Friday, March 26, 2021

बहानेबाजी - एक बड़ी कमजोरी

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

ऐसा देखा गया है कि सक्षम होते हुए भी अनेक विद्यार्थी बहाना बनाने की आदत के कारण सामान्य सफलता भी हासिल नहीं कर पाते हैं. ज्ञानीजन कहते हैं कि यह लगातार असफल होनेवाले लोगों की एक सामान्य आदत होती है. ऐसे लोगों के पास  सही काम नहीं करने या उसे अधूरा छोड़ने के लिए एक बहाना जरुर होता है.
टीचर ने कोई टास्क या असाइनमेंट दिया, लेकिन विद्यार्थी ने नहीं किया या अधूरा किया. कारण पूछने पर कोई बहाना बना दिया. मसलन तबीयत खराब हो गई  थी या माता-पिता ने एक जरुरी काम से बाहर भेज दिया था या  ऐसे न जाने कितने बहाने. अमूमन, टीचर इसका सत्यापन करने हेतु घरवालों से पूछताछ नहीं करते हैं. बस विद्यार्थी को समझा-बुझाकर या डांट-फटकार कर इस चेतावनी के साथ छोड़ देते हैं कि आगे से ऐसी गफलत न करें. परीक्षा में अच्छा या अपेक्षित अंक या ग्रेड हासिल न कर पाने पर भी कई छात्र-छात्राएं विविध प्रकार के बहानों का सहारा लेते हैं. ऐसे विद्यार्थियों के लिए घर और बाहर कहीं भी गलत या अवांछित काम करने और पकड़े जाने पर भी कोई-न-कोई बहाना बनाना मामूली बात है. क्या बहाना बनाना वाकई मामूली बात है?  बिलकुल नहीं. यह तो गंभीर मामला है. अतः विद्यार्थियों के लिए बहानेबाजी से बचे रहना जरुरी है.  आइए, इसके पांच अहम दुष्परिणामों  पर चर्चा करते हैं. 

  
1. झूठ का सहारा: बहाना बनाने का सीधा मतलब है सत्य को छुपाने की कोशिश करना. अर्थात झूठ का सहारा लेना. फिर एक झूठ को छुपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलना और अपने ही बुने जाल में देर-सवेर बुरी तरह फंसना. ऐसा होना स्वाभाविक है.  फिर भी कुछ छात्र-छात्राएं तात्कालिक रूप से खुद को सही साबित करने के लिए ऐसा करते हैं. दरअसल वे वास्तविकता को तत्क्षण स्वीकार कर छोटी असुविधा का सामना करने की जगह बड़ी समस्या का बीजारोपण करते हैं. 


2. मेहनत से जी चुराना: असफलता या खराब रिजल्ट आदि  के मामले में यथार्थ से मुंह मोड़ने और उसे नकारने  का अभिप्राय यह है कि आप आगे चुनौतियों का सामना करके सफल होने से पीछे हट रहे हैं. इसका अर्थ यह भी है कि आप मेहनत करने से भाग रहे हैं, जब कि आपको भी मालूम है कि अपेक्षित मेहनत के बिना अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सकता है. जेम्स  पेनी कहते हैं, "मैं बहानेबाजी में यकीन नहीं करता. मैं जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत को प्रमुख कारक मानता हूँ."   


3. आत्मविश्वास में कमी: बहानेबाजी से धीरे-धीरे आप उन कार्यों को भी लंबित रखते जाते हैं जो आपके लिए जरुरी और महत्वपूर्ण हैं. मसलन कोई विद्यार्थी जब अपनी पढ़ाई पूरा न करने के लिए बहाना बनाता है, तब वह उस कार्य को टालता है और इस तरह अपनी पढ़ाई के बैकलॉग को बढ़ाता जाता है. यकीनन इस बड़े बैकलॉग को परीक्षा से पहले अच्छी तरह पूरा करना बहुत ही मुश्किल होता है, कई बार असंभव भी. परिणामतः  ऐसे विद्यार्थी परीक्षा से पहले अनावश्यक तनाव से ग्रस्त रहते हैं और उनका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है. परीक्षाफल खराब होने की संभावना भी बढ़ जाती है. सोचिए, जिस विद्यार्थी के आत्मविश्वास में कमी रहेगी, उसके लिए जीवन की छोटी-बड़ी समस्याओं को हल करना कितना मुश्किल होगा? 


4. विश्वसनीयता का संकट: बहानेबाजी का एक बड़ा दुष्परिणाम विश्वसनीयता के संकट के रूप में सामने आता है. सचमुच, विश्वसनीय होने में बहुत समय लगता है, लेकिन बहानेबाजी के कारण वह एक झटके में बिखर जाता है. जाने-अनजाने गलती हो जाय और उसे तुरत मान लें तथा बता दें तो अधिकांश मामलों में टीचर-अभिभावक आदि गलती को माफ या नजरअंदाज कर  देते हैं, लेकिन बहाना बनाकर खुद को बचाने का प्रयास करनेवालों को यह लाभ कदाचित ही मिल पाता है. सच तो यह है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था ऐसे लोगों को कोई महत्वपूर्ण काम या जिम्मेदारी नहीं देना चाहते, जो आदतन बहानेबाज हों. 


5. गलत काम में संलिप्तता:  इस आदत से ग्रस्त विद्यार्थी सरल और पारदर्शी जिंदगी नहीं जी पाते हैं. इससे उनकी सोच और सेहत बहुत दुष्प्रभावित होती है. उन्हें दोस्त भी वैसे ही मिल जाते हैं. फिर तो वे सही और सीधे रास्ते को छोड़कर अनायास ही गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं. फर्स्ट टाइम जुर्म करनेवालों की आम दिनचर्या पर गौर करें तो एक बात कॉमन मिलेगी और वह है बहानेबाजी. हां, कुछ विद्यार्थी सही समय पर मिलनेवाली काउंसलिंग और कई बार पहली बार ठोकर लगने पर सुधर जाते हैं. इस कारण जीवन में आगे वे भी बेहतरी और सफलता के हकदार बनते हैं. 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 24.01.2021 अंक में प्रकाशित
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Friday, March 19, 2021

विचार प्रबंधन की अहमियत

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

कहा जाता है कि दिनभर में हमारे दिमाग में हजारों छोटे-बड़े विचार आते हैं. उनमें से अधिकतर चले भी जाते हैं. है न अचरज की बात. एक मिनट के लिए आख बंद कर आते-जाते विचारों को मन की आँखों से देखें-जांचें, आपको खुद पता चल जाएगा.  खैर, विचार कई  प्रकार  के हो सकते हैं. अच्छे भी, बुरे भी, काम के, बिना काम के भी. लेकिन सबका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रिश्ता मोटेतौर पर हमारे मानस और कार्यकलाप से होता है.  महत्वपूर्ण यह है कि इन हजारों विचारों में से हम किन विचारों से प्रभावित होकर उस पर अमल करना चाहते हैं और अंततः मुस्तैदी से करते हैं.
मार्क ट्वेन कहते हैं कि हर व्यक्ति के जीवन में दो दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं. पहला उसका जन्मदिन और दूसरा वह दिन जब वह सच्चे अर्थों में यह जान पाता है कि उसका जन्म क्यों हुआ है. और जॉर्ज बर्नार्ड शॉ  कहते हैं कि बिना बदलाव के विकास संभव नहीं है और बदलाव लाने का मूल मंत्र यही है कि सबसे पहले अपने विचारों को बदलें. अतः बुरे विचारों को छोड़ अच्छे विचारों से खुद को जोड़ते जाना समझदार और जानकार बनने का अच्छा माध्यम है. जीने का सही अर्थ भी.  


यह सौ फीसदी सही है कि विद्यार्थी जीवन कई तरह के परिवर्तन से होकर गुजरता है.
हर दिन कुछ नया जानने - सीखने का अवसर मिलता है. इस क्रम में असंख्य विचार विद्यार्थियों के मन में भी आते हैं. रोज एक छोटा-मोटा विचार मंथन चलता रहता है. यह विचार सही है या वह; इसे अमल में लाएं या उसे. कहने का मतलब यह कि छात्र-छात्राओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है सही विचार को चुनने और उसे अमल में लाने की. हां, विचारों को लेकर स्पष्टता होने के बावजूद कई बार यह परेशानी भी होती है कि विचारों का प्रबंधन कैसे करें, क्यों कि एक साथ कई विचार अच्छे और अमल में लाने योग्य प्रतीत होते हैं. मसलन सेहत, अध्ययन, मनोरंजन, खेलकूद, आराम से संबंधित कई  विचार अगर एक साथ किसी विद्यार्थी के मन में उलझन पैदा करने लगे तो पहले किसे तरजीह देंगें. अब विचार प्रबंधन  की दृष्टि से देखें तो सेहत सबसे जरुरी है. अगर स्वस्थ नहीं रहेंगें तो  ठीक से अध्ययन कैसे कर पायेंगे; अध्ययन नहीं करेंगे तो भविष्य कैसे अच्छा होगा. हां,  मनोरंजन आदि भी सुखी जीवन के लिए जरुरी है. अतः अच्छे विद्यार्थी सेहत को ठीक रखते हुए अध्ययन को साधने को  बेहतर मानेंगे. साथ में  मनोरंजन, खेलकूद  और आराम को भी वे अपनी दिनचर्या में शामिल करेंगे. इस प्रक्रिया को अपनाते हुए वे धीरे-धीरे उत्तम विचार सम्पन्नता, प्रबंधन और कार्यान्वयन में कुशलता प्राप्त करते जाते हैं, जो भविष्य में उनके जीवन मूल्य और  व्यक्तित्व को परिभाषित व परिलक्षित करते हैं. पर क्या सभी विद्यार्थी ऐसा करते हैं? दुःख की बात  है कि कई विद्यार्थी इसे अहमियत नहीं देते. लिहाजा वे इसका खामियाजा भुगतते रहते हैं. 


नार्मन विन्सेंट पील कहते हैं कि जिस दुनिया में हम रहते हैं वह दुनिया मूल रूप से बाहरी स्थितियों या परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होती, बल्कि हमारे दिमाग में आदतन रहने वाले विचारों से निर्धारित होती है. रोम के सबसे श्रद्धेय सम्राट और  महान चिन्तक मार्कस ऑरेलियस  ने बहुत मार्के की बात कही थी कि किसी आदमी की जिंदगी उसके विचारों से बनती है. सच कहें तो हम अपने गलत विचारों से खुद को  बीमार बना सकते हैं या अच्छे और हेल्दी विचारों से बीमारी से खुद को मुक्ति दिला सकते हैं. पॉजिटिव विचार हमारे आसपास ऐसा माहौल बना देते हैं जिससे अनुकूल सिचुएशन बनने लगता है. इसके विपरीत अगर हम नेगेटिव विचार को अपनाते हैं तो अनुकूल सिचुएशन को भी प्रतिकूल होने में देर नहीं लगती है. 


दरअसल, जो विद्यार्थी सही विचार को चुनने और उसे अमल में लाने की चुनौती पर सफलता पा लेता है, उसके लिए  प्रगति  के मार्ग पर अग्रसर होना मुश्किल नहीं होता, क्यों कि उनके विचार  ही उनकी जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं.
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने देश को स्वतंत्र करने का विचार कर लिया और उसके लिए जी-जान से लग गए. उन्होंने उस विचार को मूर्त रूप देने के लिए आजाद हिन्द फौज जैसी विशाल सेना तैयार कर ली और 1944 में ही देश के पूर्वोत्तर भाग पर तिरंगा लहरा दिया. नेताजी के जीवनवृत्त पर नजर डालें तो आप पायेंगे कि उनका विचार प्रबंधन अदभुत था. लिहाजा उन्होंने जीवन में जब भी जिस विचार को अपनाया, उसे कार्यान्वित  करने में कभी पीछे नहीं रहे. कहने का आशय यह कि छात्र-छात्राएं अपने विचारों का कुशल प्रबंधन और कार्यान्वन करना सीख लें, तो उत्तम  चेतना और सफलता हासिल कर सकते हैं.

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Friday, March 12, 2021

एकाग्रता में वृद्धि है जरुरी

                                  - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

एकाग्रता की शक्ति से छात्र-छात्राएं अपरिचित नहीं हैं. एकाग्रता की मिसाल रहे पांडू पुत्र महान धनुर्धर अर्जुन, महात्मा गौतम बुद्ध, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और अल्बर्ट आइंस्टीन सरीखे महान लोगों के विषय में भी विद्यार्थीगण बहुत कुछ जानते हैं.
शैक्षणिक संस्थानों में आयोजित मेरे मोटिवेशन और वेलनेस सेशन में बहुधा एक सवाल सामने आता है कि हम पढ़ना तो चाहते हैं, पढ़ने बैठते भी हैं, पर पढ़ाई पर कंसन्ट्रेट नहीं कर पाते हैं. कई उदाहरणों के माध्यम से मैं उन्हें समझाने का प्रयास करता हूँ और एकाग्रता वृद्धि के उपाय भी बताता हूँ. आइए जानते हैं. 


सबको मालूम है कि सामान्य रूप से जब सूरज की किरणें एक कागज़ पर पड़ती है, तो उस पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन जब किरणों को मैगनिफाइंग ग्लास से एक बिंदु पर फोकस किया जाता है, तो वही कागज जलने लगता है. यह एकाग्रता  की शक्ति है. एक और उदाहरण लेते हैं.
एक विद्यार्थी जो एकाग्रता  की समस्या से परेशान रहता था उसे एक शिक्षक ने उसके सहपाठियों के सामने एक भरे हुए पानी के ग्लास को एक हाथ से पकड़ कर मैदान का एक चक्कर लगाने को कहा और यह हिदायत दी कि चक्कर लगाते वक्त ग्लास से पानी का एक बूंद भी नीचे न गिरे. अगर गिरेगा तो फिर एक चक्कर लगाना पड़ेगा. उस विद्यार्थी ने इस टास्क को सहर्ष स्वीकार किया. टास्क ऐसे तो आसान प्रतीत होता था, लेकिन एक बूंद भी पानी नीचे न गिरे, इस शर्त को निभाना आसान नहीं था. फिर भी उस विद्यार्थी ने उस टास्क को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया. सबने उसे शाबाशी और बधाई दी. अब शिक्षक ने  उस विद्यार्थी से पूछा कि चक्कर लगाते वक्त क्या उसने यह सुना कि सहपाठी-दोस्त उसे चीयर कर रहे थे या उसने यह गौर किया कि आकाश में चिड़िया उड़ रही है या मैंने इस बीच उसके दोस्तों से क्या-क्या बात  की? विद्यार्थी ने कहा कि मुझे तो यह सब कुछ पता ही नहीं चला, क्यों कि मैं तो बस एक पॉइंट पर एकाग्रचित्त था कि पानी ग्लास से छलके नहीं और मैं चक्कर पूरा कर सकूँ. इस पर शिक्षक ने सभी विद्यार्थियों को बस इतना ही कहा कि ध्यान भटकाने वाली बातों को नजरअंदाज करने और सिर्फ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान केन्द्रित करने से आप सब एकाग्रता की शक्ति से लैस हो सकते हैं. 


इस विषय पर स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "मानव मन की शक्ति की कोई सीमा नहीं है. वह जितना ही एकाग्र होता है, उतनी ही उसकी शक्ति एक लक्ष्य पर केन्द्रित होती है. मन के एकाग्र हो जाने पर समय का कोई ज्ञान नहीं रहता. जितना ही समय का ज्ञान जाने लगता है, हम उतने ही एकाग्र होते जाते हैं.
हम अपने दैनिक जीवन में भी देख पाते हैं कि जब हम कोई पुस्तक पढ़ने में तल्लीन रहते हैं, तब समय की ओर हमारा बिल्कुल ध्यान नहीं रहता है. जब हम पढ़कर उठते हैं, तो अचरज होता है  कि इतना समय बीत गया. सारा समय मानो एकत्र होकर वर्तमान में एकीभूत हो जाता है. इसीलिए कहा गया है कि अतीत, वर्तमान और भविष्य आकर जितना ही एकीभूत होते जाते हैं, मन उतना ही एकाग्र होता जाता है. एकाग्रता समस्त ज्ञान का सार है, उसके बिना कुछ नहीं किया जा सकता है. इच्छा शक्ति के द्वारा मन की एकाग्रता साधित होती है. किसी एक विषय पर भी मन की एकाग्रता हो जाने से वह एकाग्रता जिस विषय पर चाहो उस पर लगा सकते हो."


देखा गया है कि रोजाना एकाग्रता का छोटा-बड़ा कोई अभ्यास करने पर मन  की चंचलता कम होती है और मन को एकाग्रचित्त रखना आसान. एकाग्रता में उतरोत्तर वृद्धि के लिए छात्र-छात्राएं  प्राणायाम और मेडीटेशन को अपनी दिनचर्या में शामिल करके असीमित लाभ पा सकते हैं. ऐसा करना मुश्किल भी नहीं है.
रोज सुबह-शाम 10-10 मिनट से शुरू करें. लाभ  मिलने लगेगा तो आप स्वतः इसे बढ़ाकर 20 से 30 मिनट तक करने लगेंगे. इसके लिए सुबह शौच आदि के पश्चात एवं नाश्ते से पहले तथा शाम को नाश्ते से पहले का समय उपयुक्त होगा. प्राणायाम में सबसे आसान अभ्यास अनुलोम-विलोम से शुरू करें. त्राटक क्रिया का नियमित अभ्यास  भी बहुत लाभकारी होता है. प्राणायाम के बाद मेडीटेशन करें. इसमें सुखासन यानी आराम से पालथी मारकर बैठ जाएं. आंख बन कर लें. प्रारंभ में कुछ दिनों तक बस अपनी सांस को आते-जाते देखें, मन की आँखों से. मन भटके तो उसे फिर से वापस अभीष्ट कार्य में लगाएं. मेडीटेशन के नियमित अभ्यास से मन का भटकना बिल्कुत खत्म या बहुत कम हो जाएगा और एकाग्रता बढ़ती जाएगी. 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 10. 01.2021 अंक में प्रकाशित
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Friday, March 5, 2021

असफलता को भी एन्जॉय करें

                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सफलता-असफलता विद्यार्थी जीवन का भी एक अभिन्न हिस्सा है. उनकी चर्चाओं में यह एक अहम विषय होता है.
आम तौर पर छात्र-छात्राएं  अपनी-अपनी सफलता को खूब एन्जॉय करते हैं. घर-परिवार और मित्रों के साथ पार्टी में खुशी का आनंद उठाते हैं. लेकिन आपने अपने किसी साथी-सहपाठी को अपनी असफलता को सेलिब्रेट या एन्जॉय करते हुए देखा है? शायद नहीं. असफलता और सेलिब्रेशन?  यह तो सोच से बाहर की बात है. सामान्यतः असफलता के साथ तो डांट-फटकार, गम-मातम, चिंता-तनाव आदि का ही अटूट रिश्ता रहा है.  प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक रोबर्ट हेरोल्ड शुलर  ने  एक बड़ी अच्छी बात कही है, जो हर विद्यार्थी के  लिए विचारणीय है.  वे कहते हैं कि "असफलता  का  ये  मतलब  नहीं  है  कि  आप  असफल   हैं.  इसका  बस  ये  मतलब  है  कि  आप  अभी  तक  सफल  नहीं  हुए हैं." आप लोगों ने प्रसिद्ध क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी की बायोपिक  तो जरुर देखी होगी. उसके एक सीन में धोनी को अपनी असफलता को सेलिब्रेट करते हुए देखा जा सकता है. उस सीन में धोनी यह कहते हैं कि वे इस असफलता को भूलना नहीं चाहते हैं. अतः सेलिब्रेट कर रहे हैं. दोस्तों को समोसा और मिठाई खिला रहे हैं. असफलता के मौके पर न केवल शांत व संतुलित रहनेवाले, बल्कि उसे एन्जॉय करनेवाले धोनी को कैप्टेन कूल के नाम से संबोधित करने के पीछे शायद यह एक बड़ा कारण रहा है. बाद के वर्षों में धोनी ने क्रिकेट के इतिहास में कीर्तिमान के जो-जो पन्ने जोड़े उससे भी आप सभी पूर्णतः परिचित हैं.

 
धोनी की तरह ही अनेक विद्यार्थी अपने-अपने जीवन में एक स्पष्ट और बड़ा लक्ष्य लेकर अपने काम में जुटे रहते हैं. खूब प्रयास करते हैं, अपने जानते कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, लेकिन कई बार अपेक्षित सफलता से बस एक कदम दूर रह जाते हैं. परिजन-मित्रगण सोचते हैं कि इस विद्यार्थी ने यथोचित प्रयास नहीं किया. उनके दृष्टिकोण से वे सही हो सकते हैं, लेकिन जिसने प्रयास किया वह बेहतर जानता है कि उसमें कहां कमी रह गई या किसी अन्य परिस्थितिवश सफलता हासिल नहीं हो पाई. अक्सर प्रतियोगिता परीक्षाओं में ऐसा होता आया है. ऐसे में मन को दुःख से भरने के स्थान पर अतिरिक्त उत्साह से भरने की जरुरत होती है.
सोचना यह अच्छा होता है कि 100,  200 या 400 मीटर रेस के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में धावक कितने दिन कितने घंटे नियमित मेहनत करता है, लेकिन सफलता-असफलता के बीच अंतर कई बार एक सेकंड से भी कम होता है. तो क्या असफल होनेवाले धावक आगे रेस में शामिल नहीं होते हैं? बिलकुल होते हैं और इस बार ज्यादा तैयारी के साथ-साथ बड़े संकल्प और उत्साह के साथ शामिल होते हैं, क्यों कि वे लाइफ को एन्जॉय करने में विश्वास करते हैं, जहां सफलता-असफलता दोनों आते-जाते रहते हैं. 

 
विश्वइतिहास में ऐसे लाखों लोगों की महान सफलता की कहानी दर्ज है, जिन्होंने एक नहीं, बल्कि कई बड़ी असफलताओं के बावजूद अकल्पनीय आविष्कार, अन्वेषण, सामाजिक  कार्य आदि किए.
बेस्ट सेलर बुक "थिंक एंड ग्रो रिच" के लेखक नेपोलियन हिल तो कहते हैं कि "अधिकतर महान लोगों ने अपनी सबसे बड़ी सफलता अपनी सबसे बड़ी विफलता के एक कदम आगे हांसिल की है." वे यह भी कहते हैं कि "असफलता, आपको बड़ी जिम्मेदारियों के लिए तैयार करने का प्रकृति का तरीका है." सच्चाई यह है कि ऐसे सभी लोगों ने किसी-न-किसी रूप में इन बातों को मन से माना कि एकाधिक असफलताओं के बावजूद लोगों को निराश या हताश होकर मैदान नहीं छोड़ना चाहिए. इसके बजाय उस पल को भी एन्जॉय करना चाहिए. दरअसल, असफल होने पर कोई नहीं हारता. वास्तव में हारता तो वह तब है, जब उसका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है और परिणाम स्वरुप वह यथोचित चेष्टा करना भी छोड़ देता है. कहते हैं न कि  जो व्यक्ति असफलता के अंधेरे में भी स्वयं दीपक बनकर अपनी राह तलाशने का हर संभव प्रयास करता है, सफलता उसी का कदम चूमती है. सभी छात्र-छात्राएं अगर देश-विदेश के हजारों महान लोगों में से अगले 4-5 महीनों में  महान स्वतंत्रता सेनानी व विचारक बाल गंगाधर तिलक, पूर्व राष्ट्रपति व वैज्ञानिक ए पी जे अब्दुल कलाम, एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब, महान आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन और फोर्ड कंपनी के संस्थापक व उद्योगपति हेनरी फोर्ड जैसे 4-5 लोगों की बायोग्राफी पढ़ें, तो उन्हें जीवनपथ पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा और सीख दोनों मिलेगी. आशा है आप जरुर पढ़ेंगे और जीवन में छोटी-बड़ी असफलता को भी एन्जॉय करते रहेंगे. 

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Tuesday, March 2, 2021

समय है खुद को प्रूव करने का

                         - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

करीब ग्यारह माह के अभूतपूर्व संकट काल के बाद देश में परिस्थिति सामान्य हो चली है. देश के चिकित्सा वैज्ञानिकों और रेगुलेटरी एक्सपर्ट्स के शानदार प्रयास के फलस्वरूप दो कोरोना वैक्सीन के उत्पादन और अब टीकाकरण के देशव्यापी सफल अभियान से हमारा देश कोविड-19 महामारी से लड़ाई के अंतिम मुकाम तक पहुँच गया है. निश्चित रूप से देश के प्रधानमंत्री और उनकी टीम के नेतृत्व में यह सब कार्य समुचित ढंग से संचालित हो रहा है. ऐसी अनुकूल स्थिति में स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में सामान्य रूप से अध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ परीक्षाओं का आयोजन स्वाभाविक है. सीबीएसई की दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा की तारीख तो घोषित भी हो चुकी है. प्रांतीय बोर्ड की परीक्षाएं भी जून तक संपन्न होने की पूरी संभावना है. कहने का अर्थ यह कि पिछले कई महीनों में छात्र-छात्राओं ने जो स्टडी की है उसे और बेहतर करते हुए परीक्षा में उसे प्रेजेंट करने का अवसर आ चुका है यानी खुद को प्रूव करने का समय आ गया है.  सवाल है कि अगले दो-ढाई महीने में किन-किन बातों पर फोकस करें जिससे कि परीक्षा में बेहतर परफॉर्म कर सकें?
फिलहाल तो बस निम्नलिखित तीन बातों पर 100 फीसदी फोकस करें. 

 
टाइम मैनेजमेंट की अहमियत से सभी विद्यार्थी कमोबेश परिचित हैं. परीक्षा शुरू होने से पहले अब कितने दिन बाकी है, उसे गिन लें. जितने विषयों की परीक्षा है, मोटे तौर पर एक-एक विषय के लिए दिन व समय आवंटित कर दें. मसलन अगर साठ दिन के समयावधि में छह विषयों की फाइनल तैयारी करनी है, तो एक विषय पर 10 दिन का समय मिलता है. फिर अगर कोई विद्यार्थी दिनभर के 24 घंटे में औसतन 8 घंटे अध्ययन करता है, तो एक विषय को कुल 80 घंटे मिलते हैं. अब देखना यह है कि इन 80 घंटों में यदि वे पूरी तन्मयता से अध्ययन करें तो क्या उस विषय को अच्छे तरीके से कवर कर पाना संभव होगा. यह एक्सरसाइज हर विद्यार्थी को हरेक विषय की तैयारी के सन्दर्भ में ध्यान में रखना होगा. एक बार इसमें स्पष्टता आ जाएगी तो आगे टाइम मैनेजमेंट बेहतर हो पायेगा. 


खासकर इस दो-ढाई महीने की अवधि में हेल्थ को एकदम दुरुस्त रखना होगा. देखा गया है कि अध्ययन के बोझ या तनाव के कारण हेल्थ के मामले में बड़ी चूक अनायास ही हो जाती है, खासकर उन विद्यार्थियों के साथ जो अपने परिवार से दूर हॉस्टल या मेस में रहते हैं. घर में रह कर पढ़ाई करनेवाले विद्यार्थियों का ध्यान सामान्यतः उनकी माताएं-बहनें रख लेती हैं. कहने की जरुरत नहीं कि इस दौरान खानपान, व्यायाम और अच्छी नींद बहुत जरुरी होता है. समुचित ऊर्जा के बगैर उत्साह और तन्मयता से अध्ययन बहुत ही मुश्किल होता है, कई बार तो असंभव भी हो जाता है. और अगर लापरवाही के कारण बीमार पड़ गए तो फिर सारा रूटीन ही अस्त-व्यस्त हो जाता है. अतः पौष्टिक और सुपाच्य खाना खाएं. अपनी इम्युनिटी को मजबूत बनाए रखने के लिए जंक फ़ूड, कोल्ड ड्रिंक्स आदि से बचें. साथ ही किसी भी नशे की चीज से एकदम दूर रहें. हां, सुबह उठ कर स्टडी करें. उस समय दिमाग फ्रेश रहता है और पढ़ी हुई चीजें अच्छी तरह याद रहती है.


इस अवधि में अपने माइंड को मैनेज करना बहुत ही जरुरी है. मन चंचल होता है और कई बार अवांछित बातों में भी उलझता रहता है. अपने बनाए रूटीन को अच्छी तरह फॉलो करने की बात  हो या अध्ययन में तन्मयता की बात, मन भटकता रहता है. मन को मनाना और उसे निर्धारित कार्य में लगाना खुद विद्यार्थियों को ही करना पड़ेगा. उन्हें इस बात को बहुत अच्छी  तरह समझना और आत्मसात करना पड़ेगा कि अगर इस अवधि में नियत समय में नियत कार्य को सौ फीसदी सही ढंग से करने का नियमित अभ्यास करेंगे, तभी वे परीक्षा केंद्र पर भी प्रश्नों  का उत्तर बेहतर तरीके से दे पायेंगे. अतः जरुरी यह है कि विद्यार्थीगण इस अवधि में  प्राणायाम और मेडीटेशन का सहारा लें. साथ ही अनावश्यक  कार्यों से तौबा करने का दृढ़ संकल्प लें और उस पर अमल करना शुरू कर दें. उदाहरण के लिए सोशल मीडिया, राजनीतिक व धार्मिक बहस व चर्चा  से बिल्कुल दूर रहें. साथी-सहपाठी से भी मोबाइल पर तभी बात करें जब कि अध्ययन से जुड़ी कोई बात क्लियर करनी हो. संभव हो तो अपना मोबाइल ऑफ रखें और बात करना जरुरी हो तो माता-पिता के फोन का उपयोग करें. ऐसी और भी बातों को नोट कर उससे बचने का प्रयास कर सकते हैं. इससे समय की बचत के साथ-साथ अनावश्यक व्यवधान से मुक्ति मिलेगी और छात्र-छात्राएं अपने अध्ययन पर अच्छी तरह फोकस कर पायेंगे. बेहतर रिजल्ट भी तभी सुनिश्चित हो पायेगा. 

  (hellomilansinha@gmail.com)      


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# "युगवार्ता" साप्ताहिक के 21.02.2021 अंक में प्रकाशित  
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