- मिलन सिन्हा
![alone-man](http://www.pravakta.com/wp-content/uploads/2012/08/alone-man.jpg)
कभी-कभी खुद पर हंसना भी अच्छा लगता है
कभी-कभी दूसरों पर रोना भी अच्छा लगता है।
हर चीज आसानी से मिल जाये सो भी ठीक नहीं
कभी-कभी कुछ खोजना भी अच्छा लगता है।
भीड़ से घिरा रहता हूँ आजकल हर घड़ी
कभी-कभी तन्हा रहना भी अच्छा लगता है।
हमेशा आगे देखने की नसीहत देता है यहाँ हर कोई
कभी-कभी पीछे मुड़कर देखना भी अच्छा लगता है।
एक खुली किताब है मेरी यह टेढ़ी-मेढ़ी जिंदगी
कभी-कभी इसे दुबारा पढ़ना भी अच्छा लगता है।
जिंदगी की सच्चाइयां तो निहायत कड़वी है
कभी-कभी सपने में जीना भी अच्छा लगता है।
‘मिलन’ तो बराबर ही नियति रही है मेरी
कभी-कभी बिछुड़न भी अच्छा लगता है।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :03.09.2013
![alone-man](http://www.pravakta.com/wp-content/uploads/2012/08/alone-man.jpg)
कभी-कभी खुद पर हंसना भी अच्छा लगता है
कभी-कभी दूसरों पर रोना भी अच्छा लगता है।
हर चीज आसानी से मिल जाये सो भी ठीक नहीं
कभी-कभी कुछ खोजना भी अच्छा लगता है।
भीड़ से घिरा रहता हूँ आजकल हर घड़ी
कभी-कभी तन्हा रहना भी अच्छा लगता है।
हमेशा आगे देखने की नसीहत देता है यहाँ हर कोई
कभी-कभी पीछे मुड़कर देखना भी अच्छा लगता है।
एक खुली किताब है मेरी यह टेढ़ी-मेढ़ी जिंदगी
कभी-कभी इसे दुबारा पढ़ना भी अच्छा लगता है।
जिंदगी की सच्चाइयां तो निहायत कड़वी है
कभी-कभी सपने में जीना भी अच्छा लगता है।
‘मिलन’ तो बराबर ही नियति रही है मेरी
कभी-कभी बिछुड़न भी अच्छा लगता है।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :03.09.2013
Bht hi sahi kavita hai! :)
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