Sunday, August 11, 2013

आज की कविता : लोकतंत्र का महापर्व

                                                           - मिलन सिन्हा 
लोकतंत्र का महापर्व था 
गुजर गया शांतिपूर्वक (?)
मात्र सत्रह निर्दोष लोग बलि चढ़े 
घायलों की संख्या जानना जरूरी है ?
महापर्व था 
सब ओर थी पूरी तैयारी 
प्रशासन के स्तर पर 
दु :शासन के स्तर पर 
सड़कें सुनसान थीं 
लोग लुप्त थे 
कुछ जागे, कुछ सुप्त थे 
तो क्या उनके मत 
पड़ चुके थे सुबह ही ?
प्रशासन - दु :शासन
हथियारों से लैस 
मतदान केन्द्र पर साथ बैठा 
चाय की चुस्की ले रहा था 
आम जनता का भविष्य 
पेटियों में बंद हो चुका था 
ऐसे ही चुनाव संपन्न हुआ 
चुनाव आयोग ने 
अपनी पीठ ठोंकी !

                   और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

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