Friday, June 25, 2021

संवेदनशीलता और शालीनता

                       - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

मशीनीकरण व मार्केटिंग के मौजूदा दौर में बहुत सारे लोग जाने-अनजाने मशीन बनते जा रहे हैं और अपने व्यवहार को व्यापारिक लाभ-हानि के हिसाब से इस्तेमाल कर रहे  हैं. इस क्रम में उनकी संवेदनशीलता कम होती जा रही है. इसके बहुआयामी दुष्परिणाम भी स्वाभाविक रूप से सामने आ रहे हैं. विद्यार्थियों के लिए इस पर विचार करना बहुत जरुरी है, क्यों कि मानवीय संवेदना के बिना घर, परिवार, समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेवारियों को निभाना बहुत ही मुश्किल होता है. और तो और खुद उनके सर्वांगीण विकास में यह एक बड़ा अवरोध साबित होता है. हमारे प्रधानमन्त्री अपनी हर सभा में "सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास" की बात दोहराते हैं. कभी आपने सोचा है कि  इसके पीछे की भावना क्या है, लक्ष्य क्या है? भावना व लक्ष्य यह है कि मानव का न केवल मानव के प्रति बल्कि सृष्टि के हर अंग के प्रति संवेदनशीलता का भाव, जिसको चरितार्थ कर हमारा देश मानवता की नई ऊंचाइयों को छू सके और आत्मनिर्भरता की और तेजी से बढ़ सके. आइए, चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले एक प्रेरक प्रसंग की बात करते हैं. 

कुछ समय पहले की बात है. एक महात्मा  दूर के एक गांव में प्रवचन देने जा रहे  थे. अपने गंतव्य से थोड़ा पहले रास्ते के बगल में उन्होंने एक बकरी के बच्चे यानी मेमने को कीचड़ के एक  गड्ढे में फंसा हुआ देखा. मेमना तड़पता हुआ मिमिया रहा था. आसपास कोई नहीं था. बकरी के बच्चे की हालत देखकर महात्मा से रहा नहीं गया और वे गड्ढे में जाकर उस मेमने  को गोद में लेकर बाहर आ गए. इस क्रम में उनके वस्त्र बिल्कुल गंदे हो गए. तब तक गांव के कुछ लोग आ गए थे. उन्होंने महात्मा जी को पहचाना और उस हालत में देखकर लज्जित हुए. महात्मा जी ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा की यह साधारण घटना है. शुक्र है कि बकरी का बच्चा बच गया. अब आपलोग पहले इस बच्चे को थोड़ा साफ़-सुथरा करके इसकी मां तक पहुँचाने की व्यवस्था करें. इसकी मां आसपास ही होगी और इसकी आवाज सुनकर शायद आती भी होगी. मुझे प्रवचन के लिए समय पर पहुंचना है. यह कहते हुए दो-तीन गांव वालों के साथ वे सभा स्थल पर उसी तरह पहुंच गए. जब आयोजकों ने उनकी हालत देखी तो कुछ समझ नहीं पाए कि आखिर महात्मा जी ऐसे कीचड़ से सने क्यों दिख रहे हैं. उनकी स्थिति को देखते हुए घटना स्थल से उनके साथ आए एक गांववाले ने लोगों को बताया कि किस तरह महात्मा जी ने एक मेमने को बचाया और सभा स्थल पर पहुँचने में देर न हो इस कारण उसी हालत में यहां आ गए. अपनी संवेदनशीलता और दयालुता की चर्चा को बीच में रोकते हुए महात्मा जी ने कहा कि यह एक सामान्य घटना है. दरअसल उस मेमने को कीचड़ में फंसा और तड़पता देख मैं समानुभूति से भर गया. मैं विचलित हो गया. सोचिये अगर मैं उस मेमने को बचाए बगैर  इस सभा में आ जाता तो क्या मैं खुद को माफ़ कर पाता और क्या सब कुछ जानने के बाद आप लोग मुझे महात्मा तो क्या एक अच्छा इंसान भी मान  पाते?   आगे अपने प्रवचन में महात्मा जी ने लोगों को बताया कि किस तरह देश के ऋषि-मुनि, संत-महात्मा व अनेकानेक महान लोगों ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए आम लोगों की असाधारण एवं निस्वार्थ मदद की. 

उसी तरह मानव जीवन में शालीनता का अतिशय महत्व है. शालीनता आम शिष्टाचार का अभिन्न अंग होता है. ज्ञानीजन तो कहते हैं कि शालीनता अमूल्य है और जो भी विद्यार्थी इसे अपना साथी बना लेता है, देश-विदेश हर स्थान पर उसका हर काम अपेक्षाकृत आसानी से हो जाता है. बोनस के रूप में वह सम्मान का हकदार भी बनता है. अपने आसपास नजर डालें तो आपको पता चलेगा कि आप अपने उन्हीं दोस्तों को ज्यादा पसंद करते हैं जो शालीन होते हैं अर्थात अपने व्यवहार में शिष्ट, सौम्य और विनम्र होते हैं. इसका मतलब यह नहीं कि वे दोस्त चाटुकार या कमजोर होते हैं. वे तो वाकई अंदर से शांत होते हैं और मानव व्यवहार के मामले में उन्नत. ऐसे भी किसी भी विद्यार्थी का बात-बात पर चिल्लाना, गुस्सा करना, गाली-गलौज तक करना उसके किसी परिजन, साथी या सहपाठी को कभी अच्छा नहीं लगता है. तभी तो जॉब मार्केट हो या बिज़नस वर्ल्ड या शिक्षण संस्थान, हर जगह शालीनता को बहुत अहमियत दी जाती है. दरअसल, जब आप खुद शालीन होते हैं तो आप अपने व्यवहार से अनायास ही दूसरों को भी शालीन बनने के लिए प्रेरित करते है और इस तरह दुनिया को खूबसूरत बनाने में सार्थक भूमिका अदा करते हैं. 

  (hellomilansinha@gmail.com)      

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 16 -30 अप्रैल, 2021 अंक में प्रकाशित

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com         

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