Saturday, August 31, 2013

आज की कविता : साधारण - असाधारण

                                                   - मिलन सिन्हा
तुम ताड़ मत बनो
तुम यूकिल्पटस भी मत बनो
इनकी ऊंचाई पर मत जाओ तुम
इनके सीधेपन पर भी मत जाओ तुम
ये सीधे जरूर हैं , पर सीधे सरल नहीं हैं
सभी जानते हैं
ताड़ मादक द्रव पैदा करता है
वैज्ञानिक कहते हैं
यूकिल्पटस   रेगिस्तान फैलाता है
ये किसी को आश्रय नहीं देते
ये हमारे समाज के लायक  नहीं
अच्छाई इनके पास नहीं
सुनो, तुम आम का पेड़ बनो
कटहल का पेड़ बनो
कटहल हम सबका है
आम हम सबका है
यह ख़ास का भी है, आम का भी है
कटहल भी हमारी समस्याओं का हल है
ताड़ और  यूकिल्पटस  की  तरह
न तो इनका कोई ग्रुप है, न कोई दल है
ये आम आदमी की तरह निश्छल है
इनमें ऊंचाई है, फैलाव है और गहराई भी है
ये हमारे मित्र हैं, भाई भी हैं
ये सबको आश्रय देते हैं
इनकी छायातले  यात्री गहरी नींद सोते हैं
ये बराबर हंसते हैं, कभी रोते नहीं हैं
ये जन्म से ही बड़े साहसी, दिलेर होते हैं
ये साधारण होते हुए भी, असाधारण हैं !

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

# 'अक्षरपर्व' के जनवरी,2008 अंक में प्रकाशित   

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