Wednesday, February 6, 2013

लघु कथा : वास्तविकता

                                                                               - मिलन  सिन्हा 
                                                       
          कुमार साहब एक नामी वकील थे।जब वे अदालत में जिरह करते तो अपनी दलीलों से सबको निरुत्तर  कर देते।

        आज वकील साहब ने दहेज़ के खिलाफ  जोरदार दलीलें प्रस्तुत कीं। जज साहब सहित न्यायालय में उपस्थित सारे लोग वकील साहब के तर्कों से अभिभूत थे। बाहर निकलते ही उनके मुवव्किल प्रसाद जी उन्हें  उनका फीस एक हजार रूपया ख़ुशी-ख़ुशी  दिया।वकील साहब ने पैसे रख लिए और फिर प्रसाद जी को अलग ले जाते हुए कहा, "भैया, आप मुझे परसों तक पचास हजार रुपये उधार  दे सकते  हैं? बड़ा ही जरुरी काम है। 

       'हाँ, हाँ, वकील साहब।पचास हजार क्यों, और भी रुपये की जरुरत हो तो ले लीजिये .........।' प्रसाद जी ने निःसंकोच जवाब दिया।

        पूरी रकम के साथ प्रसाद जी  दूसरे ही दिन शाम को वकील साहब के घर पहुँच गए।कुमार साहब बाहर बरामदे में चिंतामग्न बैठे थे। प्रसाद जी को देख कर उन्होंने दूसरी कुर्सी मंगवाई। चाय के लिए भी कहा। प्रसाद जी ने रुपये वकील साहब को दे दिए। फिर कुछ सहमते  हुए पूछ  ही लिया, 'जनाब, आपको पहले कभी इतना  चिंताग्रस्त नहीं देखा है। सब खैरियत तो है?

       वकील साहब के चेहरे पर एक अजीब-सा भाव साफ़ दिखने लगा। कहा, 'प्रसाद जी, जानते हैं, ये रूपये मैं आपसे उधार क्यों ले रहा हूँ? नहीं न ! दहेज़ के लिए ! कल देना है मुझे दहेज़ की पूरी रकम,  तब जाकर कहीं मेरी बेटी की शादी की तारीख तय हो पायेगी।'

       चाय आ चुकी थी, पर प्रसाद जी सुन्न से  बैठे रहे कुछ देर। फिर चुपचाप उठकर चले गए।

प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित
                                       और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं                                      

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