- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
ऐसा देखा गया है कि सक्षम होते हुए भी अनेक विद्यार्थी बहाना बनाने की आदत के कारण सामान्य सफलता भी हासिल नहीं कर पाते हैं. ज्ञानीजन कहते हैं कि यह लगातार असफल होनेवाले लोगों की एक सामान्य आदत होती है. ऐसे लोगों के पास सही काम नहीं करने या उसे अधूरा छोड़ने के लिए एक बहाना जरुर होता है. टीचर ने कोई टास्क या असाइनमेंट दिया, लेकिन विद्यार्थी ने नहीं किया या अधूरा किया. कारण पूछने पर कोई बहाना बना दिया. मसलन तबीयत खराब हो गई थी या माता-पिता ने एक जरुरी काम से बाहर भेज दिया था या ऐसे न जाने कितने बहाने. अमूमन, टीचर इसका सत्यापन करने हेतु घरवालों से पूछताछ नहीं करते हैं. बस विद्यार्थी को समझा-बुझाकर या डांट-फटकार कर इस चेतावनी के साथ छोड़ देते हैं कि आगे से ऐसी गफलत न करें. परीक्षा में अच्छा या अपेक्षित अंक या ग्रेड हासिल न कर पाने पर भी कई छात्र-छात्राएं विविध प्रकार के बहानों का सहारा लेते हैं. ऐसे विद्यार्थियों के लिए घर और बाहर कहीं भी गलत या अवांछित काम करने और पकड़े जाने पर भी कोई-न-कोई बहाना बनाना मामूली बात है. क्या बहाना बनाना वाकई मामूली बात है? बिलकुल नहीं. यह तो गंभीर मामला है. अतः विद्यार्थियों के लिए बहानेबाजी से बचे रहना जरुरी है. आइए, इसके पांच अहम दुष्परिणामों पर चर्चा करते हैं.
1. झूठ का सहारा: बहाना बनाने का सीधा मतलब है सत्य को छुपाने की कोशिश करना. अर्थात झूठ का सहारा लेना. फिर एक झूठ को छुपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलना और अपने ही बुने जाल में देर-सवेर बुरी तरह फंसना. ऐसा होना स्वाभाविक है. फिर भी कुछ छात्र-छात्राएं तात्कालिक रूप से खुद को सही साबित करने के लिए ऐसा करते हैं. दरअसल वे वास्तविकता को तत्क्षण स्वीकार कर छोटी असुविधा का सामना करने की जगह बड़ी समस्या का बीजारोपण करते हैं.
2. मेहनत से जी चुराना: असफलता या खराब रिजल्ट आदि के मामले में यथार्थ से मुंह मोड़ने और उसे नकारने का अभिप्राय यह है कि आप आगे चुनौतियों का सामना करके सफल होने से पीछे हट रहे हैं. इसका अर्थ यह भी है कि आप मेहनत करने से भाग रहे हैं, जब कि आपको भी मालूम है कि अपेक्षित मेहनत के बिना अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सकता है. जेम्स पेनी कहते हैं, "मैं बहानेबाजी में यकीन नहीं करता. मैं जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत को प्रमुख कारक मानता हूँ."
3. आत्मविश्वास में कमी: बहानेबाजी से धीरे-धीरे आप उन कार्यों को भी लंबित रखते जाते हैं जो आपके लिए जरुरी और महत्वपूर्ण हैं. मसलन कोई विद्यार्थी जब अपनी पढ़ाई पूरा न करने के लिए बहाना बनाता है, तब वह उस कार्य को टालता है और इस तरह अपनी पढ़ाई के बैकलॉग को बढ़ाता जाता है. यकीनन इस बड़े बैकलॉग को परीक्षा से पहले अच्छी तरह पूरा करना बहुत ही मुश्किल होता है, कई बार असंभव भी. परिणामतः ऐसे विद्यार्थी परीक्षा से पहले अनावश्यक तनाव से ग्रस्त रहते हैं और उनका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है. परीक्षाफल खराब होने की संभावना भी बढ़ जाती है. सोचिए, जिस विद्यार्थी के आत्मविश्वास में कमी रहेगी, उसके लिए जीवन की छोटी-बड़ी समस्याओं को हल करना कितना मुश्किल होगा?
4. विश्वसनीयता का संकट: बहानेबाजी का एक बड़ा दुष्परिणाम विश्वसनीयता के संकट के रूप में सामने आता है. सचमुच, विश्वसनीय होने में बहुत समय लगता है, लेकिन बहानेबाजी के कारण वह एक झटके में बिखर जाता है. जाने-अनजाने गलती हो जाय और उसे तुरत मान लें तथा बता दें तो अधिकांश मामलों में टीचर-अभिभावक आदि गलती को माफ या नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन बहाना बनाकर खुद को बचाने का प्रयास करनेवालों को यह लाभ कदाचित ही मिल पाता है. सच तो यह है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था ऐसे लोगों को कोई महत्वपूर्ण काम या जिम्मेदारी नहीं देना चाहते, जो आदतन बहानेबाज हों.
5. गलत काम में संलिप्तता: इस आदत से ग्रस्त विद्यार्थी सरल और पारदर्शी जिंदगी नहीं जी पाते हैं. इससे उनकी सोच और सेहत बहुत दुष्प्रभावित होती है. उन्हें दोस्त भी वैसे ही मिल जाते हैं. फिर तो वे सही और सीधे रास्ते को छोड़कर अनायास ही गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं. फर्स्ट टाइम जुर्म करनेवालों की आम दिनचर्या पर गौर करें तो एक बात कॉमन मिलेगी और वह है बहानेबाजी. हां, कुछ विद्यार्थी सही समय पर मिलनेवाली काउंसलिंग और कई बार पहली बार ठोकर लगने पर सुधर जाते हैं. इस कारण जीवन में आगे वे भी बेहतरी और सफलता के हकदार बनते हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 24.01.2021 अंक में प्रकाशित
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