Thursday, August 1, 2019

मोटिवेशन : संयम को अपना दोस्त बनाएं

                                                                 - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
आप सभी ने क्रिकेट विश्व कप टूर्नामेंट में भारत के साथ अन्य टीमों के कई खिलाड़ियों को कठिन परिस्थितियों  में भी संयमशीलता का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए देखा होगा. उन्होंने अपने-अपने  टीम के लिए बहुत उल्लेखनीय योगदान किया. जरा सोचिए, अगर इन खिलाड़ियों ने उन मैचों में उतावलापन दिखाया होता, जल्दबाजी की होती तो शायद वे ऐसी यादगार पारी नहीं खेल पाते. यह महज विश्व कप की बात नहीं है. संयम का मीठा फल हर क्षेत्र में मिलता है. विलियम शेक्सपियर कहते हैं, "वे कितने निर्धन हैं जिनके पास संयम नहीं है." सही बात है. घर-बाहर हर जगह हमें इसका प्रमाण मिलता है. 

'हड़बड़ से गड़बड़', 'जल्दी काम शैतान का' जैसी कहावतें सभी विद्यार्थी सुनते रहते हैं. बड़े-बुजुर्ग हमेशा कहते हैं कि संयम का फल मीठा होता है. पेड़ पर लगे फल को समय पूर्व अर्थात पकने से पहले तोड़ कर खाने पर वह खट्टा व कसैला लगता है. जो लोग संयम रखते हैं और फल को पकने देते हैं, उन्हें ही मीठा फल खाने को मिलता है. विद्यार्थियों के मामले में भी हमें ऐसा ही  देखने को मिलता है. 

विद्यार्थी जीवन में अमूमन हर कोई  उत्साह, उमंग और उर्जा से भरा रहता है. वह कई तरह के सपने देखता है. उसकी विविध इच्छाएं-आकांक्षाएं होती हैं. वह एक साथ बहुत कुछ हासिल करना चाहता है और वह भी फटाफट. इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता है. वाकई करने की कोशिश भी करता है. हां, यह बात और है कि कई बार चाहकर भी कर नहीं पाता है. इसके एकाधिक कारण हो सकते हैं. लेकिन इस सबमें एक बात तो साफ़ है कि चाहने, करने, होने और फल पाने के बीच संकल्प और मेहनत के साथ-साथ संयम की बहुत अहम भूमिका होती है. सोच कर देखिए, अगर कोई किसान यह सोचे कि आज बीज रोपा और कल फसल काट लेंगे, तो क्या यह संभव होगा? उसी तरह अगर कोई विद्यार्थी यह सोचे कि उसकी आज की पढ़ाई या अध्ययन  का फल  कल ही या उनके इच्छानुसार तुरत मिल जाएगा तो यह क्या सही होगा? इस संबंध में प्रकृति के व्यवहार और चरित्र को समझना दिलचस्प तथा ज्ञानवर्धक होगा.

दरअसल, जीवन में संयम का पालन करना कामयाबी की कुंजी है. असंख्य गुणीजनों ने जीवन  में संयम की अनिवार्यता एवं अहमियत को अपने कर्मों से साबित किया है और रेखांकित भी. लिहाजा, विद्यार्थियों के लिए संयम के महत्व को ठीक से समझना और उसे अपने जीवन में अंगीकार करना बहुत ही जरुरी है. सभी  इस बात को मानेंगे कि जोश के साथ होश में रहकर हर कार्य को ठीक से सम्पन्न करने में संयम की अहम भूमिका होती है. संयम से विद्यार्थियों में धीरता, गंभीरता, समझदारी एवं परिपक्वता आती है. इससे  सही निर्णय लेने में वे ज्यादा सक्षम होते जाते है. इसका बहुआयामी फायदा उनके साथ-साथ समाज और देश को भी मिलता है. ऐसे विद्यार्थी पढ़ाई में बेहतर तो होते ही हैं, अन्य कार्यों में भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं. इसके विपरीत जो विद्यार्थी जीवन में संयम का महत्व जानते-समझते हुए भी उसे उपयोग में नहीं लाते हैं, उनके जीवन में अनायास ही अनुशासनहीनता, संवेदनहीनता, उदंडता जैसी बुराइयां घर कर लेती हैं, जिसका दुष्परिणाम उनको और देश-समाज को बराबर भुगतना पड़ता है. 

शोध कार्य में लगे विद्वानों-वैज्ञानिकों को जरा गौर से काम करते हुए देखिए तो आपको पाता चलेगा कि संयम का दामन थामकर वे साल-दर-साल तन्मयता से परिश्रम करते रहते हैं, तब कहीं जाकर वे अपने शोध कार्य को पूरा कर पाते हैं. दुनिया में हुए तमाम आविष्कारों का इतिहास अगर हम पढ़ें तो संयम  की महत्ता का प्रमाण स्वतः मिल जाएगा. इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. सार्वजनिक जीवन में असाधारण सफलता हासिल करनेवालों के जीवन पर भी नजर डालें, चाहे वे महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, लालबहादुर शास्त्री, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण, लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय या अब्दुल कलाम हों, तो आपको वाणी से लेकर उनके व्यवहार एवं कार्यशैली में यह  गुण अनायास ही दिख जायेंगे. सच है, उन लोगों ने संयम को हमेशा अपना दोस्त बनाए रखा. 
                                                                          (hellomilansinha@gmail.com)


               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं   
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