Tuesday, January 15, 2019

मोटिवेशन : बड़े उद्देश्य को हासिल करना होगा आसान

                                                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर...
बीते दिनों मीडिया में इस बात की खूब चर्चा हुई कि 35 वर्षीय भारतीय महिला मुक्केबाज एम.सी. मैरी कॉम ने 10वीं एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में शानदार जीत हासिल की. इस तरह उन्होंने 6 विश्व चैंपियनशिप जीतकर भारतीय खेल इतिहास में स्वर्णाक्षर में अपना नाम दर्ज करवाया. 

अंतरराष्ट्रीय खेलों में त्रिपुरा की जिमनास्ट दीपा करमाकर और असम की धाविका हीमा दास के अभूतपूर्व प्रदर्शन को भी हम भूले नहीं हैं. हाल ही में वर्ल्ड टूर बैडमिंटन फाइनल में पी. वी. सिंधु ने जापान की नोजोमी ओकुहारा को पराजित कर जो विश्व खिताब हासिल किया, उससे पूरा देश गौरवान्वित महसूस कर रहा है. 

खेलकूद की दुनिया में ध्यानचंद, प्रकाश पादुकोणे, माइकल फरेरा से लेकर अविनव बिंद्रा, सुनील क्षेत्री और महेंद्र सिंह धोनी तक हमारे देश के अनेक खिलाड़ियों ने सैकड़ों नए मानदंड बनाए. 

‘भाग मिल्खा भाग’ नाम से चर्चित फिल्म आपने भी देखी होगी, जिसमें अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित मिल्खा सिंह के जोश, जूनून और मेहनत को बखूबी दर्शाया गया है. तमाम अवरोधों एवं परेशानियों के बावजूद मिल्खा सिंह  कैसे एक के बाद एक रिकॉर्ड तोड़ते गए. तभी तो वे आज भी  देश –विदेश के लाखों –करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं.

विज्ञान के क्षेत्र से एक उदाहरण लेते है, जिन्होंने अपने तय मुकाम को पाने के लिए आशा, दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम के बलबूते अविश्वसनीय सफलता हासिल की और नए कीर्तिमान स्थापित किये. हां, मैडम क्यूरी की जिन्दगी संघर्षों से निरंतर लड़ते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंचने की  गौरव गाथा है. रेडियम जैसे महत्वपूर्ण धातु का आविष्कार करने वाली इस वैज्ञानिक को दो बार नोबेल पुरस्कार विजेता होने की असाधारण ख्याति मिली. दरअसल, मैडम क्यूरी के नाम से प्रसिद्ध होने से पहले उन्हें लोग मार्जा स्क्लोदोव्स्का के नाम से जानते थे जो पोलैंड की राजधानी वारसा की रहनेवाली थी. उनके पिता विज्ञान के शिक्षक थे. घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण युवा मार्जा को भी एक बच्ची को उसके घर जा कर पढ़ाना पड़ता था. बावजूद इसके परिस्थिति कुछ यूँ बिगड़ी कि उसे मजबूरन वारसा से पेरिस आना पड़ा जिससे वह अपनी विज्ञान की पढ़ाई जारी रख सके. लेकिन यहाँ भी उनकी आर्थिक हालत कुछ ऐसी रही कि कमरे का किराया चुकाने के बाद उन्हें खाने –पहनने तक की बड़ी परेशानी से रोज रूबरू होना पड़ता. पेरिस की कड़ाके की सर्दी को झेलने के लिए उनके पास न तो पर्याप्त गर्म कपड़े थे और न ही घर  को गर्म रखने के लिए लकड़ी –कोयला आदि खरीदने के लिए पैसे. लिहाजा वह पढ़ते व सोते हुए सर्दी से ठिठुरती रहती. खाने के मामले में भी बहुत बुरा हाल था. हफ्ते-दर-हफ्ते वह डबल रोटी व चाय पर गुजारा करती. नतीजतन, वह इतनी  कमजोर हो  गयी  कि एक बार तो अपने क्लास में ही बेहोश हो गयी. तथापि पढ़ाई के प्रति उनकी लगन कम नहीं हुई और आगे तो उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में कमाल के काम किये और भौतिक शास्त्र एवं रसायन शास्त्र दोनों में नोबेल पुरस्कार जीता.

वाकई यह जानना मुनासिब और दिलचस्प होगा कि आखिर किस तरह इन लोगों ने अपने-अपने क्षेत्र में सफलता का परचम लहराया. लेकिन उससे ज्यादा यह जानना जरुरी है कि क्या सफलता के पीछे कुछ बुनियादी सिद्धांत कार्य करते हैं? 

हां, बिलकुल करते हैं. पहले तो हमें एक सार्थक या यूँ कहें कि एक स्मार्ट लक्ष्य तय करना पड़ता है. यहां स्मार्ट का मतलब है, एक निश्चित समयावधि में हासिल करने योग्य. इसके बाद उस उद्देश्य तक पहुंचने के लिए सही व समयबद्ध कार्ययोजना की आवश्यकता होती है. कहने की जरुरत नहीं कि उस निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूरे लगन एवं मेहनत से उस दिशा में जुटे रहना भी अनिवार्य है. इसीलिये मिसाइल मैन व जनता के राष्ट्रपति के नाम से विख्यात पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का कहना है,‘अपने मिशन में कामयाब होने के लिए, आपको अपने लक्ष्य के प्रति पूर्णतः निष्ठावान होना पड़ेगा.’

वाकई इस सिद्धांत पर चलते रहने पर पारिवारिक जीवन हो या नौकरी या व्यवसाय या कोई अन्य क्षेत्र हो, हमारे सफल होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है, साथ ही आगे और बड़े मुकाम को प्राप्त करने के प्रति हमारा आत्मविश्वास भी. गुणीजनों का भी स्पष्ट मत है कि जीवन में एक बड़े उद्देश्य को लेकर शिद्दत से आगे बढ़ना सफलता का सोपान बनता है.          (hellomilansinha@gmail.com)

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
   
#लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 13 जनवरी, 2019 अंक में प्रकाशित 
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com  

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