- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
आइए आज देश के एक महान सपूत के जीवन पर थोड़ी चर्चा करते हैं और इसके माध्यम से हमारे जीवन में चिंतन-लगन-उद्यम के महत्व को समझने का प्रयास भी करते हैं. पहले उनके जीवन से संबंधित एक रोचक प्रेरक प्रसंग.
यह घटना देश में ब्रिटिश शासन के समय की है. एक पैसेंजर ट्रेन में कई अंग्रेज यात्रियों के साथ-साथ कुछ भारतीय भी सफ़र कर रहे थे. उनमें साधारण वेशभूषा में एक युवक भी था जो किसी सोच-विचार में मग्न था. अंग्रेज उसका मजाक उड़ा रहे थे, पर वह उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहा था. थोड़ी ही देर के बाद अचानक वह युवक उठा और उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी. ट्रेन रुक गई. सब लोग चकित थे कि आखिर युवक ने जंजीर क्यों खींची. अंग्रेज यात्री तो बहुत क्रोधित थे और उस युवक को डांट रहे थे. तभी ट्रेन का गार्ड आ गए और युवक से इस तरह गाड़ी रोकने का कारण जानना चाहा. युवक ने गंभीरतापूर्वक कहा कि उसका अनुमान है कि थोड़ी दूर पर आगे रेल पटरी क्षतिग्रस्त है और गंभीर ट्रेन एक्सीडेंट की आशंका है. गार्ड और अन्य रेलकर्मी जब उस युवक को लेकर रेल पटरी पर थोड़ी दूर गए तो यह देखकर अवाक रह गए कि रेल पटरी सचमुच क्षतिग्रस्त है. अगर ट्रेन को रोका नहीं जाता तो गंभीर दुर्घटना निश्चित थी जिसमें न जाने जान-माल की कितनी बड़ी क्षति होती. अंग्रेज यात्रियों के साथ-साथ जब गार्ड ने उस युवक की अदभुत समझ की तारीफ़ की और पूछा कि आखिर उसे इसका पूर्वाभास कैसे हुआ तो युवक ने बताया कि ट्रेन की गति में अंतर आने एवं ट्रेन के चलने पर पटरी से आनेवाली ध्वनि में फर्क पर गौर करने से उसे आगे खतरे का अनुमान हो गया. गार्ड के पूछने पर उस युवक ने बताया कि वह एक इंजीनियर है और उसका नाम डॉ॰ मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया है. युवक का परिचय पाते ही उनपर कटाक्ष करनेवाले अंग्रेजों को भी शर्मिंदगी महसूस हुई और उन्होंने सॉरी कहा. डॉ॰ विश्वेश्वरैया का उत्तर था कि आप सब ने मुझे क्या कहा, मुझे तो कुछ भी मालूम नहीं. मैं तो चिंतन कर रहा था.
एम. विश्वेश्वरैया का जन्म तत्कालीन मैसूर राज्य के चिक्काबल्लापुर ताल्लुक के मुदेन हल्ली गांव में 15 सितंबर 1861 को हुआ था. उनके पिता संस्कृत के विद्वान् थे और माता एक धार्मिक घरेलू महिला. 12 वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहावसान हो गया. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए जूनियर छात्रों को ट्यूशन देकर पैसे जुटाने पड़े. अपने गृह स्थान में स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने बंगलोर के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया. लगन के पक्के विश्वेश्वरैया ने एकाधिक परेशानियों के बावजूद पढ़ाई में कभी कमी नहीं की और ग्रेजुएशन की परीक्षा में अव्वल आए. इसी कारण मैसूर सरकार की आर्थिक सहायता से उन्होंने पूना में इंजीनियरिंग की पढ़ाई उत्तम अंकों से पूरी की. इस बेहतरीन रिजल्ट के कारण उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया.
बाद में जब वे मैसूर राज्य में सेवा दे रहे थे, उस समय राज्य की हालत खराब थी, विशेषकर अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, खेती, सिंचाई आदि के मामले में. इसे सुधारने हेतु उन्होंने राज्य सरकार को अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिए. उनकी देखरेख में मैसूर के कृष्ण राजसागर बांध का निर्माण हुआ जब कि उस समय देश में सीमेंट का उत्पादन नहीं होता था. उनके असाधारण गुणों के कारण 1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त किया. विश्वेश्वरैया शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे और अशिक्षा को लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण मानते थे. अतः उन्होंने अपने सेवाकाल में मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या को दोगुने से ज्यादा बढ़ा दिया. इतना ही नहीं इसी अवधि में उन्होंने कई कृषि, इंजीनियरिंग व औद्योगिक कालेज भी खुलवाए. पचास के दशक में बिहार के मोकामा (पटना जिला) में गंगा नदी पर राजेन्द्र सेतु निर्माण के दौरान उन्हें बुलाया गया. उस समय उनकी उम्र करीब 92 वर्ष थी. तपती धूप थी और साइट पर पहुंचना कष्टकर था, फिर भी वे वह साइट पर गए और इंजीनियरों गाइड किया. वे बराबर कहते थे कि कार्य जो भी हो उसे इस ढंग से किया जाय कि वह सबसे उत्कृष्ट हो. 1955 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. 101 वर्ष की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा. उनके जन्मदिन को देशभर में इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है. सचमुच, विश्वेश्वरैया चिंतन, लगन और उद्यम के मामले में असाधारण थे.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 01-15 मई, 2021 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 01-15 मई, 2021 अंक में प्रकाशित
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