- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
एकाग्रता की शक्ति से छात्र-छात्राएं अपरिचित नहीं हैं. एकाग्रता की मिसाल रहे पांडू पुत्र महान धनुर्धर अर्जुन, महात्मा गौतम बुद्ध, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और अल्बर्ट आइंस्टीन सरीखे महान लोगों के विषय में भी विद्यार्थीगण बहुत कुछ जानते हैं. शैक्षणिक संस्थानों में आयोजित मेरे मोटिवेशन और वेलनेस सेशन में बहुधा एक सवाल सामने आता है कि हम पढ़ना तो चाहते हैं, पढ़ने बैठते भी हैं, पर पढ़ाई पर कंसन्ट्रेट नहीं कर पाते हैं. कई उदाहरणों के माध्यम से मैं उन्हें समझाने का प्रयास करता हूँ और एकाग्रता वृद्धि के उपाय भी बताता हूँ. आइए जानते हैं.
सबको मालूम है कि सामान्य रूप से जब सूरज की किरणें एक कागज़ पर पड़ती है, तो उस पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन जब किरणों को मैगनिफाइंग ग्लास से एक बिंदु पर फोकस किया जाता है, तो वही कागज जलने लगता है. यह एकाग्रता की शक्ति है. एक और उदाहरण लेते हैं. एक विद्यार्थी जो एकाग्रता की समस्या से परेशान रहता था उसे एक शिक्षक ने उसके सहपाठियों के सामने एक भरे हुए पानी के ग्लास को एक हाथ से पकड़ कर मैदान का एक चक्कर लगाने को कहा और यह हिदायत दी कि चक्कर लगाते वक्त ग्लास से पानी का एक बूंद भी नीचे न गिरे. अगर गिरेगा तो फिर एक चक्कर लगाना पड़ेगा. उस विद्यार्थी ने इस टास्क को सहर्ष स्वीकार किया. टास्क ऐसे तो आसान प्रतीत होता था, लेकिन एक बूंद भी पानी नीचे न गिरे, इस शर्त को निभाना आसान नहीं था. फिर भी उस विद्यार्थी ने उस टास्क को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया. सबने उसे शाबाशी और बधाई दी. अब शिक्षक ने उस विद्यार्थी से पूछा कि चक्कर लगाते वक्त क्या उसने यह सुना कि सहपाठी-दोस्त उसे चीयर कर रहे थे या उसने यह गौर किया कि आकाश में चिड़िया उड़ रही है या मैंने इस बीच उसके दोस्तों से क्या-क्या बात की? विद्यार्थी ने कहा कि मुझे तो यह सब कुछ पता ही नहीं चला, क्यों कि मैं तो बस एक पॉइंट पर एकाग्रचित्त था कि पानी ग्लास से छलके नहीं और मैं चक्कर पूरा कर सकूँ. इस पर शिक्षक ने सभी विद्यार्थियों को बस इतना ही कहा कि ध्यान भटकाने वाली बातों को नजरअंदाज करने और सिर्फ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान केन्द्रित करने से आप सब एकाग्रता की शक्ति से लैस हो सकते हैं.
इस विषय पर स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "मानव मन की शक्ति की कोई सीमा नहीं है. वह जितना ही एकाग्र होता है, उतनी ही उसकी शक्ति एक लक्ष्य पर केन्द्रित होती है. मन के एकाग्र हो जाने पर समय का कोई ज्ञान नहीं रहता. जितना ही समय का ज्ञान जाने लगता है, हम उतने ही एकाग्र होते जाते हैं. हम अपने दैनिक जीवन में भी देख पाते हैं कि जब हम कोई पुस्तक पढ़ने में तल्लीन रहते हैं, तब समय की ओर हमारा बिल्कुल ध्यान नहीं रहता है. जब हम पढ़कर उठते हैं, तो अचरज होता है कि इतना समय बीत गया. सारा समय मानो एकत्र होकर वर्तमान में एकीभूत हो जाता है. इसीलिए कहा गया है कि अतीत, वर्तमान और भविष्य आकर जितना ही एकीभूत होते जाते हैं, मन उतना ही एकाग्र होता जाता है. एकाग्रता समस्त ज्ञान का सार है, उसके बिना कुछ नहीं किया जा सकता है. इच्छा शक्ति के द्वारा मन की एकाग्रता साधित होती है. किसी एक विषय पर भी मन की एकाग्रता हो जाने से वह एकाग्रता जिस विषय पर चाहो उस पर लगा सकते हो."
देखा गया है कि रोजाना एकाग्रता का छोटा-बड़ा कोई अभ्यास करने पर मन की चंचलता कम होती है और मन को एकाग्रचित्त रखना आसान. एकाग्रता में उतरोत्तर वृद्धि के लिए छात्र-छात्राएं प्राणायाम और मेडीटेशन को अपनी दिनचर्या में शामिल करके असीमित लाभ पा सकते हैं. ऐसा करना मुश्किल भी नहीं है. रोज सुबह-शाम 10-10 मिनट से शुरू करें. लाभ मिलने लगेगा तो आप स्वतः इसे बढ़ाकर 20 से 30 मिनट तक करने लगेंगे. इसके लिए सुबह शौच आदि के पश्चात एवं नाश्ते से पहले तथा शाम को नाश्ते से पहले का समय उपयुक्त होगा. प्राणायाम में सबसे आसान अभ्यास अनुलोम-विलोम से शुरू करें. त्राटक क्रिया का नियमित अभ्यास भी बहुत लाभकारी होता है. प्राणायाम के बाद मेडीटेशन करें. इसमें सुखासन यानी आराम से पालथी मारकर बैठ जाएं. आंख बन कर लें. प्रारंभ में कुछ दिनों तक बस अपनी सांस को आते-जाते देखें, मन की आँखों से. मन भटके तो उसे फिर से वापस अभीष्ट कार्य में लगाएं. मेडीटेशन के नियमित अभ्यास से मन का भटकना बिल्कुत खत्म या बहुत कम हो जाएगा और एकाग्रता बढ़ती जाएगी.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 10. 01.2021 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 10. 01.2021 अंक में प्रकाशित
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