Wednesday, September 4, 2013

आज की कविता : अच्छा लगता है

                                                                                         - मिलन सिन्हा 
alone-man















कभी-कभी खुद पर हंसना भी  अच्छा  लगता है
कभी-कभी दूसरों पर रोना भी  अच्छा  लगता है।

हर चीज आसानी से मिल जाये सो भी ठीक नहीं
कभी-कभी कुछ खोजना भी   अच्छा  लगता है।

भीड़  से  घिरा  रहता  हूँ  आजकल  हर  घड़ी
कभी-कभी तन्हा रहना भी  अच्छा  लगता है।

हमेशा आगे देखने की नसीहत देता है  यहाँ हर कोई
कभी-कभी पीछे मुड़कर देखना भी अच्छा  लगता है।

एक खुली किताब है मेरी यह  टेढ़ी-मेढ़ी  जिंदगी
कभी-कभी  इसे दुबारा पढ़ना भी अच्छा लगता है।

जिंदगी  की   सच्चाइयां   तो  निहायत  कड़वी है
कभी-कभी सपने में जीना भी अच्छा  लगता है।

‘मिलन’  तो  बराबर  ही  नियति  रही है मेरी
कभी-कभी  बिछुड़न  भी   अच्छा  लगता है।

                     और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :03.09.2013

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