Thursday, August 29, 2013

कहानी : अपना घर

                                                           - मिलन सिन्हा
" अरे मोटू, किधर चला गया रे ?  इधर आ जल्दी " - राजमिस्त्री ने जोर से आवाज लगाई।

नन्द जी ने इधर- उधर नजर घुमाई। मजदूरों में कोई भी डील -डौल से मोटा नहीं कहा जा सकता था। फिर यह मिस्त्री मोटू कहकर किसको बुला रहा था।

" क्या है बे मिस्त्री, काहे गला फाड़ रहा था ? कोई दिल्ली- बम्बे नहीं गया था। जरा पानी पीने गया था " - एक औसत कद-काठी के मजदूर ने मिस्त्री को जवाब दिया। 

"अच्छा मोटू , भाषण खत्म हुआ न तेरा। अब  ईंट - मसाला  बढ़ा। जल्दी -जल्दी काम निबटाना है।  देख, कितनी कड़ी धूप है " - मिस्त्री ने मोटू से कहा।

मोटू ने धड़ाधड़ सब जुगाड़ मिस्त्री को दिया। काम तेजी से चलने लगा। वहाँ दो अन्य मजदूर भी काम कर रहे थे, लेकिन मोटू उनमें सबसे दक्ष एवं फुर्तीला था। दोनों मिस्त्री को जब-जब कोई कठिनाई होती, वे मोटू को आवाज देते। वे मोटू के साथ हंसी- मजाक भी करते। मोटू भी उनको बीच-बीच में छेड़ता एवं रह-रह कर खिलखिला कर हंसता। 


नन्द जी ख्यातिनाम इंजीनियर  थे। अनेक वर्षों से इस  पेशे में थे, परन्तु मोटू जैसा मजदूर उन्होंने अबतक नहीं देखा था। सो, मोटू के प्रति उनकी जिज्ञासा स्वाभाविक थी। आखिर उसका नाम मोटू क्यों पड़ा, वह कहाँ का रहनेवाला है, घर में उसके कौन-कौन है आदि।

पहली पाली का काम खत्म होने के बाद मोटू खाना खा कर लेटा हुआ था पेड़ की छाया में। नन्द जी के वहाँ पहुँचने पर वह हड़बड़ा कर उठ गया और दौड़ कर दो ईंट ले आया। उसपर अपना गमछा बिछा दिया एवं नन्द जी से बैठने का अनुरोध किया।नन्द जी के बैठ जाने पर वह भी पास में बैठ गया।नन्द जी ने उससे इधर-उधर की दो -चार बातें कीं, फिर पूछा की उसका नाम मोटू कैसे पड़ा।


मोटू ने बताया कि वह  बगल के जिले का रहनेवाला था। पहले वह बहुत मोटा - तगड़ा था। वह पहलवानी भी करता था। जो काम  दो मजदूर मिलकर करते, वही काम वह अकेला करता था। इसी सब कारण से ठेकेदार ने उसे मोटू कहकर बुलाना शुरू किया और फिर तब से उसे सभी मोटू कहकर ही बुलाते हैं। उसने  आगे बताया कि पहलेवाला  ठेकेदार उसे बहुत मानता था। शाम  को काम ख़त्म होने पर अपने साथ बिठाकर फोकट में शराब भी पिलाता था, कभी - कभी  खाना भी खिलाता था। 


 लेकिन, उसी   ठेकेदार के कारण ही उसकी आज यह दशा हुई थी, उसका तो जैसे सबकुछ नष्ट हो गया था - मोटू ने  भरे गले से कहा। 
     
'क्या नष्ट हो गया, तुम्हारा?' - नन्द जी ने मोटू से उत्सुकतावश पूछा।

मोटू  संजीदा हो गया। लगा अतीत में चला गया हो।  कहा, "बाबू , उस ठेकेदार ने मुझे शराब की ऐसी आदत लगा दी कि छूटती  ही नहीं। मैं अपनी आधा  ज्यादा मजदूरी शराब में ही  बर्वाद कर देता था।  अपने दो वक्त के खाने के लिए भी बाकी पैसा कम पड़ता तो अपने पत्नी और बेटे को कैसे खिलाता। मेरी पत्नी मुझे बहुत समझाती थी, पर मेरे सर पर तो शराब  भूत  सवार था। तंग  आकर मेरी पत्नी बेटे को लेकर अपने मायके चली गयी और फिर उसने कभी मेरी कोई खोज खबर नहीं ली। मेरा बेटा अब सात साल का हो गया  है, बाबू। " 

कुछ क्षण के लिए मोटू चुप हो गया, फिर कहने लगा,  "बाबू, जानते हैं, मैं सब काम कर सकता हूँ , मिस्त्री का काम भी। पर, अब मन नहीं करता, किसके लिए ज्यादा कमाऊं ?

"तुम क्या अब भी शराब पीते हो " - नन्द जी  ने सवाल किया।  

"हाँ, लेकिन अब कभी-कभी ही पीता हूँ। उसे भी अब छोड़ दूंगा।  एक बार अपनी पत्नी और बेटे से मिलना चाहता हूँ। उनके साथ रहना चाहता हूँ , उनके लिए अब जीना चाहता हूँ.......।"

विश्राम का समय ख़त्म हो गया। मोटू फिर अपने काम में लग गया।  उसके काम में अब अपेक्षाकृत ज्यादा फुर्ती थी। मन शायद थोड़ा हल्का हो गया था। 

यह ठेकेदार नन्द जी की बड़ी कद्र करता था। उन्होंने ठेकेदार से मोटू को  मिस्त्री के रूप में काम करवाने की सलाह दी। नन्द जी ने मोटू के लिए अपने घर के कुछ दूर  ही रहने की व्यवस्था कर दी। मोटू को अपने पुराने पैंट -शर्ट भी पहनने के लिए दिए जिससे कि लिबास से भी वह राज मिस्त्री लगे। नन्द जी ने मोटू के नाम से बैंक में एक बचत खाता खुलवा दिया एवं  उसके बढ़े हुए मजदूरी को जमा करवाने इंतजाम कर दिया। इस बीच मोटू ने शराब पीना बंद कर दिया। उसका स्वास्थ्य ठीक होने  लगा।  मोटू के चेहरे पर रौनक लौट आयी , शरीर पूर्ववत मांसल  हो गया। एक अच्छे मिस्त्री के रूप में उसकी चर्चा होने लगी। 

एक दिन सुबह -सुबह ठेकेदार नन्द जी के पास आया,  शिकायत की कि मोटू दो दिन से काम पर नहीं आया है। मोटू अपने कमरे में भी नहीं था।  नन्द जी बैंक गए तो मालूम हुआ कि मोटू ने अपने खाते से दो  दिन पहले मोटी रकम निकाली है। नन्द जी और ठेकेदार दोनों चिंता में पड़े। मोटू के इस तरह बिना कुछ बताये चले जाने पर उन्हें अंदर -ही -अंदर गुस्सा भी आ रहा था. परन्तु वे करते तो क्या करते।  

सुबह- सुबह  नन्द जी दरवाजे पर जोर - जोर से दस्तक  हुई।  वे हड़बड़ा कर उठे। सोचा कि इस वक्त कौन इस तरह दस्तक दे रहा है। दरवाजा खोला तो एक के बाद एक तीन लोगों ने उनका चरण स्पर्श किया। नन्द जी के सामने मोटू , उसकी पत्नी एवं उसका लड़का तीनों कृतज्ञ भाव से खड़े थे। 

नन्द जी की आँखें ख़ुशी से छलछला गई।  दूसरों का घर बनाते -बनाते मोटू को अपना घर जो मिल गया था। 

              और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :04.09.2013

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