- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
खैर, जहां समस्या है वहां समाधान भी होता है और निःसंदेह, हर परिस्थिति में स्ट्रेस से राहत दिलाने के लिए योग और आयुर्वेद में दसाधिक अभ्यास - उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अमल में लाना आसान है और जो बहुत लाभकारी भी हैं. इन पर चर्चा करने से पहले यह मुनासिब होगा कि हम संक्षेप में ही सही, मोटे तौर पर स्ट्रेस के लक्षण और दुष्परिणामों के विषय में जानते चलें.
लक्षण: यदि आपका मन आपके काम में नहीं लग रहा है, आप हर समय खुद को थका हुआ महसूस कर रहे हैं और दिमाग में हर समय कुछ ना कुछ नकारात्मक विचार चलता रहता है, आप बेवजह क्रोधित या नाराज हो रहे हैं, नशा करने लगे हैं या नींद की गोली खा रहे हैं, आप जरुरत से ज्यादा या कम सो रहे हैं या भोजन कर रहे हैं, अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा देर तक बस यूँ ही टीवी देख रहे हैं, अपने दोस्तों तक से बात करने में कतराने लगे हैं या ऐसे ही कुछ अनबुझ कार्यों में शामिल हैं या असामान्य व्यवहार कर रहे हैं तो आप किसी-न-किसी वजह से स्ट्रेस में हैं.
दुष्परिणाम: दरअसल, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो लगातार तनावग्रस्त रहने से लोगों के मेटाबोलिज्म और इम्यून सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है. इससे आजकल कोविड संक्रमित होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है. इतना ही नहीं, लोग एकाग्र हो कर अपना कोई भी काम - यहां तक कि खाना और सोना तक, ठीक से नहीं कर पाते हैं और परिणामस्वरूप दूसरे तनाव-जनित अनेक बीमारियों के शिकार भी होते हैं. इन बीमारियों में अनिद्रा, सिरदर्द, माइग्रेन, डिप्रेशन से लेकर ह्रदय रोग, मधुमेह, कैंसर आदि शामिल हैं. स्वाभाविक तौर पर यह किसी भी व्यक्ति और उनके परिवार के लिए असहज और चिंताजनक स्थिति होती है.
ऐसे तो आयुर्वेद और योग दोनों ही अपने आप में सम्पूर्ण हैं, लेकिन ये एक दूसरे के पूरक भी माने गए हैं. प्रकृति से जुड़ने-जोड़ने और सकारात्मक सोच को मजबूत करने में इनका अहम योगदान रहा है.
योगाभ्यास के लाभ अनेक
योग अर्थात आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि का विज्ञान कहता है कि हम योग से जुड़कर अपने शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं के बीच बेहतर संतुलन कायम कर न केवल खुद को आज और भविष्य में भी स्ट्रेस फ्री और प्रसन्न रख सकते है, बल्कि तमाम तरह की व्याधियों से दूर रखकर ज्यादा स्वस्थ और उत्पादक भी रह सकते हैं. योग सिर्फ कुछ क्रियाओं का अभ्यास नहीं, सम्पूर्ण जीवनशैली है. जितनी सकारात्मकता, नियमितता और तन्मयता से योगाभ्यास करेंगे, उतना ही अधिक लाभ होगा.
योगाभ्यास हमेशा खुले और साफ-सुथरे परिवेश में करें. सारी योग क्रियाएं सामान्य गति से करें, किसी झटके से नहीं. योग कोई धार्मिक कर्म-काण्ड नहीं है. यह स्वस्थ जीवन जीने की प्राकृतिक कला है. योगाभ्यास से पूर्व शौच आदि से निवृत हो लें. खाली पेट और खुले मन से योगाभ्यास करना बेहतर. हां, किसी योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में योगाभ्यास की शुरुआत उचित होता है.
यहां हम ऐसे योग क्रियाओं के विषय में चर्चा करेंगे जिनके अभ्यास से मानसिक तनाव के साथ-साथ शारीरिक थकान भी दूर होगा, आपका विचलित मन शांत रह पायेगा और नींद भी अच्छी आएगी. हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखने में इन योग क्रियाओं से अन्य कई लाभ भी मिलेंगे. आइए, इन योग क्रियाओं के बारे में जानते हैं.
वज्रासान : घुटनों के बल पंजों को फैला कर सीधा ऐसे बैठें कि घुटने पास-पास एवं एड़ियां अलग-अलग रहे. हथेलियों को घुटनों पर रखें. मेरुदंड सीधा रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. आंख बंद कर लें. अब दीर्घ श्वास लेते और छोड़ते हुए उसे महसूस करें. इस मुद्रा में 10 मिनट और उससे ज्यादा अवधि तक अपनी सुविधा अनुसार रहने का प्रयास करें. पूरी तरह सचेत रहकर दीर्घ श्वास-प्रश्वास करते रहें.
पश्चिमोत्तानासन : दोनों हथेलियों को जांघ पर रखते हुए पांवों को सामने फैला कर सीधा बैठ जाएं. श्वास छोड़ते हुए और सिर को धीरे-धीरे आगे की ओर झुकाते हुए हाथ की अंगुलियों से पैर के अंगूठों को पकड़ने की कोशिश करें. माथे को घुटने से स्पर्श करने दें. शुरू में जितना झुक सकते हैं, उतना ही झुकें. थोड़ी देर अंतिम स्थिति में रहें और फिर श्वास लेते हुए प्रथम अवस्था में लौटें. रोजाना कम-से-कम पांच मिनट करें. पीठ दर्द, साइटिका और उदार रोग से पीड़ित लोग इसे न करें.
भुजंगासन : पांव को सीधा करके पेट के बल लेट जाएं. माथे को जमीन से सटने दें. हथेलियों को कंधे के नीचे जमीन पर रखें. अब श्वास लेते हुए धीरे-धीरे सिर तथा कंधे को हाथों के सहारे जमीन से ऊपर उठाइए. सिर और कंधे को जितना पीछे की ओर ले जा सकें, ले जाएं. ऐसा लगे कि सांप अपना फन उठाये हुए है. श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे वापस प्रथम अवस्था में लौटें. इसे कम-से-कम 5 बार दोहरायें. हर्निया, आंत संबंधी रोग से ग्रसित लोग इसे न करें.
भ्रामरी प्राणायाम : किसी भी आरामदायक आसन जैसे सुखासन, अर्धपद्मासन में बैठ जाएं. मेरुदंड सीधा रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. आंख बंद कर लें. अब प्रथम अँगुलियों से दोनों कान बंद कर लें. दीर्घ श्वास ले और भौंरे की तरह ध्वनि करते हुए रेचक करें और मस्तिष्क में इन ध्वनि तरंगों का अनुभव करें. यह एक आवृत्ति है. इसे 5 आवृत्तियों से शुरू कर यथासाध्य रोज बढ़ाते रहें. रोजाना 10 मिनट तक करें तो बेहतर परिणाम मिलेंगे. सावधानी यह बरतें कि जल्दबाजी न करें और श्वास क्रिया व ध्वनि लयबद्ध हो, इसका ध्यान रखें.
शीतली प्राणायाम : ध्यान के किसी आसन यानी सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में बैठ जाएं. अपने सिर और मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और दोनों हाथ घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रखें. आँख बंद कर लें और श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब जीभ को मुंह से बाहर निकालकर उसे इस प्रकार मोड़ें कि जीभ की आकृति एक नलिका सी हो जाए. इस नलिका से धीरे-धीरे दीर्घ श्वास लें और फिर मुंह बंद कर लें. अब नाक से धीरे-धीरे श्वास को छोड़ें. इस अभ्यास को रोजाना कम-से-कम पांच मिनट तक करें.
शवासन : शिथिलीकरण यानी रिलैक्सेशन के इस प्रमुख योगाभ्यास में दोनों हाथों को शरीर के बगल में रखते हुए पीठ के बल सीधा लेट जाएं. हथेलियों को ऊपर की ओर खुला रखें. पैरों को थोड़ा अलग कर लें. आखें बंद कर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. शरीर को शव की तरह पड़ा रहने दें. श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब श्वास-प्रश्वास पर मन को केन्द्रित करते हुए उनकी गिनती शुरू कर दें. यानी श्वास को आते-जाते सजगता से अनुभव करें और गिनें भी. मन भटके तो उसे पुनः इस काम में लगाएं. कुछ मिनटों तक ऐसा करने पर तन-मन शिथिल हो जाएगा और आप बहुत रिलैक्स्ड फील करेंगे. इस अभ्यास को रोजाना कम-से-कम पांच मिनट तक करें. ऐसे आपको जब जरुरत महसूस हो इस क्रिया को करें. बस लेटने का स्थान समतल हो और आप श्वास-प्रश्वास के प्रति सचेत रहें. हां, इस योगाभ्यास को ऊपर बताये गए योगक्रियाओं के अंत में करें, जिससे मानसिक और शारीरिक रूप से रिलैक्स्ड महसूस कर सकें. अचानक तनाव या चिंताग्रस्त होने पर भी कुछ देर शवासन में लेटना सुखकर होता है.
आयुर्वेद बहुत लाभकारी
हमारी भारतीय परंपरा और संस्कृति में आयुर्वेद को मानव शरीर को निरोगी रखने और रोग हो जाने पर उससे मुक्त करने तथा आयु बढ़ाने का चिकित्सा विज्ञान माना गया है. आयुर्वेद संतुलित जीवनशैली, पारम्परिक खानपान तथा हर्बल उपचार पर ज़ोर देता है. प्राकृतिक चिकित्सा का यह मूल आधार है.
स्ट्रेस को अच्छी तरह मैनेज करने में आयुर्वेद की अहम भूमिका है. खासकर ऐसे वक्त वात, पित्त और कफ में संतुलन स्थापित करने में यह बहुत सहायक होता है. हल्का व ताजा खाओ, तरोताजा रहो का संदेश आयुर्वेद के सिद्धांत में निहित है.
स्ट्रेस मैनेजमेंट की दृष्टि से सुबह-सुबह शरीर को अच्छी तरह जल और ऑक्सीजन युक्त कर लेना बेहतर है. इससे शरीर स्वच्छ होता है और रक्त संचरण बेहतर होता है.
कहते हैं जैसा अन्न, वैसा मन. अतः आयुर्वेद में राजसिक और तामसिक आहार के बजाय सात्विक भोजन को श्रेष्ठ माना गया है. तनाव की अवस्था में सात्विक, संतुलित और पौष्टिक आहार से हमारे शरीर को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन, मिनिरल जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है जिससे हम ज्यादा ऊर्जावान बने रहते हैं. फलतः शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहना आसान होता है.
मानसिक तनाव की स्थिति में अपने आहार में विशेषकर संतरा, नींबू, आंवला, केला, दूध, अखरोट, आलमंड, वेजिटेबल सूप, हर्बल चाय आदि को शामिल करना बहुत फायदेमंद होता है. आयुर्वेद में तनाव या चिंताग्रस्त होने पर तुलसी, अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि का सेवन भी काफी उपयोगी माना गया है. काढ़ा या हर्बल टी से तो लोग अनेक लाभ के भागी बनते रहे हैं.
इन सबके समेकित प्रभाव से शरीर में फील गुड और फील हैप्पी होरमोंस का स्राव भी सुनिश्चित होता है, जिससे स्ट्रेस कम होता है और हम बेहतर महसूस करते हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 16 -30 जून, 2021 योग विशेषांक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
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