता है
मैं भूखा हूँ, प्यासा हूँ
स्नेह, प्यार, श्रद्धा, आदर का।
मैं अभागा हूँ ?
एक कमजोर धागा हूँ ?
मैं एक बाप हूँ
कहीं फिट नहीं बैठता
शायद बेनाप हूँ
मैं क्या करूँ ?
मैं किससे कहूँ ?
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# 'अक्षरपर्व' के जनवरी,2008 अंक में प्रकाशित
मैं क्या करूँ ?
मैं किससे कहूँ ?
मैं सबकी सुनता हूँ
मेरी कोई नहीं सुनता
मैं सबको देखता हूँ
मुझे कोई नहीं देखता
मैं सबका करता हूँ
मेरा कोई नहीं करता
मैं अपनों के लिए
एक एक कौड़ी जोड़ता हूँ
पर, मेरे अपने घर में ही
मेरा मोल एक कौड़ी का भी नहीं
दुनिया मुझे बेवक़ूफ़ कहती है
जमाने के साथ चलने को कहती है
मेरी समझ में यह नहीं आता है
न ही मुझे कोई समझ पाता है
मैं भूखा हूँ, प्यासा हूँ
स्नेह, प्यार, श्रद्धा, आदर का।
मैं अभागा हूँ ?
एक कमजोर धागा हूँ ?
मैं एक बाप हूँ
कहीं फिट नहीं बैठता
शायद बेनाप हूँ
मैं क्या करूँ ?
मैं किससे कहूँ ?
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# 'अक्षरपर्व' के जनवरी,2008 अंक में प्रकाशित
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