Tuesday, June 29, 2021

वेलनेस पॉइंट : योग और आयुर्वेद से रहें निरोग

                               - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट

यह सही है कि असंतुलित जीवनशैली भी बढ़ते स्ट्रेस का एक बड़ा कारण रहा है, जिसे सुधारना हमारे कंट्रोल में होता है और वह बहुत कठिन भी नहीं है. लेकिन कोविड-19 वैश्विक महामारी के लम्बे और कठिन दौर ने स्ट्रेस की स्थिति को वाकई जटिल बना दिया है. लिहाजा मानसिक तनाव से पीड़ितों की संख्या में बड़ा उछाल देखा जा रहा है. एकाधिक सर्वे इस बात को रेखांकित कर रहे हैं. हम सभी जानते हैं कि लगातार मानसिक तनाव में रहने के दुष्परिणाम बहुआयामी और कष्टकर होते हैं. हाल के महीनों में डिप्रेशन, आत्महत्या आदि के मामलों में जो वृद्धि देखी जा रही है, वह इस बात का प्रमाण है. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी हाल ही में कोरोना महामारी से उत्पन्न स्थिति के सन्दर्भ में कहा है कि "परिजनों को खोने का गम, नौकरी छूटने का दुःख, आइसोलेशन या अकेले रहने की दिक्कतें, आवागमन की असुविधा, आर्थिक तंगी तथा पारिवारिक रिश्तों में परेशानी, भविष्य को लेकर अनिश्चितता और भय जैसे कारणों से  बड़ी संख्या में लोग मानसिक तनाव से ग्रस्त हो रहे हैं... ...."

खैर, जहां समस्या है वहां समाधान भी होता है और निःसंदेह, हर परिस्थिति में स्ट्रेस से राहत दिलाने के लिए योग और आयुर्वेद में दसाधिक अभ्यास - उपाय  बताए गए हैं, जिन्हें अमल में लाना आसान है और जो बहुत लाभकारी भी हैं. इन पर चर्चा करने से पहले यह मुनासिब होगा कि हम संक्षेप में ही सही, मोटे तौर पर स्ट्रेस के लक्षण और दुष्परिणामों के विषय में जानते चलें.

लक्षण: यदि आपका मन आपके काम में नहीं लग रहा है, आप हर समय खुद को थका हुआ महसूस कर रहे हैं और दिमाग में हर समय कुछ ना कुछ नकारात्मक विचार चलता रहता है, आप बेवजह क्रोधित या नाराज हो रहे हैं, नशा करने लगे हैं या नींद की गोली खा रहे हैं, आप जरुरत से ज्यादा या कम सो रहे हैं या भोजन कर रहे हैं, अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा देर तक बस यूँ ही टीवी देख रहे हैं, अपने दोस्तों तक से बात करने में कतराने लगे हैं या ऐसे ही कुछ अनबुझ कार्यों में शामिल हैं या असामान्य व्यवहार कर रहे हैं तो आप किसी-न-किसी वजह से स्ट्रेस में हैं.

दुष्परिणाम: दरअसल, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो लगातार तनावग्रस्त  रहने से लोगों के मेटाबोलिज्म और इम्यून सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है. इससे आजकल कोविड संक्रमित होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है. इतना ही नहीं, लोग एकाग्र हो कर अपना कोई भी काम - यहां तक कि खाना और सोना तक, ठीक से नहीं कर पाते हैं और परिणामस्वरूप दूसरे तनाव-जनित अनेक बीमारियों के शिकार भी होते हैं. इन बीमारियों में अनिद्रा, सिरदर्द, माइग्रेन,  डिप्रेशन से लेकर ह्रदय रोग, मधुमेह, कैंसर आदि शामिल हैं. स्वाभाविक तौर पर यह किसी भी व्यक्ति और उनके परिवार के लिए असहज और चिंताजनक स्थिति होती है. 

ऐसे तो आयुर्वेद और योग दोनों ही अपने आप में सम्पूर्ण हैं, लेकिन ये एक दूसरे के पूरक भी माने गए हैं. प्रकृति से जुड़ने-जोड़ने और सकारात्मक सोच को मजबूत करने में इनका अहम योगदान रहा है. 

योगाभ्यास के लाभ अनेक 

योग अर्थात आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि का विज्ञान कहता है कि हम योग से जुड़कर अपने शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं के बीच बेहतर संतुलन कायम कर न केवल  खुद को आज और भविष्य में भी स्ट्रेस फ्री और प्रसन्न रख सकते है, बल्कि तमाम तरह की व्याधियों से दूर रखकर ज्यादा स्वस्थ और उत्पादक भी रह सकते हैं. योग सिर्फ कुछ क्रियाओं का अभ्यास नहीं, सम्पूर्ण जीवनशैली है. जितनी सकारात्मकता, नियमितता और तन्मयता से योगाभ्यास करेंगे, उतना  ही अधिक लाभ होगा. 

योगाभ्यास हमेशा खुले और साफ-सुथरे परिवेश में करें. सारी योग क्रियाएं सामान्य गति से करें, किसी झटके से नहीं. योग कोई धार्मिक कर्म-काण्ड नहीं है. यह स्वस्थ जीवन जीने की प्राकृतिक कला है. योगाभ्यास से पूर्व शौच आदि से निवृत हो लें. खाली पेट और खुले मन से योगाभ्यास करना बेहतर. हां, किसी योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में योगाभ्यास की शुरुआत उचित होता है.

यहां हम ऐसे योग क्रियाओं के विषय में चर्चा करेंगे जिनके अभ्यास से मानसिक तनाव के साथ-साथ शारीरिक थकान भी दूर होगा, आपका विचलित मन शांत रह पायेगा और नींद भी अच्छी आएगी. हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखने में इन योग क्रियाओं से अन्य कई लाभ भी मिलेंगे. आइए, इन योग क्रियाओं के बारे में जानते हैं. 

वज्रासान : घुटनों के बल पंजों को फैला कर सीधा ऐसे बैठें कि  घुटने पास-पास एवं एड़ियां अलग-अलग रहे. हथेलियों को घुटनों पर रखें. मेरुदंड सीधा रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. आंख बंद कर लें. अब दीर्घ श्वास लेते और छोड़ते हुए उसे महसूस करें. इस मुद्रा में 10 मिनट और उससे ज्यादा अवधि तक अपनी सुविधा अनुसार रहने का प्रयास करें. पूरी तरह सचेत रहकर दीर्घ श्वास-प्रश्वास करते रहें.  

पश्चिमोत्तानासन : दोनों हथेलियों को जांघ पर रखते हुए पांवों को सामने फैला कर सीधा बैठ जाएं. श्वास छोड़ते हुए और सिर को धीरे-धीरे आगे की ओर झुकाते हुए हाथ की अंगुलियों से पैर के अंगूठों को पकड़ने की कोशिश करें. माथे को घुटने से स्पर्श करने दें. शुरू में जितना झुक सकते हैं, उतना ही झुकें. थोड़ी देर अंतिम स्थिति में रहें और फिर श्वास लेते हुए प्रथम अवस्था में लौटें. रोजाना कम-से-कम पांच मिनट करें. पीठ दर्द, साइटिका और उदार रोग से पीड़ित लोग इसे न करें.

भुजंगासन : पांव को सीधा करके पेट के बल लेट जाएं. माथे को जमीन से सटने दें. हथेलियों को कंधे के नीचे जमीन पर रखें. अब श्वास लेते हुए धीरे-धीरे सिर तथा कंधे को हाथों के सहारे जमीन से ऊपर उठाइए. सिर और कंधे को जितना पीछे की ओर ले जा सकें, ले जाएं. ऐसा लगे कि सांप अपना फन उठाये हुए है. श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे वापस प्रथम अवस्था में लौटें. इसे कम-से-कम 5 बार दोहरायें. हर्निया, आंत संबंधी रोग से ग्रसित लोग इसे न करें.

अनुलोम-विलोम प्राणायाम : सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. हाथों को घुटने पर रख लें. आँख बंद कर लें और श्वास को आते-जाते महसूस करें. अब दाहिने हाथ के प्रथम और द्वितीय अंगुलियों को ललाट के मध्य बिंदु पर रखें और तीसरी अंगुली (अनामिका) को नाक के बायीं छिद्र के पास और अंगूठे को दाहिने छिद्र के पास रखें. अब अंगूठे से दाहिने छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से दीर्घ श्वास लें और फिर अनामिका से बाएं छिद्र को बंद करते हुए दाहिने छिद्र से श्वास को छोड़ें. इसी भांति अब दाहिने छिद्र से श्वास लेकर बाएं से छोड़ें. यह एक आवृत्ति है. इसे कम –से-कम 10 बार करें. सावधानी यह बरतें कि इस अभ्यास को जल्दबाजी या बलपूर्वक  न  करें और  मन पूरक-रेचक पर केन्द्रित हो.

भ्रामरी प्राणायाम : किसी भी आरामदायक आसन जैसे सुखासन, अर्धपद्मासन में बैठ जाएं. मेरुदंड सीधा रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. आंख बंद कर लें. अब प्रथम अँगुलियों से दोनों कान बंद कर लें. दीर्घ श्वास ले और भौंरे की तरह ध्वनि करते हुए रेचक करें और मस्तिष्क में इन ध्वनि तरंगों का अनुभव करें. यह एक आवृत्ति है. इसे 5 आवृत्तियों से शुरू कर यथासाध्य रोज बढ़ाते रहें. रोजाना 10 मिनट तक करें तो बेहतर परिणाम मिलेंगे. सावधानी यह बरतें कि जल्दबाजी  न करें और श्वास क्रिया व  ध्वनि लयबद्ध हो, इसका ध्यान रखें.

शीतली प्राणायाम : ध्यान के किसी आसन यानी सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में बैठ जाएं. अपने सिर और मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और दोनों हाथ घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रखें. आँख बंद कर लें और श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब जीभ को मुंह से बाहर निकालकर उसे इस प्रकार मोड़ें कि जीभ की आकृति एक नलिका सी हो जाए. इस नलिका से धीरे-धीरे दीर्घ श्वास लें और फिर मुंह बंद कर लें. अब नाक से धीरे-धीरे श्वास को छोड़ें. इस अभ्यास को रोजाना कम-से-कम पांच मिनट तक करें.

शवासन : शिथिलीकरण यानी रिलैक्सेशन के इस  प्रमुख योगाभ्यास में दोनों हाथों को शरीर के बगल में रखते हुए पीठ के बल सीधा लेट जाएं. हथेलियों को ऊपर की ओर खुला रखें. पैरों को थोड़ा अलग कर लें. आखें बंद कर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. शरीर को शव की तरह पड़ा रहने दें. श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब श्वास-प्रश्वास पर मन को केन्द्रित करते हुए उनकी गिनती शुरू कर दें. यानी श्वास को आते-जाते सजगता से अनुभव करें और गिनें भी. मन भटके तो उसे पुनः इस काम में लगाएं. कुछ मिनटों तक ऐसा करने पर तन-मन शिथिल हो जाएगा और आप बहुत रिलैक्स्ड फील करेंगे. इस अभ्यास को रोजाना कम-से-कम पांच मिनट तक करें. ऐसे आपको जब जरुरत महसूस हो इस क्रिया को करें. बस लेटने का स्थान समतल हो और आप श्वास-प्रश्वास के प्रति सचेत रहें. हां, इस योगाभ्यास को ऊपर बताये गए योगक्रियाओं के अंत में करें, जिससे मानसिक और शारीरिक रूप से रिलैक्स्ड महसूस कर सकें. अचानक तनाव या चिंताग्रस्त होने पर भी कुछ देर शवासन में लेटना सुखकर होता है. 

आयुर्वेद बहुत लाभकारी

हमारी भारतीय परंपरा और संस्कृति में आयुर्वेद को मानव शरीर को निरोगी रखने और रोग हो जाने पर उससे मुक्त करने तथा आयु बढ़ाने का चिकित्सा विज्ञान माना गया है. आयुर्वेद संतुलित जीवनशैली, पारम्परिक खानपान तथा हर्बल उपचार पर ज़ोर देता है. प्राकृतिक चिकित्सा का यह मूल आधार है. 

स्ट्रेस को अच्छी तरह मैनेज करने में आयुर्वेद की अहम भूमिका है. खासकर ऐसे वक्त वात, पित्त और कफ में संतुलन स्थापित करने में यह बहुत सहायक होता है. हल्का व ताजा खाओ, तरोताजा रहो का संदेश आयुर्वेद के सिद्धांत में निहित है. 

स्ट्रेस मैनेजमेंट की दृष्टि से सुबह-सुबह शरीर को अच्छी तरह जल और ऑक्सीजन युक्त कर लेना बेहतर है. इससे शरीर स्वच्छ होता है और रक्त संचरण बेहतर होता है. 

कहते हैं जैसा अन्न, वैसा मन. अतः आयुर्वेद में राजसिक और तामसिक आहार के बजाय सात्विक भोजन को श्रेष्ठ माना गया है. तनाव की अवस्था में सात्विक, संतुलित और पौष्टिक आहार से हमारे शरीर को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन, मिनिरल जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है जिससे हम ज्यादा ऊर्जावान बने रहते हैं. फलतः शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहना आसान होता है. 

मानसिक तनाव की स्थिति में अपने आहार में विशेषकर संतरा, नींबू, आंवला, केला, दूध, अखरोट, आलमंड, वेजिटेबल सूप, हर्बल चाय आदि को शामिल करना बहुत फायदेमंद होता है. आयुर्वेद में तनाव या चिंताग्रस्त होने पर तुलसी, अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि का सेवन भी काफी उपयोगी माना गया है. काढ़ा या हर्बल टी से तो लोग अनेक लाभ के भागी बनते रहे हैं.   

इन सबके समेकित प्रभाव से शरीर में फील गुड और फील हैप्पी होरमोंस का स्राव भी सुनिश्चित होता है, जिससे स्ट्रेस कम होता है और हम बेहतर महसूस करते हैं. 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 16 -30 जून, 2021 योग विशेषांक में प्रकाशित

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Friday, June 25, 2021

संवेदनशीलता और शालीनता

                       - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

मशीनीकरण व मार्केटिंग के मौजूदा दौर में बहुत सारे लोग जाने-अनजाने मशीन बनते जा रहे हैं और अपने व्यवहार को व्यापारिक लाभ-हानि के हिसाब से इस्तेमाल कर रहे  हैं. इस क्रम में उनकी संवेदनशीलता कम होती जा रही है. इसके बहुआयामी दुष्परिणाम भी स्वाभाविक रूप से सामने आ रहे हैं. विद्यार्थियों के लिए इस पर विचार करना बहुत जरुरी है, क्यों कि मानवीय संवेदना के बिना घर, परिवार, समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेवारियों को निभाना बहुत ही मुश्किल होता है. और तो और खुद उनके सर्वांगीण विकास में यह एक बड़ा अवरोध साबित होता है. हमारे प्रधानमन्त्री अपनी हर सभा में "सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास" की बात दोहराते हैं. कभी आपने सोचा है कि  इसके पीछे की भावना क्या है, लक्ष्य क्या है? भावना व लक्ष्य यह है कि मानव का न केवल मानव के प्रति बल्कि सृष्टि के हर अंग के प्रति संवेदनशीलता का भाव, जिसको चरितार्थ कर हमारा देश मानवता की नई ऊंचाइयों को छू सके और आत्मनिर्भरता की और तेजी से बढ़ सके. आइए, चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले एक प्रेरक प्रसंग की बात करते हैं. 

कुछ समय पहले की बात है. एक महात्मा  दूर के एक गांव में प्रवचन देने जा रहे  थे. अपने गंतव्य से थोड़ा पहले रास्ते के बगल में उन्होंने एक बकरी के बच्चे यानी मेमने को कीचड़ के एक  गड्ढे में फंसा हुआ देखा. मेमना तड़पता हुआ मिमिया रहा था. आसपास कोई नहीं था. बकरी के बच्चे की हालत देखकर महात्मा से रहा नहीं गया और वे गड्ढे में जाकर उस मेमने  को गोद में लेकर बाहर आ गए. इस क्रम में उनके वस्त्र बिल्कुल गंदे हो गए. तब तक गांव के कुछ लोग आ गए थे. उन्होंने महात्मा जी को पहचाना और उस हालत में देखकर लज्जित हुए. महात्मा जी ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा की यह साधारण घटना है. शुक्र है कि बकरी का बच्चा बच गया. अब आपलोग पहले इस बच्चे को थोड़ा साफ़-सुथरा करके इसकी मां तक पहुँचाने की व्यवस्था करें. इसकी मां आसपास ही होगी और इसकी आवाज सुनकर शायद आती भी होगी. मुझे प्रवचन के लिए समय पर पहुंचना है. यह कहते हुए दो-तीन गांव वालों के साथ वे सभा स्थल पर उसी तरह पहुंच गए. जब आयोजकों ने उनकी हालत देखी तो कुछ समझ नहीं पाए कि आखिर महात्मा जी ऐसे कीचड़ से सने क्यों दिख रहे हैं. उनकी स्थिति को देखते हुए घटना स्थल से उनके साथ आए एक गांववाले ने लोगों को बताया कि किस तरह महात्मा जी ने एक मेमने को बचाया और सभा स्थल पर पहुँचने में देर न हो इस कारण उसी हालत में यहां आ गए. अपनी संवेदनशीलता और दयालुता की चर्चा को बीच में रोकते हुए महात्मा जी ने कहा कि यह एक सामान्य घटना है. दरअसल उस मेमने को कीचड़ में फंसा और तड़पता देख मैं समानुभूति से भर गया. मैं विचलित हो गया. सोचिये अगर मैं उस मेमने को बचाए बगैर  इस सभा में आ जाता तो क्या मैं खुद को माफ़ कर पाता और क्या सब कुछ जानने के बाद आप लोग मुझे महात्मा तो क्या एक अच्छा इंसान भी मान  पाते?   आगे अपने प्रवचन में महात्मा जी ने लोगों को बताया कि किस तरह देश के ऋषि-मुनि, संत-महात्मा व अनेकानेक महान लोगों ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए आम लोगों की असाधारण एवं निस्वार्थ मदद की. 

उसी तरह मानव जीवन में शालीनता का अतिशय महत्व है. शालीनता आम शिष्टाचार का अभिन्न अंग होता है. ज्ञानीजन तो कहते हैं कि शालीनता अमूल्य है और जो भी विद्यार्थी इसे अपना साथी बना लेता है, देश-विदेश हर स्थान पर उसका हर काम अपेक्षाकृत आसानी से हो जाता है. बोनस के रूप में वह सम्मान का हकदार भी बनता है. अपने आसपास नजर डालें तो आपको पता चलेगा कि आप अपने उन्हीं दोस्तों को ज्यादा पसंद करते हैं जो शालीन होते हैं अर्थात अपने व्यवहार में शिष्ट, सौम्य और विनम्र होते हैं. इसका मतलब यह नहीं कि वे दोस्त चाटुकार या कमजोर होते हैं. वे तो वाकई अंदर से शांत होते हैं और मानव व्यवहार के मामले में उन्नत. ऐसे भी किसी भी विद्यार्थी का बात-बात पर चिल्लाना, गुस्सा करना, गाली-गलौज तक करना उसके किसी परिजन, साथी या सहपाठी को कभी अच्छा नहीं लगता है. तभी तो जॉब मार्केट हो या बिज़नस वर्ल्ड या शिक्षण संस्थान, हर जगह शालीनता को बहुत अहमियत दी जाती है. दरअसल, जब आप खुद शालीन होते हैं तो आप अपने व्यवहार से अनायास ही दूसरों को भी शालीन बनने के लिए प्रेरित करते है और इस तरह दुनिया को खूबसूरत बनाने में सार्थक भूमिका अदा करते हैं. 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 16 -30 अप्रैल, 2021 अंक में प्रकाशित

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Sunday, June 20, 2021

शारीरिक थकान के साथ-साथ मानसिक तनाव दूर करते हैं शिथिलीकरण के ये 5 आसान

                          - मिलन  सिन्हा,  स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट

देश में कोरोना महामारी का प्रकोप जारी है. कोरोना संक्रमण ने शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य को भी बुरी तरह प्रभावित किया है. एक सरल और प्रभावकारी निवारण के रूप में यहां हम ऐसे योग क्रियाओं के बारे में जानेंगे, जिनके अभ्यास से शारीरिक थकान के साथ-साथ मानसिक तनाव भी दूर होगा. लोगों का विचलित मन शांत रह पायेगा और नींद भी अच्छी आयेगी. स्वयं और परिवार के स्वास्थ्य को ठीक रखने में इन योग क्रियाओं से अन्य कई लाभ भी मिलेंगे. आइए, इन योग क्रियाओं के बारे में जानते हैं.


शवासन
यह रिलैक्सेशन यानी शिथिलीकरण का प्रमुख आसन है. इसमें दोनों हाथों को शरीर के बगल में रखते हुए पीठ के बल सीधा लेट जाएं. हथेलियों को ऊपर की ओर खुला रखें. पैरों को थोड़ा अलग कर लें, जिससे उनके बीच की दूरी करीब 15 इंच रहे. आखें बंद कर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. शरीर को शव की तरह पड़ा रहने दें. श्वास को सामान्य करते हुए लयबद्ध होने दें और उसे आते-जाते महसूस करें. अब श्वास को भीतर जाते हुए और फिर बाहर आते हुए सजगता से अनुभव करें और गिनें भी. कुछ मिनटों तक ऐसा करने पर तन-मन शिथिल हो जायेगा और आप बहुत रिलैक्स्ड फील करेंगे. इसे रोजाना कम-से-कम पांच मिनट तक करें. बस लेटने का स्थान समतल हो और श्वास-प्रश्वास के प्रति सचेत रहें.


मकरासन
शिथिलीकरण के इस आसन में किसी समतल स्थान में पेट के बल सीधा लेट जाएं. अब कुहनियों के सहारे सिर और कंधे को उठाएं तथा हथेलियों पर ठुड्डी को टिका दें. आखें बंद कर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. अब श्वास-प्रश्वास पर मन को केंद्रित करते हुए उनकी गिनती शुरू कर दें. लंबी गहरी सांसें लेते हुए कुछ समय तक लगातार इस अवस्था में रहें. इस अभ्यास को भी रोजाना कम-से-कम पांच मिनट तक करें. हां, इस आसन की समयावधि जितनी ज्यादा होगी, उतना ही बेहतर फल मिलेगा. ऐसे आपको जब जरुरत महसूस हो इस क्रिया को करें.


अद्धासन
दोनों हाथों को सिर के सामने सीधा करके पेट के बल सीधा लेट जाएं. ललाट को सतह पर रखें. शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें और श्वास-प्रश्वास को दीर्घ, सहज और लयबद्ध कर लें. अब पूरी एकाग्रता से सांस को आते-जाते देखें और हो सके तो गिनती भी करें. लंबी गहरी सांसें लेते हुए जितनी देर संभव हो इस अवस्था में रहने का आनंद लें. शिथिलीकरण के इस आसन से स्लिप डिस्क सहित कई शारीरिक-मानसिक रोगों में आराम मिलता है.


मत्स्य क्रीड़ासन
बायीं ओर करवट लेकर लेट जाएं. अब ऊंगलियों को फंसा कर दोनों हथेलियों को सिरहाने ऐसे रखें कि बायीं कोहनी सिर के ऊपर की ओर रहे और दायीं कोहनी बगल में नीचे की ओर. अब दायें पैर को बगल की तरफ इस तरह मोड़ें कि दायीं कोहनी को दायीं जांघ पर रख सकें. बायें पैर को सीधा रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. इस अवस्था में जितनी देर संभव हो लेटे रहें. श्वास-प्रश्वास को दीर्घ, सहज और लयबद्ध करें. यही क्रिया दायीं करवट लेकर करें. यह स्थिति कीड़ारत मछली के समान है. आंतों को सक्रियता प्रदान करने और साइटिका दर्द से निदान में यह क्रिया बहुत कारगर है.


योगनिद्रा
शरीर और मन को शिथिल करने की इस सरल विधि में शवासन में लेट जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें और शांत मन से आंखें बंद करें. सांस सामान्य लेते रहें. मन में दोहराएं कि 'सोना नहीं है'. अब एकाग्रता से आसपास की सभी चीजों को मन की आंखों से देखना शुरू करें. कमरे के बाहर से घीरे-धीरे दरवाजा, दीवार आदि को देखते हुए भीतर आइए. कमरे के अंदर की एक-एक चीज को देखते जाइए. जहां लेटे हैं, उस स्थान को महसूस करें. 

अब अपने स्वाभाविक श्वास के प्रति सजग होकर उसके आने-जाने की ध्वनि को सुनिए. फिर एक-एक कर शरीर के सारे अंगों को मन की आंखों से देखिए. सिर से लेकर पांव तक छोटे-बड़े सभी अंगों को. पायेंगे कि आप बिलकुल शांत हो रहे हैं. इस क्रिया को करते हुए अनेक लोगों को सचमुच नींद आ जाती है, जबकि आप दोहराते हैं कि सोना नहीं है. इस क्रिया से तन-मन दोनों को अतिशय आराम मिलता है और आप अच्छा फील करते हैं.

 (hellomilansinha@gmail.com)      
      
                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर लोकप्रिय अखबार "प्रभात खबर" के सभी संस्करणों में  प्रकाशित 

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Saturday, June 12, 2021

चिंतन-लगन-उद्यम का कमाल

                                 - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

आइए आज देश के एक महान सपूत के जीवन पर थोड़ी चर्चा करते हैं और इसके माध्यम से हमारे जीवन में चिंतन-लगन-उद्यम के महत्व को समझने का प्रयास भी करते हैं.
पहले उनके जीवन से संबंधित एक रोचक प्रेरक प्रसंग. 


यह घटना देश में ब्रिटिश शासन के समय की है.
एक पैसेंजर ट्रेन में कई अंग्रेज यात्रियों के साथ-साथ कुछ भारतीय भी सफ़र कर रहे थे. उनमें  साधारण वेशभूषा में एक युवक भी था जो किसी सोच-विचार में मग्न था. अंग्रेज उसका मजाक उड़ा रहे थे, पर वह उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहा था. थोड़ी ही देर के बाद अचानक वह युवक उठा और उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी. ट्रेन रुक गई. सब लोग चकित थे कि आखिर युवक ने जंजीर क्यों खींची. अंग्रेज यात्री  तो बहुत क्रोधित थे और उस युवक को डांट रहे थे. तभी ट्रेन का गार्ड आ गए और युवक से इस तरह गाड़ी रोकने का कारण जानना चाहा. युवक ने गंभीरतापूर्वक कहा कि उसका अनुमान है कि थोड़ी दूर पर आगे रेल पटरी क्षतिग्रस्त है और गंभीर ट्रेन एक्सीडेंट की आशंका है. गार्ड और अन्य रेलकर्मी जब उस युवक को लेकर रेल पटरी पर थोड़ी दूर गए तो यह देखकर अवाक रह गए कि रेल पटरी सचमुच क्षतिग्रस्त है. अगर ट्रेन को रोका नहीं जाता तो गंभीर दुर्घटना निश्चित थी जिसमें न जाने जान-माल की कितनी बड़ी क्षति होती. अंग्रेज यात्रियों के साथ-साथ जब गार्ड ने उस युवक की अदभुत समझ की तारीफ़ की और पूछा कि आखिर उसे इसका पूर्वाभास कैसे हुआ तो  युवक ने बताया कि ट्रेन की गति में अंतर आने एवं ट्रेन के चलने पर पटरी से आनेवाली ध्वनि में फर्क पर गौर करने से उसे आगे खतरे का अनुमान हो गया. गार्ड के पूछने पर उस युवक ने बताया कि वह एक इंजीनियर है और उसका नाम डॉ॰ मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया है. युवक का परिचय पाते ही उनपर कटाक्ष करनेवाले अंग्रेजों को भी शर्मिंदगी महसूस हुई और उन्होंने सॉरी कहा. डॉ॰ विश्वेश्वरैया  का उत्तर था कि आप सब ने मुझे क्या कहा, मुझे तो कुछ भी मालूम नहीं. मैं तो चिंतन कर रहा था. 


एम. विश्वेश्वरैया का जन्म
तत्कालीन मैसूर राज्य के चिक्काबल्लापुर ताल्लुक के मुदेन हल्ली गांव में 15 सितंबर 1861 को हुआ था. उनके पिता संस्कृत के विद्वान् थे और माता एक धार्मिक घरेलू महिला. 12 वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहावसान हो गया. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए जूनियर छात्रों को ट्यूशन देकर पैसे जुटाने पड़े. अपने गृह स्थान में स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने बंगलोर के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया. लगन के पक्के विश्वेश्वरैया ने एकाधिक  परेशानियों के बावजूद पढ़ाई में कभी कमी नहीं की और ग्रेजुएशन की परीक्षा में अव्वल आए. इसी कारण मैसूर सरकार की आर्थिक सहायता से उन्होंने पूना में इंजीनियरिंग की पढ़ाई उत्तम अंकों से पूरी की. इस बेहतरीन रिजल्ट के कारण उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया.


बाद में जब वे मैसूर राज्य में सेवा दे रहे थे,
उस समय राज्य की हालत खराब थी, विशेषकर  अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, खेती, सिंचाई आदि के मामले में. इसे सुधारने हेतु उन्होंने राज्य सरकार को अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिए. उनकी देखरेख में मैसूर के कृष्ण राजसागर बांध का निर्माण हुआ जब कि उस समय देश में सीमेंट का उत्पादन नहीं होता था. उनके असाधारण  गुणों के कारण 1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री  नियुक्त  किया. विश्वेश्वरैया शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे और अशिक्षा को  लोगों की गरीबी   व कठिनाइयों का मुख्य  कारण मानते थे. अतः उन्होंने अपने सेवाकाल में मैसूर राज्य में स्कूलों  की संख्या  को दोगुने से ज्यादा बढ़ा दिया. इतना ही नहीं इसी अवधि में उन्होंने कई कृषि, इंजीनियरिंग व औद्योगिक कालेज  भी खुलवाए. पचास के दशक में बिहार के मोकामा (पटना जिला) में गंगा नदी पर राजेन्द्र सेतु निर्माण के दौरान उन्हें बुलाया गया. उस समय  उनकी उम्र करीब 92 वर्ष थी. तपती धूप थी और साइट पर पहुंचना कष्टकर था, फिर भी वे वह साइट पर गए और इंजीनियरों गाइड किया. वे बराबर कहते थे कि  कार्य जो भी हो उसे  इस ढंग से किया जाय  कि वह सबसे उत्कृष्ट हो. 1955 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. 101 वर्ष की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा. उनके जन्मदिन को  देशभर में इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है. सचमुच, विश्वेश्वरैया चिंतन, लगन और उद्यम के मामले में असाधारण थे. 

  (hellomilansinha@gmail.com)      

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 01-15 मई, 2021 अंक में प्रकाशित

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